भारत के इतिहास का वह सबसे अंधेरा अध्याय फिर खुल गया है. दो हजार साल बाद सबसे रहस्यमय हिंदू राजा पुष्यमित्र शुंग फिर जिंदा हो गए हैं! सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है- नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया किसने? बौद्धों को सताया किसने? मौर्य वंश के बाद सत्ता में आए पुष्यमित्र शुंग पर आरोप है कि जिम्मेदार वह हैं. यह पहली बार नहीं है. इसको लेकर संसद में ओवैसी और निशिकांत दुबे भी भिड़ चुके हैं.
मौर्य और गुप्त काल के बीच का शुंग कालखंड इतिहास के सबसे अंधेरे पन्नों में शुमार है. क्योंकि इस अवधि की बहुत सटीक जानकारी लिखित या अभिलेखों में नहीं मिलती है. अनुमान ज्यादा हैं, इसलिए कथाएं भी ज्यादा हैं. लगभग सभी शुंग वंश खत्म होने के बाद लिखी गई हैं. लगभग 300 साल बाद लिखे गए बौद्ध स्रोत अशोकावदान और दिव्यावदान पुष्यमित्र की एक अलग छवि दिखाते हैं. वहीं कुछ इतिहाकार पुष्यमित्र को बेनिफिट ऑफ डाउट देते हैं. लेकिन सवाल वही है क्या पुष्यमित्र शुंग ने हकीकत में 84 हजार बौद्ध मठों को खंडहरों में बदला था? तो यह कहानी शुरू होती है मौर्य वंश के आखिरी शासक बृहद्रथ से.
सबसे पहले जरा मौर्य वंशावली को थोड़ा समझ लेते हैं. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य थे. इसके बाद बागडोर उनके बेटे बिंदुसार और फिर उनके बेटे अशोक के हाथों में आई. मौर्य वंश और बौद्ध धर्म का यह स्वर्णिम काल था. 184-187 ईसा पूर्व बृहद्रथ मौर्य वंश के अंतिम शासक हुए. यहीं पर पुष्यमित्र की एंट्री होती है. ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र एक परेड के दौरान बृहद्रथ की हत्या करते हैं. (करीब 800 साल बाद सातवीं सदी में लिखे गए बाणभट्ट के हर्षचरित में इसका उल्लेख है). और यहां से शुंग वंश शुरू होता है. करीब एक शताब्दी (करीब 120 साल) तक यह वंश मध्य भारत पर राज करता है. और इस दौरान बौद्ध धर्म का हिंदुस्तान में प्रभाव बहुत तेजी से घटता है.
पुष्यमित्र शुंग कौन थे? उन्होंने क्या बौद्धों पर अत्याचार किए?
शुंग राजवंश (187 ईसा पूर्व से 73 ईसवी) और पुष्यमित्र के बारे में अधिकतर जानकारी सालों बाद में लिखे गए पुराणों से मिलती है. ज्यादातर कहानियां 300 साल बाद की हैं. पुष्यमित्र के शुरुआती जीवन का विवरण उपल्ब्ध नहीं है. गुप्त वंश में लिखे अशोकावदान और दिव्यावदान में पुष्यमित्र की बहुत क्रूर छवि दिखाई गई है. दिलचस्प बात यह है कि इनमें पुष्यमित्र को ब्राह्मण न बताकर मौर्य वंश से ही जोड़ा गया है. इन दोनों बौद्ध स्रोतों का दावा है कि पुष्यमित्र ने बौद्धों को सताया और उनके मठों और पूजा स्थलों को नष्ट किया. दिव्यावदान में तो दावा है कि पुष्यमित्र ने बौद्ध भिक्षु के सिर के बदले स्वर्ण मुद्राएं देने का ऐलान तक किया था. कालिदास के मालविकाग्निमित्रम में पुष्यमित्र के बेटे अग्निमित्र के कुल का जिक्र है. उसे बैंबिक वंश और कश्यप गोत्र का बताया गया है. तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ ने भी शुंगों को ब्राह्मण माना. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि यह सारा साहित्य शुंग वंश खत्म होने के सालों बाद लिखा गया.ऐसे में यह कितना सटीक है, इस पर सवाल है. पुष्यमित्र के एक दूसरे पहलू का भी जिक्र आता है.
इतिहासकार रोमिला थापर की किताब में क्या है?
