देश की एक राजधानी क्यों हो? भारत में बारी-बारी से चार राजधानी होनी चाहिए: ममता बनर्जी

Mamata Banerjee ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को ‘पराक्रम दिवस’के तौर पर मनाने के निर्णय़ को लेकर भी केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया.

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PM Modi in Kolkata : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर देश भर में हो रहे हैं कार्यक्रम
कोलकाता:

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने शनिवार को एक नई बहस छेड़ दी. ममता ने कहा कि भारत में चार राजधानियां होनी चाहिए थीं और संसद सत्र देश के इन अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर आयोजित किए जाते.ममता बनर्जी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की 125वीं जयंती को ‘पराक्रम दिवस'के तौर पर मनाने के निर्णय़ को लेकर भी केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया.

ममता बनर्जी ने कहा कि मोदी सरकार ने इसकी घोषणा करने से पहले उनसे सलाह नहीं ली. नेताजी की 125 वीं जयंती पर एक भव्य जुलूस में शामिल होने के बाद ममता ने कहा, ‘ब्रिटिश काल के दौरान, कोलकाता देश की राजधानी थी. मुझे लगता है कि हमारी बारी बारी से चार राजधानियां होनी चाहिए थी. देश की एक ही राजधानी क्यों हो? संसद सत्र देश में अलग-अलग जगहों पर होने चाहिए? हमें अपनी सोच बदलनी होगी.'ममता ने सवाल उठाया कि सुभाष चंद्र बोस की जयंती को ‘देशनायक दिवस' के रूप में क्यों नहीं मनाया जाए।

ममता बनर्जी ने कहा, ‘पराक्रम का क्या अर्थ है? वे मुझे राजनीतिक रूप से नापसंद कर सकते हैं, लेकिन सलाह ले सकते थे. वे नेताजी के पड़पोते सुगत बोस या सुमंत्र बोस से सलाह ले सकते थे.'हम तो यहां इस दिन को ‘देशनायक दिवस'के रूप में मना रहे हैं. रवींद्रनाथ टैगोर ने नेताजी को ‘देशनायक' कहा था, इसीलिए हमने बंगाल की दो महान हस्तियों को जोड़ने के लिए आज इस नाम का उपयोग किया.'

ममता बनर्जी ने कोलकाता के श्यामबाजार से 7 किलोमीटर लंबे जुलूस की शुरुआत में पहले शंख बजाया और दोपहर 12.15 बजे सायरन बजाया गया, इस दिन इसी समय 1897 में बोस का जन्म हुआ था. ममता बनर्जी ने कहा, ‘हम नेताजी का जन्मदिन केवल उन वर्षों में नहीं मनाते जब चुनाव होने वाले होते हैं. हम उनकी 125वीं जयंती को भव्य तरीके से मना रहे हैं.'

ममता ने आरोप लगाया कि देश के राष्ट्रगान- ‘जन गण मन' को बदलने के लिए एक खेल चल रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ‘जन गण मन' को राष्ट्रगान के रूप में समर्थन दिया था. हम इसे बदलने नहीं देंगे.'नोबेल विजेता रबींद्र नाथ टैगोर ने 1911 में बांग्ला में ‘जन गण मन' लिखा था और इसे 1950 में राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था. राष्ट्रगान कविता का एक हिस्सा है जिसे टैगोर द्वारा लिखा गया है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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