जब अंग्रेजों से रानी चेनम्मा की सेना ने लिया था लोहा, पढ़िए अनसुनी नायिका की कहानी

रानी चेनम्मा के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद निडर थी. 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक में उनका जन्म हुआ. बचपन से ही वह काफी तेज-तर्रार थी. घुड़सवारी से लेकर तलवारबाजी में उनके जैसा उनके गांव में दूसरा कोई नहीं था. लेकिन, उनके निजी जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए.

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नई दिल्ली:

देश स्वतंत्रता दिवस का पर्व बहुत ही धूमधाम से मना रहा है. चारों तरफ जश्न का माहौल है. लेकिन, यह स्वतंत्रता हमें इतनी आसानी से नहीं मिली. इस स्वतंत्रता के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है.आज की युवा पीढ़ी महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के बारे में तो जानती है, लेकिन, उन गुमनाम नायकों के बारे में नहीं जानती, जिन्होंने आजादी के लिए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. आज बात ऐसी ही एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की, जिसकी सेना ने लगभग 12 दिनों तक अंग्रेजों से लोहा लिया था, उनका नाम है रानी चेनम्मा.

रानी चेनम्मा के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद निडर थी. 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक में उनका जन्म हुआ. बचपन से ही वह काफी तेज-तर्रार थी. घुड़सवारी से लेकर तलवारबाजी में उनके जैसा उनके गांव में दूसरा कोई नहीं था. लेकिन, उनके निजी जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए.

उनकी शादी कित्तूर के राजा मल्लसरजा देसाई के साथ हुई. रानी केवल 15 साल की थी. लेकिन, उन पर दुख का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब पति के देहांत के बाद बेटे की मौत हुई. बाद में रानी ने एक लड़के को गोद लिया. जिसे अपने स्रमाज्य का उत्तराधिकारी बनाना था. रानी के इस फैसले से अंग्रेज असहमत थे. अंग्रेजों ने रानी से कहा कि वह ऐसा न करें. अंग्रेजों द्वारा मिले सलाह को रानी ने ठुकरा दिया. बस, यहीं से रानी चेनम्मा और अंग्रेजों के बीच भीषण युद्ध का जन्म हुआ.

पहली लड़ाई में रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों को पस्त कर दिया. अंग्रेजों को लगा कि वह रानी चेनम्मा की सेना से पार नहीं पा सकते हैं. लेकिन, अंग्रेजों की पुरानी फितरत अपनी बात से पलट जाना थी.

अंग्रेजों ने पुरानी हार का बदला लेने के लिए कित्तूर पर हमला कर दिया. इधर, अंग्रेजों से लगभग 12 दिनों तक रानी की सेना लड़ती रही. लेकिन, अंग्रेजों द्वारा सेना को लालच के साथ अच्छा प्रस्ताव दिया गया. जिसके चलते अंग्रेजों ने रानी को एक किले में पांच साल तक कैद कर लिया.

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इतिहासकारों के अनुसार, पांच साल कैद में रहने के बाद उनका 21 फरवरी 1829 को देहांत हुआ. आज भी रानी चेनम्मा की वीरता के लिए उन्हें याद किया जाता है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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