समय से पहले क्यों धमक पड़ा मॉनसून, खुशखबरी है या तबाही की आहट?

केरल में मॉनसून की दस्तक हुई, लेकिन महाराष्ट्र तक बारिश पहुंच गई, वो भी 9 दिन पहले. अब इसे कहें खुशखबरी या तबाही की आहट? क्या ये सिर्फ मौसम का खेल है या ग्लोबल वार्मिंग की वॉर्निंग.

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मॉनसून आया नहीं, धमक पड़ा है और इस बार टाइम से नहीं, बिफोर टाइम. जी हां, 2025 में मॉनसून ने 1 जून का वेट नहीं किया, सीधा 24 मई को ही केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक साथ एंट्री मार ली. अब सोचिए, मॉनसून एक दिन में इतना लंबा सफर तय कर जाए, केरल से महाराष्ट्र तक. ये कोई आम बात तो नहीं लगती ना? चलिए, इस वीडियो में आपको डीटेल में बताते हैं- इस बार मॉनसून इतना जल्दी क्यों आया? क्या वाकई ये ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है? और क्या इसका मतलब है कि आगे तबाही के सीन सेट हैं?

54 साल बाद फिर दोहराया गया इतिहास

साल 1971 याद है आपको? शायद नहीं, लेकिन मौसम को याद है, क्योंकि तब भी ऐसा ही हुआ था. जब मॉनसून ने एक साथ कर्नाटक और महाराष्ट्र के बड़े हिस्सों को कवर कर लिया था और अब 2025 में फिर वैसा ही हुआ है, लेकिन सवाल ये है कि मॉनसून का इस तरह जल्दी आना, क्या ये असामान्य है? सीधा जवाब- हां भी, नहीं भी. मतलब, ऐसा बहुत रेयर होता है, लेकिन नामुमकिन नहीं.

मॉनसून को जल्दी लाने वाले असली खिलाड़ी

अब आते हैं असली गेमचेंजर्स पर- यानी वो कारण जिनकी वजह से मॉनसून ने एक्सप्रेस स्पीड पकड़ ली. मॉनसून का आना कोई एक वजह से नहीं होता- ये क्लाइमेट फैक्टर्स और ह्यूमन फैक्टर्स- दोनों का मिला-जुला असर होता है.

ग्लोबल वॉर्मिंग का गहरा असर

सबसे पहले- ग्लोबल वॉर्मिंग. अब आप सोचेंगे- मौसम है, आता-जाता रहता है, लेकिन जब धरती का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस ऊपर चला जाए, तो असर तो होगा ही.
• यूरेशिया और हिमालय में बर्फ कम गिरी है — करीब 15% कम. और जब बर्फ कम, तो जमीन ज्यादा गरम. नतीजा- मानसूनी हवाओं को ऊपर उठने में कम रुकावट.

• वायुमंडल में नमी ज्यादा- क्योंकि हर 1 डिग्री तापमान बढ़ने पर हवा में 6-8% ज़्यादा नमी होती है.

• मई 2025 में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में भारी नमी यानी बादलों को बनने में ज़्यादा देर नहीं लगी.

• और हां, एक साइक्लोनिक सिस्टम भी था कर्नाटक-गोवा तट के पास, जिसने मॉनसून को और धक्का दे दिया.


सोमाली जेट का धमाका

अब बात करते हैं एक कम सुने गए, लेकिन बहुत ज़रूरी हीरो की- सोमाली जेट. ये हवाएं मॉरीशस और मेडागास्कर से उठती हैं और सीधे अरब सागर से होते हुए भारत के पश्चिमी तट तक आती हैं  यानी केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र तक। 2025 में ये हवाएं असामान्य रूप से तेज थीं. कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसका ग्लोबल वॉर्मिंग से भी कनेक्शन हो सकता है.

