आंखों में आंसू आ जाता है, गला रुंध जाता है.. उन बिहारियों का दर्द जो छठ पर घर नहीं जा पाते

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Ranjan Rituraj
  • देश,
  • Updated:
    अक्टूबर 25, 2025 11:23 am IST

छठ क्या है ? 

कभी किसी प्रवासी बिहारी से पूछ कर देखिए जो छठ में अपने गांव घर नहीं गया हो . छठ की महिमा बोलने से पहले उसका गला रुंध जाएगा. 

छठ क्या है? 

कभी बिहार में रहने वाले बिहारी से पूछ कर देखिए. वो उस उमंग में होगा कि आपको नहीं बता सकता. 

मेरी नज़र में पृथ्वी का सबसे पौराणिक व्रत , जिसमें ना आकार की पूजा है और ना ही किसी मंत्र का उच्चारण. सूर्य को जल से अरग देते वक्त कब कहां पता चलता है कि बगल में राम जी हैं या मिश्रा जी. प्रकृति में ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत सूर्य की नज़र में सब बराबर. ना कोई हिंदू है और ना कोई मुसलमान. ना कोई ब्राह्मण है और ना कोई क्षत्रिय. सब बराबर. कहीं कोई ऊंच नहीं और कहीं कोई नीच नहीं. 

छठ की महिमा

अब इस पर्व की महिमा देखिए कि अगले चार दिन चोर चोरी करना बंद कर देते हैं. घूसखोर अफसर घूस को हाथ नहीं लगाते. ऐसे जैसे सब कुछ ही नहीं बल्कि सारा वातावरण की पवित्रता में नहा लेता है. पवित्रता इस पर्व का मूल है. छठ व्रती अपने शरीर, दिल, आत्मा, पूजा स्थल, आस-पास सब कुछ पवित्र रखते हैं . क्या अमीर और क्या गरीब सभी अपने-अपने स्तर से पवित्रता को बरक़रार रखते हैं. 

पलायन की त्रासदी झेल रहे बिहारियों ने इस पर्व को समस्त विश्व में फैलाया. गोवा की पूर्व राज्यपाल स्व. मृदुला सिन्हा ने अपने लेख में लिखा था कि सन 1979 के आसपास यमुना दिल्ली में मुश्किल से 25 छठ व्रती जुटे थे और आज एनसीआर को हेलीकॉप्टर से नापिये तो शायद ही कोई सोसाइटी होगी जहां छठ पूजा नहीं हो रही होगी. 

अपने घर से दूर कमाने खाने जाने की परंपरा सदियों से रही है . लेकिन छठ ऐसा पर्व है जहां घर जाया ही जाया जाता है . मेरी पत्नी कहती हैं कि छठ में जो अपने गांव घर नहीं गया वह ‘ बेलल्ला ‘ है . मतलब की दुनिया में उसका कोई नहीं है . यह मैंने स्वयं इंदिरापुरम प्रवास में झेला है . छठ के सांझिया अरग के दिन फूट फूट कर रोना. 

धर्म से परे छठ

जन्म लेने के बाद एक बिहारी जो पहली परम्परा अपने ख़ून में समाज से लेता है , वह छठ है . धर्म की दीवार टूटती है. मैंने अपनी आंखों से स्वयं मुस्लिम समाज को सड़क धोते देखा है . छठ की मन्नत पर मुस्लिम समाज भी सूप चढ़वाता है. छठ का पवित्र परसाद जिस मिट्टी के चूल्हे पर बनता है पटना में नहा धो कर स्वयं मुस्लिम समाज की महिलायें बनाती हैं . मैं स्वयं पवित्र फल मुस्लिम समाज के विक्रेता से पटना में खरीदते आया हूं. 

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जिस हिंदू धर्म में छुआछूत जैसी परंपरा रही हो वहां छठ का डाला समाज के सबसे निचले वर्ग से आता है और छठ व्रती के साथ उस डाला को अहंकार पुरुष जब अपने माथा पर रखता है , पवित्रता टपकती नहीं बल्कि बहती है जिसमें हर एक इंसान नहा कर स्वयं को पवित्र बनाना चाहता है . 

क्या अद्भुत पर्व है . प्रथम दिन 12 घंटे का उपवास . दूसरे दिन 24 घंटे का उपवास और अंतिम दिन 36 घंटे का महाउपवास . जल की एक बूंद तक नहीं. दूसरे दिन अपने-अपने रीति रिवाज के अनुसार शाम को छठ व्रती जब महाउपवास के लिए अपना अंतिम परसाद खाती हैं , उसे खरना कहा जाता है . उस परसाद को जीवन का सबसे पवित्र परसाद ग्रहण करने के लिए लोग करबद्ध हो जाते हैं. 

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क्या लिखा जाये और कितना लिखा जाये . नम आंखों से लिखा जाये या छठ की तैयारी में व्यस्त होते हुए लिखा जाये. 

छठ क्या है ? 

अरे भाई , जो पर्व आपके आत्मा में है , जो पर्व आपके दिल में है , जो पर्व आपके खून में है , जो पर्व आपके बचपन में है , जो पर्व आपके शरीर में है , जो पर्व आपके पड़ोस में है , जो पर्व आपके हित कुटुंब में है , जो पर्व आपके मित्र महिम में है , जो पर्व आपके वातावरण में है. 

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उस पर्व को लिखना, बताना कितना मुश्किल . बस आप समझ जाइए न , छठ क्या है? हम बता नहीं सकते और आप समझ नहीं सकते. बस समझ लीजिए , छठ आत्मा है. जब तक शरीर में प्राण है, छठ है. बस. 

पढ़ते-पढ़ते शारदा सिन्हा का गीत अवश्य ही आपके मन में गुनगुना रहा होगा. विश्व भर में फैले तमाम छठ व्रती को हम सभी का प्रणाम.

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रंजन ऋतुराज , एनडीटीवी के लिए