भारतीय कंपनियों के बोर्डरूम से क्यों गायब हैं महिलाएं, 2013 के बाद आए कुछ बदलाव

महिलाओं को बोर्डरूम का किला फतेह करने के बाद भी बोर्ड में शामिल पुरुष सदस्यों के बराबर तनख्वाह नहीं मिलती है? न्‍यूजपेपर गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूके की ब्लू चिप कंपनियों में महिला डायरेक्टर्स को पुरुषों के मुकाबले 73 प्रतिशत कम सैलरी मिलती है.

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नई दिल्‍ली:

भारत हो या फिर अमेरिका, महिलाओं को बराबरी के मौके देने की बात कही जाती है, लेकिन क्‍या ऐसा होती है? अगर असल में ऐसा होता, तो सीनियर पॉजिशिन पर पुरुषों के बराबर महिलाएं भी होतीं. ऐसा नहीं है, इसीलिए भारतीय कंपनियों के बोर्डरूम से महिलाएं गायब हैं. लेकिन ऐसा क्‍यों है...? इस सवाल का जवाब शायद ही किसी के पास हो. BQ Prime में छपी  डेलॉइट ग्लोबल वुमन इन द बोर्डरूम रिपोर्ट, 2021 के मुताबिक, भारतीय कंपनियों के बोर्ड्स में सिर्फ 17.1% महिलाओं की भागीदारी है. ऐसा क्या हो जाता है कि लीडरशिप और फैसले लेने की पोजीशन तक आते-आते महिलाएं गायब हो जाती हैं, उस रूम से जो अहमियत रखता है. ग्लोबली, ये आंकड़ा 19.7% है, जो अब भी निराशाजनक है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लीडरशिप में महिलाओं की स्थिति क्‍या है.

2013 के बाद कुछ बदलाव आए, लेकिन...?
सरकार की ओर से उद्योग जगत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं. प्राइम डेटाबेस की स्टडी के मुताबिक, भारत की लिस्टेड कंपनियों में 2,350 महिलाएं और 10,356 पुरुष बोर्ड डायरेक्टर हैं. भारत में ये परसेंटेज 2014 के मुकाबले 10% बढ़ा है. दरअसल, 2013 में सरकार ने कंपनी एक्ट में बदलाव करके नए नियम बनाए. इसके मुताबिक, हर लिस्टेड कंपनी के बोर्ड में एक महिला का होना अनिवार्य कर दिया गया. इससे कंपनियां बाध्‍य हो गईं. इससे महिलाओं की गाड़ी को उद्योगजगत में थोड़ा धक्का तो लगा, लेकिन रफ्तार बिल्कुल नहीं बढ़ी. डेलॉइट ग्लोबल रिपोर्ट इस ओर खास इशारा करती है कि ये सारी प्रगति की बहुत धीमी चल रही है. अगर हर दो साल में तरक्की की यही रफ्तार रही, तो बराबरी तक पहुंचते-पहुंचते साल 2045 आ जाएगा.

आखिर क्‍यों हैं महिलाएं पीछे...

कंपनियां जुर्माना देने को तैयार, लेकिन महिलाओं को...!
एक्सपर्ट्स की मानें तो नए कानून का कोई खास प्रभाव देखने को नहीं मिला है. कुछ कंपनियां महिलाओं को बोर्ड में शामिल करने की बजाए जुर्माना भरना ज्‍यादा फायदे का सौदा समझती हैं. लेकिन जब ये कानूनी तौर पर जरूरी हो जाता है और छवि का सवाल भी बन जाता है, तब जाकर ऊंट पहाड़ के नीचे आता है. फिर एक महिला को ढ़ूंढ़ने की कवायद शुरू होती है. हालांकि, इसके बाद भी सही विकल्‍प चुना जाए, इसकी गारंटी नहीं. भारत में कुछ कंपनियां जरूर हैं जो न सिर्फ कानून का पालन कर रही हैं, बल्कि महिलाओं को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल भी कर रही हैं. लेकिन ज्यादातर कंपनियों के लिए ये सिर्फ बोर्ड में एक भर्ती की तरह है. आंकड़ों को देखें तो एनएसई की टॉप 500 कंपनियों में से 47% में एक से ज्यादा महिला डायरेक्टर है. लेकिन, बाकी 50% में सिर्फ एक महिला डायरेक्टर है. केवल प्रतीकात्मक!

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बोर्डरूम का किला फतेह करने के बाद भी महिलाएं सिर्फ...!
महिलाओं को बोर्डरूम का किला फतेह करने के बाद भी बोर्ड में शामिल पुरुष सदस्यों के बराबर तनख्वाह नहीं मिलती है? न्‍यूजपेपर गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूके की ब्लू चिप कंपनियों में महिला डायरेक्टर्स को पुरुषों के मुकाबले 73 प्रतिशत कम सैलरी मिलती है. भारत के केस में आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं. बोर्ड में शामिल कई महिलाओं की शिकायत रहती है कि उनकी बात सुनी नहीं जाती, बल्कि उन्हें ये सुनने को मिलता है- "बस आप साइन कर दीजिए..."

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NSE में लिस्टेड कई कंपनियों में एक ही महिला डायरेक्‍ट
कानून को बेमानी साबित करते हुए निफ्टी 50 की कुछ कंपनियों में एक ही महिला अलग-अलग कंपनी में डायरेक्टर है. एनएसई में लिस्टेड तमाम कंपनियों में से करीब 14 महिलाएं ऐसी हैं, जो 5-6 कंपनियों में डायरेक्टर हैं. जबकि 7 महिलाएं ऐसी हैं, जो 7-7 कंपनियों में डायरेक्टर हैं. ये बहुत चौंकाने वाला नंबर है. ये इतना केंद्रित नहीं होना चाहिए. कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय इन आंकड़ों पर नजर रख रहा है." तो अब आप जानते हैं कि सरकार की नजर आप पर है. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाला इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स एक बहुत बड़ा डेटा बैंक मैनेज करता है. उनकी वेबसाइट पर ये तमाम योग्य महिलाएं रजिस्टर्ड हैं. इस डेटा बैंक में ऐसी योग्य महिलाओं की संख्या 6,000 से ज्यादा है. जब तक आप मिडिल मैनेजमेंट से लीडरशिप तक का रास्ता नहीं बनाएंगे, तो आप योग्य, अनुभवी महिला लीडर्स को बोर्ड का हिस्सा बनते कैसे देख पाएंगे?

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