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MJO का मानसूनी जादू

अब बात करते हैं MJO की, यानी मैडेन जूलियन ऑसिलेशन. नाम से ही लगता है जैसे कोई विदेशी जादूगर हो, लेकिन असल में ये एक हवा और बादलों की घूमती हुई सिस्टम है, जो पूरी धरती के इक्वेटर के आसपास घूमती रहती है- जैसे कोई चलता-फिरता बादल पैदा करने वाला सिस्टम. इसका असर इंडिया पर तभी पड़ता है जब ये हिंद महासागर में होता है. और जब ये हमारे पास आता है, तो बादलों को उकसाता है, बारिश को तेज़ करता है, तूफ़ानी एक्टिविटी बढ़ाता है. अब 2025 में क्या हुआ? मई महीने के दूसरे हफ्ते में MJO हिंद महासागर में एक्टिव हुआ, और उसी टाइम पर अरब सागर में साइक्लोन बना – ‘रेमल'. यानी बादल, हवा, दबाव – सब कुछ एकदम सिंक्रोनाइज़ था. मई महीने में MJO फेज़ 3 और 4 में था- और ये फेज़... मानसून के लिए सबसे मुफीद होते हैं. मतलब बादल बनेंगे, बारिश गिरेगी और मॉनसून तेजी से बढ़ेगा.

ENSO और IOD भी साथ हैं इस बार

अब ज़रा बात करते हैं दो ऐसे सिस्टम्स की, जिनका नाम सुनते ही बहुत से लोग सोचते हैं – "ये कौन सा नया झंझट है?" ENSO और IOD. तो चलिए, इसे समझते हैं. पहला – ENSO यानी El Nino Southern Oscillation यानी एल-नीनो और ला-नीना वाला खेल. ये प्रशांत महासागर के तापमान से जुड़ा सिस्टम है. जब इसका तापमान ज़्यादा गर्म हो जाता है, तो उसे कहते हैं अल-नीनो, जो भारत के मॉनसून को कमजोर कर देता है. और जब ठंडा होता है, तो उसे कहते हैं ला-नीना, जो मॉनसून को मज़बूत करता है. लेकिन इस बार 2025 में क्या है? ना ज़्यादा गर्मी, ना ज़्यादा ठंडक. यानी ENSO न्यूट्रल है – और यही न्यूट्रल हालात भारत के मॉनसून के लिए फायदेमंद माने जाते हैं. दूसरा – IOD यानी इंडियन ओशन डायपोल.

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अब ये थोड़ा इंडियन है. ये देखता है कि भारतीय महासागर के पश्चिमी हिस्से (अफ्रीका की तरफ) और पूर्वी हिस्से (इंडोनेशिया की तरफ) पानी का तापमान कितना अलग है. अगर पश्चिमी हिस्सा गर्म होता है और पूर्वी हिस्सा ठंडा, तो इसे कहते हैं पॉजिटिव IOD. ये मॉनसून के लिए अच्छा होता है – मतलब बादल बनने, बारिश बढ़ाने में मदद करता है. अगर उल्टा हो गया, तो कहते हैं नेगेटिव IOD, जो बारिश को डिस्टर्ब कर देता है. 2025 में अभी IOD भी न्यूट्रल है – लेकिन मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगस्त-सितंबर तक ये हल्का पॉजिटिव हो सकता है, जो आगे जाकर मॉनसून को और भी ताक़त देगा.

लेकिन आगे क्या? रुकावटें आ सकती हैं!

अब एक बड़ा सवाल- क्या मॉनसून इसी स्पीड से पूरे देश में फैल जाएगा? शॉर्ट आंसर — शायद नहीं. IMD कह रहा है कि जून की शुरुआत में मॉनसून की रफ्तार धीमी हो सकती है. क्यों? क्योंकि मिड-लैटिट्यूड की शुष्क हवाएं यानी ड्राई एयर मासेस- मॉनसून की नमी को रोक देती हैं. ऐसा ही कुछ 2024 में भी हुआ था- जब चक्रवात ‘रेमल' ने मॉनसून को 19 दिन तक बंगाल की खाड़ी में रोक दिया था.

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एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन कहते हैं- हम पांच फैक्टर्स से मॉनसून प्रेडिक्ट करते हैं, जिसमें यूरेशिया का हिमपात सबसे इंपॉर्टेंट है. वहीं IMD के डीजी मृत्युंजय महापात्रा का कहना है- "MJO के फेज़ 3-4, न्यूट्रल ENSO और स्ट्रॉन्ग सोमाली जेट की वजह से मॉनसून जल्दी आया है, लेकिन जून में ड्राई विंड्स इसे स्लो कर सकती हैं. तो मॉनसून की ये जल्दी दस्तक सिर्फ बारिश की खबर नहीं है बल्कि क्लाइमेट चेंज की बारीक चाल भी है. अब सवाल ये नहीं कि मॉनसून जल्दी क्यों आया... सवाल ये है कि हमारी तैयारी भी मॉनसून जैसी तेज़ है या नहीं? 

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