कांग्रेस कर रही लोकसभा में पार्टी के नए नेता की तलाश, लेकिन ये है 'ट्विस्ट'

चौधरी को पद से हटाने को लेकर काफी लंबे समय से चर्चा चल रही थी. पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि "एक आदमी एक पद" नियम को अब सख्ती से लागू किया जाएगा.

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जिन्हें सबसे ज्यादा दावेदार माना जा रहा है, उनमें शशि थरूर और मनीष तिवारी हैं.
नई दिल्ली:

कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की जगह लोकसभा में किसी और को पार्टी नेता बनाया जाएगा. सूत्रों के मुताबिक, जिन जी-23 नेताओं ने पिछले साल सोनिया गांधी को विस्फोटक खत लिखा था, उन्हें इस पद का दावेदार माना जा रहा है. सूत्रों ने साथ ही कहा कि राहुल गांधी लोकसभा में पार्टी के नेता नहीं होंगे. संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होगा. इस पद के लिए जिन्हें सबसे ज्यादा दावेदार माना जा रहा है, उनमें शशि थरूर और मनीष तिवारी हैं. सूत्रों का कहना है कि गौरव गोगोई, रवनीत सिंह बिट्टू और उत्तम कुमार रेड्डी के नाम पर भी विचार किया जा रहा है. 

थरूर और मनीष तिवारी उस जी-23 समूह में शामिल थे, जिन्होंने पिछले साल अगस्त महीने में सोनिया गांधी को पहला खत लिखा था. इस पत्र में पार्टी नेतृत्व में बदलाव और व्यापक संगठनात्मक परिवर्तन की मांग की गई थी. इसकी वजह से एक आंतरिक तूफान शुरू हो गया था. इसके बाद कई नेताओं को पार्टी में अपने पद खोने पड़े थे.

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उनमें से सबसे प्रमुख कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद थे, जिन्हें महासचिव के पद से हटा दिया गया था. हालांकि, वे कांग्रेस वर्किंग कमेटी के हिस्सा बने रहे. मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव पद से हटा दिया गया था.

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चौधरी को पद से हटाने को लेकर काफी लंबे समय से चर्चा चल रही थी. पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि "एक आदमी एक पद" नियम को अब सख्ती से लागू किया जाएगा.

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चौधरी बंगाल कांग्रेस के प्रमुख और लोकसभा में पार्टी नेता दोनों हैं. सूत्रों का कहना है कि अन्य नेता जिनके पास दो पद हैं, उन्हें भी एक पद छोड़ना होगा. 

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पार्टी ने संसद के लिए 15 जुलाई को एक रणनीतिक सत्र भी बुलाया है. सूत्रों का कहना है कि संसद में कांग्रेस राफेल डील की ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी द्वारा जांच की मांग करेगी. 

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साल 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हारने के बाद से राफेल डील चर्चा से हट गई थी. लेकिन इसकी चर्चा को अब फिर हवा तब मिली है, जब फ्रांस की एक कोर्ट ने 59 हजार करोड़ की इस डील की जांच के आदेश जारी किए हैं. 

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