तकनीक के इस दौर में बच्चों को लेकर सजग रहना जरूरी है और ये सजगता स्कूली स्तर से ही होनी चाहिए. टेक्नोलॉजी एक टूल है, टीचर नहीं. जनरेटिव AI के इस दौर ये समझना बेहद ज़रूरी है. "ह्यूमन फ़र्स्ट, टेक फ़ॉरवर्ड – द न्यू बैलेंस इन एजुकेशन" इस विषय पर दिल्ली में आयोजित STTAR ग्लोबल एजुकेशन कॉन्फ्रेंस के दौरान ये बातें कही गईं.
इस मौके पर सेठ आनंदराम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन शिशिर जयपुरिया ने कहा कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में लोगों का अटेंशन स्पैन कम हुआ है. बदलते वक्त में हमें तकनीक का स्वागत करना चाहिए, पर उसे मानवीय बनाकर. शनिवार को दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में इस देश के 18 राज्यों से 700 से अधिक शिक्षक, काउंसलर, शिक्षाविद शामिल हुए.
गूगल फॉर एजुकेशन इंडिया के प्रमुख संजय जैन ने कहा कि ज़रूरी ये समझना है कि AI की मदद से हम क्या सीख रहे हैं और कैसे सीख रहे हैं. शिक्षकों के लिए टेक का ये टूल इस मायने में भी मददगार साबित हो सकता कि क्लास में पिछड़ रहे बच्चों का आकलन भी किया जा सके और फिर उनको आगे लाने को लेकर काम भी. STTAR ( Saamarthya Teachers Training Academy of Research) के चेयरमैन विनोद मल्होत्रा ने कहा कि टेक मास्टर नहीं, ग्रेट हेल्पर है.
सीबीएसई के डायरेक्टर स्कूल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग बिस्वजीत साहा ने जोर डालकर कहा कि जिस समय टेक मास्टर बन जाएगा, ह्यूमैनिटी के लिए खतरा है। लिहाज़ा उपयोग तो हो, लेकिन एहतियात के साथ. अपने बच्चों को पेरेंट्स जानें, ये भी ज़रूरी है. इस खास मौके पर AICTE ( All India Council for Technical Education ) के चेयरमैन टी जी सीताराम को शिक्षा गरिमा पुरस्कार से नवाज़ा गया। अपने उद्बोधन में सीताराम ने कहा कि ह्यूमन फर्स्ट एंड ह्यूमन लास्ट. तकनीक आएगी, तकनीक जाएगी. तकनीक को इंकार नहीं किया जा सकता, उपयोग सही तरीके से करना जरूरी है. सीताराम ने कहा कि सभी एक दौर था जब 1 % लोग उच्च शिक्षा में जाते थे. फिर कुछ साल पहले ये बढ़कर ये 11% हुआ और मेरा विश्वास है कि 2035 तक ये 50% तक जा पहुंचेगा. इन तमाम लोगों के अलावा कार्यक्रम में CISCE के चीफ एग्जीक्यूटिव एंड सेक्रेट्री डॉक्टर जोसफ इमानुएल, सैमसंग इंडिया से राजू पुलन आदि मौजूद थे.