लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी बार सरकार बन चुकी है.मंत्रिमंडल का गठन हो चुका है.सरकार गठन के बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव में प्रदर्शन को लेकर बीजेपी और उसके सहयोगी दल आमने-सामने हैं. बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) की प्रमुख और केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने 27 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने प्रदेश सरकार की भर्तियों में आरक्षण का पालन न करने का आरोप लगाया.इसको उन्होंने चुनाव में एनडीए के प्रदर्शन से जोड़ दिया.अनुप्रिया ने पत्र के जवाब में योगी सरकार ने साफ-साफ कह दिया कि प्रदेश में आरक्षण का पालन किया जा रहा है.इसके बाद अनुप्रिया पटेल ने मंगलवार को एक फिर इस मुद्दे को हवा दी.
अनुप्रिया पटेल की सीएम योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी
अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में आरक्षित पदों को अनारक्षित घोषित किए जाने की व्यवस्था पर रोक लगाने की मांग की थी.उन्होंने साक्षात्कार के आधार पर होने वाली भर्तियों में पिछड़ों और एससी-एसटी वर्ग की भर्ती नहीं करने का आरोप लगाया था.अनुप्रिया के इस पत्र ने प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी.अनुप्रिया के इस पत्र को लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों के प्रदर्शन से जोड़कर देखा गया.
इस बार के चुनाव में प्रदेश में बीजेपी और उसके सहयोगियों को बड़ा झटका लगा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी का अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) के अलावा संजय निषाद की निषाद पार्टी, जयंत चौधरी की आरएलडी और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) से गठबंधन है. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने छह सीटें अपने सहयोगियों को दी थीं. इनमें से दो सीटें अपना दल (एस), दो-दो सीटें आरएलडी और निषाद पार्टी और एक सीट सुभासपा को दी गई थीं. निषाद पार्टी के दोनों उम्मीदवार बीजेपी ने चुनाव चिन्ह पर मैदान में थे.निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद बीजेपी के सिंबल पर 2019 के चुनाव में संतकबीर नगर से जीते थे. इस बार भी उन्हें वहीं से टिकट मिला था.इस बार के चुनाव परिणाम बहुत संतोषजनक नहीं रहे.पश्चिम यूपी में राजनीति करने वाले आरएलडी ने अपनी दोनों सीटें जीत लीं. वहीं पूर्वांचल में राजनीति करने वाली अपना दल (एस) केवल मिर्जापुर सीट ही जीत पाई. वहां से पार्टी प्रमुख अनुप्रिया पटेल खुद चुनाव मैदान में थीं. उन्हें जीत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.राबर्ट्सगंज में उसे हार मिली.वहीं निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को संतकबीर नगर में हार मिली.सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर घोसी सीट के चुनाव मैदान में थे. वहां उन्हें सपा के हाथों का हार का सामना करना पड़ा.
लोकसभा चुनाव में मिली हार
बीजेपी के सहयोगियों की मिली हार का असर बीजेपी के चुनाव पर भी पड़ा.अनुप्रिया पटेल अपनी कुर्मी जाति की बहुलता वाली सीटों पर भी बीजेपी को जीत नहीं दिलवा सकीं.सपा ने आठ कुर्मी बहुल सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी को तगड़ी चुनौती पेश की.
इन चुनाव परिणामों ने अनुप्रिया पटेल को मुखर होने के लिए मजबूर कर दिया. उत्तर प्रदेश में उन्हें अब अपना जनाधार खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है.अनुप्रिया तीसरी बार केंद्र में मंत्री बनी हैं. उनके पति आशीष सिंह प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. इन दोनों ने आज से पहले इस तरह से आरक्षण और ओबीसी के मुद्दों पर कभी आवाज नहीं उठाई थी.जनाधार खिसकने के बाद उन्हें आरक्षण की याद आई है.
69000 हजार शिक्षकों की भर्ती में अनियमितता
अनुप्रिया पटेल ने एक बार फिर मंगलवार को आरक्षण में अनियमितता का राग छेड़ दिया.उन्होंने अपने पिता और पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल की जयंती पर लखनऊ में एक कार्यक्रम का आयोजन किया. इसमें उन्होंने कहा कि 69 हजार शिक्षक भर्ती का मुद्दा हमने उठाया,पर यह हल नहीं हुआ.पीएम मोदी ने पिछड़ों के लिए इतना कुछ किया.इसके बाद भी कुछ बाकी रह गया.हमारे सभी सवाल हल हुए लेकिन एक सवाल का हल नहीं निकल पाया. 69000 शिक्षकों का मसला हल नहीं हो पाया और नुकसान हुआ.उन्होंने कहा कि विपक्ष चुनाव में यह भ्रम फैलाने में सफल रहा कि अगर मोदी जी तो आरक्षण और संविधान खत्म हो जाएगा.लेकिन ये भ्रम कैसे फैल गया कैसे विपक्ष ये भ्रम फैलाने में सफल हो गया.इस तरह से अनुप्रिया पटेल ने यूपी सरकार पर यह बड़ा आरोप मढ़कर बीजेपी को एक बार फिर असहज कर दिया है.
हालांकि अनुप्रिया के आरोप पूरी तरह से निराधार भी नहीं हैं.उन्होंने जिस 69000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण देने में आरक्षण देने में अनियमितता का आरोप लगा रही हैं,उसको लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग भी आपत्तियां जता चुका है.राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस भर्ती में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पांच हजार 844 सीटें सामान्य वर्ग को दे दी गईं.शिक्षक भर्ती में इस अनियमितता को विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनाया. विपक्ष ने इसे आरक्षण पर हमले के रूप में पेश किया.वह आरक्षित वर्ग के लोगों में यह भावना पैदा करने में सफल हो गया कि बीजेपी फिर अगर सरकार में आई तो वह आरक्षण खत्म कर देगी. इस वजह से बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
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