पाकिस्तानी लड़की से प्यार, फिर शादी... भारत के प्रधानमंत्रियों पर आरोप लगाने वाले यासीन मलिक की पूरी कुंडली

यासीन मलिक ने भारत के प्रधानमंत्रियों को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दायर कर खुद को पाक-साफ साबित करने की कोशिश की है. हालांकि, उसकी कुंडली कुछ और कहानी बताती है. यहां जानिए उनके बचपन से लेकर अब तक की कहानी...

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  • यासीन मलिक का जन्म 1966 में श्रीनगर के मायसूमा इलाके में हुआ था और वे कश्मीर के अलगाववादी नेता हैं.
  • उन्होंने 2009 में पाकिस्तानी कलाकार मुशाल हुसैन से निकाह किया, जो पाकिस्तान में काफी प्रभावशाली हैं.
  • 2022 में टेरर फंडिंग मामले में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई, और वे वर्तमान में तिहाड़ जेल में बंद हैं.
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यासीन मलिक.  भारत में जन्म लेने वाले इस शख्स की कहानी बेहद अजीब है.  3 अप्रैल 1966 को श्रीनगर के मायसूमा इलाके में जन्मे यासीन मलिक ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों पर दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कई विस्फोटक दावे किए हैं. विस्फोटक दावों से पहले यासीन मलिक को जान लीजिए. यासीन के पिता गुलाम कादिर मलिक कश्मीर में एक सरकारी बस ड्राइवर थे. यासीन मलिक की पढ़ाई श्रीनगर के प्रताप कॉलेज में हुई. उनके परिवार के तमाम लोग अब विदेश में रहते हैं और वो लंबे वक्त से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. यासीन ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि कश्मीर में सेना का जुल्म देखकर उसने हथियार उठाया.  इस कहानी में उनकी प्रेम कहानी भी पूरी तरह मायावी है. इसमें आईएसआई का लिंक भी जोड़ा जाता है. 

यासीन मलिक की मायावी शादी

यासीन मलिक की मुशाल हुसैन से मुलाकात 2005 में हुई थी. यासीन कश्मीर के अलगाववादी मूवमेंट के लिए पाकिस्तान का समर्थन मांगने वहां गया था. वहां यासीन के भाषण को सुनने के बाद मुशाल हुसैन उससे प्रभावित हो गई. बाद में दोनों एक दूसरे के करीब आ गए. 22 फरवरी 2009 को यासीन मलिक ने पाकिस्तानी कलाकार मुशाल हुसैन से निकाह किया. इस शादी का जश्न समूचे पाकिस्तान में मनाया गया, जबकि भारत में इसकी आलोचना की गई. मुशाल कश्मीरी मूल की पाकिस्तानी नागरिक हैं.  कुछ लोगों ने तो इसे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की साजिश तक कहा था. वहीं कुछ लोगों का मानना था कि यासीन ने ये शादी भारत पर दबाव बनाने के लिए और कश्मीर में खुद को सबड़े बड़े नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए की. मुशाल ख़ुद लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से स्नातक हैं.  एक इंटरव्यू में मुशाल ने बताया था कि उन्होंने ही यासीन को प्रपोज किया था. यासीन ने पहले तो शादी से मना किया पर फिर मान गया. मार्च 2012 में मुशाल और यासीन को एक बेटी हुई. उसका नाम रजिया सुल्ताना है.

