दक्षिण एशिया में आंदोलनों को भांप क्यों नहीं पा रही हैं सरकार, क्या घमंड में करती हैं अनदेखी

नेपाल में युवाओं के आंदोलन के आगे झुकते हुए पीएम केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है. इसके साथ ही नेपाल उन देशों में शामिल हो गया है, जहां की सरकारों को प्रदर्शन के आगे झुकते हुए इस्तीफा दे देना पड़ा.

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  • नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने युवाओं के सरकार विरोधी आंदोलन के कारण इस्तीफा दे दिया है.
  • प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति और अन्य नेताओं के आवासों पर हमला किया तथा संसद भवन में आगजनी और तोड़फोड़ की.
  • रणनीतिक मामलों के जानकार सुशांत सरीन के अनुसार सरकारें इन आंदोलनों को भांपने में निष्क्रिय रही हैं.
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नई दिल्ली:

'जेन जी' के आंदोलन के आगे झुकते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. नेपाल में सोमवार से ही युवाओं का सरकार विरोधी उग्र आंदोलन जारी है. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल सहित कई शीर्ष राजनीतिक नेताओं के निजी आवास पर हमला किया और संसद भवन में आगजनी और तोड़फोड़ की. इस तरह से श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद नेपाल दक्षिण एशिया का तीसरा ऐसा देश हो गया है, जहां कि सरकार को इस तरह के आंदोलन के आगे झुकते हुए इस्तीफा देना पड़ा है. म्यामांर और इंडोनेशिया में भी ऐसा ही हो रहा है. आखिर इस तरह के आंदोलनों का पैटर्न क्या है और सरकारें इस तरह के आंदोलनों को भांपने में नाकाम क्यों रहती हैं. रणनीतिक मामलों के मशहूर जानकार सुशांत सरीन ने इसे सरकारों का निष्क्रियता बताया है. 

सुशांत सरीन ने इसको लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'एक्स' पर टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा है, ''नेपाल की बारी है! क्या कुछ ऐसा है, जिसे हम मिस कर रहे हैं कि सड़कों पर इतना गुस्सा भड़क रहा है? बस एक चिंगारी की जरूरत है. हमने यह श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में देख रहे हैं. इंडोनेशिया और म्यांमार में भी ऐसा ही हो रहा है, जहां हालात और बिगड़े हैं.''

नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर मंगलवार को गश्त लगाता एक पुलिस वाहन.

क्या सरकारें घमंडी हो गई हैं

उन्होंने लिखा है कि भारत में किसान आंदोलन और शाहीन बाग में भी ऐसा हुआ था, जहां सरकारें (उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को छोड़कर) निष्क्रिय नजर आईं. वो सरकारें इन आंदोलनों को रोकने में नाकाम रहीं. अक्सर सरकारों को लगता है कि लोग गुस्सा निकाल लेंगे और आंदोलन अपने आप ठंडा पड़ जाएगा. लेकिन कई बार ये आंदोलन और बड़ा रूप ले लेते हैं. क्या सरकारें सड़कों पर बन रहे दबाव को नजरअंदाज कर रही हैं? क्या पुलिस और कानून लागू करने वाली एजेंसियां हालात से अनजान हैं या वे ये जानकारियां ऊपर तक नहीं पहुंचा रही हैं? क्या उन्हें विश्वविद्यालयों, अल्पसंख्यक समुदायों, खास समूहों या राजनीतिक गुटों में चल रही हलचल का अंदाजा है? 

उन्होंने पूछा है कि क्या सरकारें घमंड में इन संकेतों को अनदेखा कर रही हैं या मुसीबत पैदा करने वालों को बढ़ावा दे रही हैं, जैसा कि हाल में मुंबई में देखा गया? ये अनजान लोग, अचानक सड़कों पर आकर देश की आर्थिक राजधानी को बंधक बना लेते हैं. कहां से आ रहे हैं ये लोग? इन्हें कौन समर्थन दे रहा है? इनकी फंडिंग कौन कर रहा है? फंडिंग का पता क्यों नहीं चल पाता? या फिर क्या ये लोग पुलिस को पहले से पता होते हैं, लेकिन पुलिस इन लोगों को तब तक नजरअंदाज करती हैं, जब तक की हालात बेकाबू न हो जाएं?

नेपाल के युवाओं का आंदोलन

नेपाल के छात्रों और दूसरे युवाओं में राजनेताओं के खिलाफ कई कारणों से आक्रोशित हैं. इसमें सोशल मीडिया पर बैन और कथित भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं. इन युवा प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के बावजूद राजधानी काठमांडू और देश के दूसरे शहरों में हिंसक प्रदर्शन किया. राजधानी काठमांडू में सोमवार को हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे. 

युवाओं के प्रदर्शन के आगे झुकते हुए प्रधानमंत्री केपी ओली ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति को लिखे अपने त्यागपत्र में ओली ने नेपाल के समक्ष मौजूद असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए कहा है कि वह मौजूदा स्थिति के संवैधानिक और राजनीतिक समाधान का मार्ग प्रशस्त करने के लिए पद छोड़ रहे हैं.

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