नीतीश कुमार को बार-बार अपनी सरकार को लेकर सफाई क्यों देनी पड़ती है...

इसका सबसे बड़ा कारण हैं कि ना केवल बीजेपी ने विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के उम्मीदवारों को हराने में पुरज़ोर प्रयास किया जिसका प्रमाण हैं चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी का तीसरे नंबर की पार्टी हो जाना.

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अरुणाचल की घटना के बाद नीतीश का बीजेपी पर विश्वास खत्म हो गया!
पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने नए साल के पहले दिन सफ़ाई दी कि उनकी सरकार को कोई ख़तरा नहीं हैं. पिछले तीन दिन में ये दूसरी बार हैं कि नीतीश ने अपनी सरकार को लेके सफ़ाई दी हैं कि उनकी सरकार पर कोई ख़तरा नहीं हैं. इससे पहले पिछले रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नीतीश कुमार ने कहा था कि वो मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे ये बीजेपी के दबाव में उन्होंने शपथ ली.

हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस कथन का अब सांसद और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ये कह कर पुष्टि की चूंकि जनादेश उनके नाम पर मिला था, इसलिए उन्होंने आग्रह किया कि आपको शपथ लेनी चाहिए .

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लेकिन सवाल हैं कि राजनीतिक माहौल ऐसा क्यों बन रहा हैं कि नीतीश कुमार और बीजेपी में सब कुछ सामान्य नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा कारण हैं कि ना केवल बीजेपी ने विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के उम्मीदवारों को हराने में पुरज़ोर प्रयास किया जिसका प्रमाण हैं चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी का तीसरे नंबर की पार्टी हो जाना.

इसके बाद अरुणाचल के छह जनता दल यूनाईटेड का बीजेपी में शामिल कराने के बाद दोनो दलों में विश्वास की कमी नहीं बल्कि विश्वास ख़त्म सा हो गया हैं. इस घटना के साथ साथ बिहार भारतीय जनता पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल पिछले दिनों केंद्रीय वित मंत्री निर्मला सीतारमण से मिलकर बजट में बिहार के लिए कुछ माँग रखी . हालांकि वित मंत्री ने पार्टी के अन्य इकाई से भी उस दिन मुलाक़ात की थी.

इससे पूर्व शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार प्रधानमंत्री से अब तक नहीं मिले हैं लेकिन उनके दोनो उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी ने ना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की बल्कि कहा भी कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने का बिहार बनाना हैं. 

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हालांकि बिहार बीजेपी नेताओं का कहना हैं की अब जो भी हो रहा हैं हैं या नहीं हो रहा हैं वो केंद्रीय नेतृत्व के अनुसार हो रहा हैं . इसलिए अगर कैबिनेट का विस्तार रुका हो या राज्यपाल के कोटे से बारह विधान पार्षदों का मनोनयन हो वो इसलिए नहीं हो पा रहा हैं क्योंकि नीतीश अपनी ज़िद पर अड़े हैं .

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उनका कहना हैं कि नीतीश कुमार को समझना होगा कि लोकतंत्र में संख्या सब कुछ होती हैं और आपकी शक्ति उसी के आधार पर आंकी जाती हैं और आपको अपनी मांग उसी शक्ति के अनुपात में करनी चाहिए .

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