मुशाल हुसैन अपने शौहर यासीन से उम्र में 20 साल छोटी है.  मुशाल हुसैन के पाकिस्तान में नेताओं और अधिकारियों के साथ संबंध है. मुशाल के पिता अंतरराष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्री थे, जबकि उनकी मां पाकिस्तान मुस्लिम लीग महिला विंग की महासचिव थीं. मुशाल ने 6 साल की उम्र में पेंटिंग शुरू कर दी थी और वह सेमी न्यूड पेंटिंग बनाने के लिए प्रसिद्ध है. यासीन मलिक की तरह उसकी पत्नी भी भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर में एक्टिव रहती हैं. यासीन मलिक की पत्नी मुशाल हुसैन मलिक खुले तौर पर पति का समर्थन करती है और भारत विरोधी अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहती है.  मुशाल हुसैन मलिक को 2022 में पाकिस्तान की कार्यवाहक सरकार में प्रधानमंत्री की मानवाधिकार और महिला सशक्तिकरण के मामलों के विशेष सलाहकार के पद पर भी नियुक्त किया गया था. जाहिर है इससे उनकी पाकिस्तान में हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

यासीन मलिक के गुनाहों की शुरूआत

यासीन मलिक के गुनाहों का सफर 1980 के दशक में शुरू हुआ. उसने सबसे पहले ताला पार्टी नाम का एक राजनीतिक संगठन बनाया. यासीन मलिक का नाम 1983 के इंडिया वेस्ट इंडीज मैच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप में सामने आया था. इसके बाद 1984 में वह पहली बार जेकेएलएफ के चीफ मकबूल भट की फांसी के बाद इस संगठन के लिए खुलकर सामने आया. मकबूल भट सोपोर (बारामूला) का रहने वाला था और यासीन को उसके करीबियों में जाना जाता था. 1984 में जब कश्मीरी पंडित जज नीलकंठ गंजू की कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई, तो यासीन मलिक ने इसका जमकर विरोध किया. यासीन मलिक की ताला पार्टी ने कश्मीर में मकबूल भट को फांसी देने के फैसले के खिलाफ पोस्टर लगाए और प्रदर्शन किए. इस आरोप में यासीन को जेल भेज दिया गया. 1986 में यासीन मलिक ने जेल से निकलकर ताला पार्टी का नाम इस्लामिक स्टूडेंट लीग कर दिया और इससे कश्मीरी स्टूडेंट को जोड़ने की शुरुआत की. कुछ वक्त में इस्लामिक स्टूडेंट लीग का संगठन बड़ा हो गया और इसके साथ अशफाक वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम भी जुड़े. अशफाक वानी का नाम 1989 के दौरान उस वक्त देश भर ने जाना, जब उसने गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण किया. 

यासीन मलिक के आतंक का सफर

1986 में राजीव गांधी की सरकार ने कश्मीर घाटी में गुलाम मोहम्मद शेख की सरकार को बर्खास्त किया और फिर कांग्रेस पार्टी ने फारूक अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस से हाथ मिला लिया. 1987 के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान यासीन मलिक ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ज्वाइन कर लिया. इस संगठन ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में जमकर प्रचार किया. मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का एक उम्मीदवार मोहम्मद युसूफ शाह भी था, जो कि श्रीनगर के आमीराकदल से उम्मीदवार बनाया गया था. यासीन मलिक को मोहम्मद युसूफ शाह का बूथ एजेंट बनाया गया था. आमीराकदल के चुनाव का परिणाम घोषित होने के वक्त मोहम्मद युसूफ शाह दोपहर तक मतगणना में काफी आगे था और उसकी जीत तय थी, लेकिन बाद में मोहम्मद युसूफ को पराजित घोषित कर अमीराकदल से नेशनल कॉन्फ्रेंस कैंडिडेट गुलाम मोहिउद्दीन शाह विजयी हो गए. युसूफ शाह और यासीन मलिक को 1987 के इस चुनाव के बाद जेल में डाल दिया गया. जेल के रिहा होने के बाद मोहम्मद युसूफ शाह मोहम्मद एहसान डार के संपर्क में आया, जो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का संस्थापक था. यूसुफ डार ने इसके बाद अपना नाम बदल लिया और खुद को सैयद सलाहुद्दीन घोषित कर लिया. फिर 1988 में यासीन मलिक ने भी आतंक का रास्ता अपना लिया. उसने पाक अधिकृत कश्मीर जाकर आतंक की ट्रेनिंग ली और इसके बाद कश्मीर लौटकर जेकेएलएफ का एरिया कमांडर बन गया.