जानी मानी इतिहासकार रोमिला थापर अपनी किताब अर्ली इंडिया फ्रॉम द ऑरिजन टु एडी 1300 में लिखती हैं, 'पुष्यमित्र ने मौर्य सेना का नेतृत्व करते हुए मौर्यों के अंतिम शासक की हत्या की और सिंहासन हथिया लिया था.' थापर लिखती हैं बौद्ध स्रोत दावा करते हैं कि पुष्यमित्र ने बौद्धों को सताया और उनके मठों और पूजा स्थलों को नष्ट किया. यह एक अतिशयोक्ति हो सकती थी, लेकिन पुरातात्विक साक्ष्य से पता चलता है कि शुंग क्षेत्र में बौद्ध स्मारक उस समय जीर्ण-शीर्ण हालत में थे और उनका जीर्णोद्धार किया जा रहा था.
हालांकि वह जोड़ती हैं कि सांची के स्तूप और कौशांबी के मठ को हुए नुकसान का संबंध शुंग काल से ही है। वह पुष्यमित्र के दो अश्वमेध यज्ञों को उनके शासन काल में ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिए जाने से भी जोड़ती हैं. हालांकि कालिदास रचित मालविकाग्निमित्रम में पुष्यमित्र की बौद्ध स्रोतों से अलग छवि का जिक्र है.
क्या पुष्यमित्र ने यवनों से मिलने पर बौद्धों पर अत्याचार किए?
पुष्यमित्र ने जब सत्ता संभाली, उस समय यवन खैबर तक बढ़ चले थे. युग पुराण के मुताबिक यवन साकेत (अयोध्या) और कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) तक आ चुके थे. इसके बाद वह वापस लौट गए, जिस पर पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ किया. कुछ कहानियां यह भी हैं यवनों से मिलने के कारण पुष्यमित्र बौद्धों से भारी नाराज हुए और उन पर हमले किए. हालांकि इसका भी इतिहास में कोई ठोस प्रमाण नहीं है.
तो फिर नालंदा को किसने जलाया?
नालंदा दुनिया में ज्ञान के केंद्र के रूप में विख्यात था. नालंदा की यह सुनहरी कहानी पांचवीं शताब्दी से लगभग 12वीं शताब्दी तक चली. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में 1193 तक करीब 10 हजार विदेशी अध्ययन करते रहे. बाद में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने उसे तबाह किया. इतिहासकारों बताते हैं कि विश्वविद्यालय पर जिस समय हमला किया गया उस समय उसकी लाइब्रेरी में करीब 90 लाख किताबें और पांडुलिपियां थीं, जो राख हो गईं. तो नालंदा पर हमले का पुष्यमित्र कनेक्शन दूर-दूर तक नहीं दिखता. क्योंकि यह वंश उससे कई सौ साल पहले ही खत्म हो चुका था.
कुछ रोचक बातें
इतिहास में पुष्यमित्र शुंग की जानकारी कहां मिलती है?
- शुंग वंश खत्म होने के बाद गुप्त वंश में चार पुराण- वायु, ब्रह्मा, भविष्य और मत्स्य लिखे गए. इनमें पुष्यमित्र के बारे में जानकारी मिलती है.
- कालिदास की मालविकाअग्निमित्र में भी पुष्यमित्र शुंग का जिक्र आता है. यह पुष्यमित्र के बेटे अग्निमित्र की प्रेम कहानी है.
- शुंग वंश के करीब आठ सौ साल बाद लिखे बाणभट्ट के हर्षचरित में भी पुष्यमित्र शुंग का जिक्र है. इसमें शुंग का जिक्र ऐसे अनार्य सेनानी के तौर पर है जिसने बृहद्रथ की हत्या की थी.
पुष्यमित्र की मृत्यु कैसे हुई?
युग पुराण बताता है कि पुश्यमित्र का दिल मद्रदेश की सुंदरी पर आ गया था. शुंग उसके लिए युद्ध लड़ते हैं और मारे जाते हैं.
दिव्यावदान कब लिखा गया?
दिव्यावदान दूसरी सदी में लिखा गया. यानी पुष्यमित्र की मृत्यु के करीब 300 साल बाद.
पुष्यमित्र का राज्य कहां तक था?
बौद्ध स्रोत पुष्यमित्र की सीमा को आज के जालंधर से मगध-अंग प्रदेश तक बताते हैं. पौराणिक स्रोतों में उनके राज्य के विस्तार को कौशल और मगध तक ही बताया जाता है.
क्या पुष्यमित्र मौर्य वंश से थे?
बुद्ध स्रोत अशोकावदान के अंग्रेजी अनुवाद द लीजेंड्स ऑफ किंग अशोक के आखिरी पाठ में पुष्यमित्र का संबंध मौर्य वंश से जोड़ा गया है. इसमें लिखा गया है कि अशोक के पुत्र कुणाल हुए. कुणाल के पुत्र संपादिन और संपादिन के पुत्र बृहस्पति और बृहस्पति के पुत्र पुष्यमित्र हुए.