यासीन मलिक के जेल का सफर

1989 तक यासीन मलिक जेकेएलएफ का एक प्रमुख चेहरा बन गया. उसने अशफाक वानी, हामिद शेख और जावेद अहमद मीर नाम के तीन आतंकियों के साथ मिलकर 'हाजी' नाम का एक गुट भी बनाया. यासीन मलिक का नाम 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण के दौरान आया. इस कांड का प्रमुख साजिशकर्ता अशफाक वानी था. 8 दिसंबर 1989 की इस घटना के बाद 13 दिसंबर को रुबैया को रिहा किया गया. रुबैया को दिल्ली लाने के एवज में सरकार ने सात आतंकियों को रिहा किया, जिसका देश भर में विरोध हुआ. रुबैया के अपहरण की घटना के बाद जनवरी 1990 में यासीन मलिक ने श्रीनगर में साथियों के साथ मिलकर 4 एयरफोर्स जवानों की हत्या की. इसी साल मार्च में यासीन मलिक के साथी अशफाक वानी को मार गिराया गया. इसके बाद अगस्त में यासीन को घायल हालत में गिरफ्तार किया गया. यासीन मलिक की गिरफ्तारी के बाद करीब 4 साल बाद उसे जमानत पर रिहा किया गया. मई 1994 में रिहा हुए यासीन मलिक ने सीजफायर का ऐलान किया और कहा कि उसने गांधीवाद का रास्ता चुन लिया है.  इसके जवाब में पाकिस्तान से उसकी आतंकी फंडिंग रोक दी गई और जेकेएलएफ ने संस्थापक अमानतुल्लाह खान ने उसे संगठन के अध्यक्ष के पद से हटा दिया. बाद में यासीन ने जेकेएलएफ का एक अलग गुट भी बना लिया. कश्मीर की आजादी की बात कहने वाले यासीन मलिक को जमानत के पांच साल बाद 1999 में फिर गिरफ्तार किया गया.

यासीन मलिक को उम्रकैद

इस गिरफ्तारी के वक्त उसपर पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया गया. उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. 2002 में अटल बिहारी सरकार के दौरान उसे प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म ऐक्ट (POTA) के तहत गिरफ्तार किया गया. बाद में यासीन मलिक जेल से रिहा हुआ और इसके बाद उसने भारत और पाकिस्तान के तमाम सियासी नेताओं से भेंट की. साल 2006 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक समेत जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग संगठनों और पार्टियों के प्रतिनिधियों को अपने घर मुलाकात के लिए बुलाया. मनमोहन सिंह के साथ इन सभी की राउट टेबल टॉक हुई. यासीन मलिक मनमोहन सिंह से मिलने पहुंचा तो सिंह ने उसका गर्मजोशी से स्वागत भी किया. इसके बाद यासीन मलिक ने 2007 में सफर ए आजादी के नाम से एक कैंपेन शुरु किया. यासीन ने इस अभियान के दौरान दुनिया भर के तमाम इलाकों में जाकर भारत विरोधी भाषण भी दिए. इसी सफर के दौरान 2013 में उसकी तस्वीर लश्कर ए तैयबा के चीफ हाफिज सईद के साथ भी सामने आई. साल 2016 में कश्मीर घाटी की हिंसा के दौरान पत्थरबाजी पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए सरकार ने टेरर फंडिंग केस की जांच शुरू की. इस मामले में 2017 में यासीन मलिक को भी आरोपी बनाया गया. एनआईए की जांच के दौरान यासीन के खिलाफ कई अहम सबूत भी मिले. इसके अलावा कश्मीर समेत घाटी के कई इलाकों में उसकी अवैध संपत्तियों का पता भी चला था. इसी मामले में 25 मई 2022 को अदालत में स्पेशल जज NIA प्रवीण सिंह ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई. वो अब भी जेल में हैं.
 

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