- विदेश मंत्री जयशंकर ने सदन को बताया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सरकार ने क्या कदम उठाए.
- जयशंकर ने कहा कि अमेरिका की तरफ से हस्तक्षेप नहीं हुआ. साथ ही पीएम मोदी और ट्रंप के बीच कोई फोन कॉल नहीं हुई.'
- उन्होंने बताया कि यूएन में 193 देश हैं, पाकिस्तान के अलावा केवल 3 देशों ने ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया.
28 जुलाई सोमवार के संसद के मॉनसून सत्र में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा की गई. विदेश मंत्री एस जयशंकर भी इस पर खूब गरजे. उन्होंने विपक्ष की तरफ से उठाए गए हर सवाल का जवाब अपने ही अंदाज में दिया. इस दौरान उन्होंने साफ कर दिया कि जिस समय ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई जारी थी, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई भी वार्ता नहीं हुई. इसके साथ ही उन्होंने मध्यस्थता से भी साफ इनकार कर दिया. 5 प्वाइंट्स में समझिए कि कैसे विदेश मंत्री जयशंकर ने सदन को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में सबकुछ बताया.
'किसने सोचा था आतंकी अड्डे नष्ट होंगे?'
सोमवार को शाम करीब 6:30 बजे जयशंकर ने अपना भाषण शुरू किया. विदेश मंत्री ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र किया जिसमें 26 लोगों कीआतंकियों ने नृशंस हत्या कर दी थी. उन्होंने हमले के अगले दिन भारत की तरफ से पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्रवाई का भी जिक्र किया, जिसमें सिंधु जल संधि को सस्पेंड करना, पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द करना, इस्लामाबाद उच्चायोग के राजनयिकों को अवांछित घोषित करना और अटारी सीमा को बंद करना शामिल था. उन्होंने पहलगाम हमले और उसके बाद की प्रतिक्रिया पर विपक्ष की आलोचना की. जयशंकर ने विपक्ष से सवाल किया, 'आप में से किसने सोचा था कि बहावलपुर और मुरीदके जैसे उनके अड्डे इस तरह ध्वस्त हो जाएंगे?' उन्होंने आगे कहा, 'अपने कार्यकाल के दौरान आपने इसके बारे में कब सोचा था? आपके मन में यह बात आई ही नहीं. बल्कि, इसके उलट, आपने 26 साल बाद इसे खारिज कर दिया.'
'मोदी और ट्रंप के बीच नहीं हुई कोई बात'
भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में अमेरिका की भागीदारी को लेकर विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए, जयशंकर ने साफ किया कि उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था, जिसमें प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अगर कोई हमला होता है तो भारत जवाबी कार्रवाई करेगा. उन्होंने कहा, 'भारत ने उस बड़े हमले को नाकाम कर दिया. हमारी प्रतिक्रिया दी गई.' इसके अलावा, जयशंकर ने बताया कि केंद्र को 10 मई को फोन आए थे, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान युद्धविराम के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, 'भारत ने कहा कि अगर पाकिस्तान तैयार है, तो अनुरोध डीजीएमओ स्तर पर उनकी ओर से आना चाहिए.' जयशंकर ने साफ किया कि अमेरिका की ओर से किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं हुआ. उन्होंने साफ शब्दों में कहा, 'इस दौरान पीएम मोदी और (डोनाल्ड) ट्रंप के बीच कोई फोन कॉल नहीं हुई.'
'भारत को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन'
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस खास बहस के दौरान कहा, 'यह बिल्कुल साफ था कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की तरफ से मंजूर किए गए फैसलों के बाद, पहलगाम हमले पर भारत की प्रतिक्रिया यहीं नहीं रुकेगी. कूटनीतिक दृष्टिकोण से, विदेश नीति के दृष्टिकोण से, हमारा काम पहलगाम हमले की वैश्विक समझ को आकार देना था.' उन्होंने आगे कहा, 'हमने जो करने की कोशिश की, वह यह था कि हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान की तरफ से सीमा पार आतंकवाद के लंबे समय से इस्तेमाल को उजागर करें. हमने पाकिस्तान में आतंकवाद के इतिहास पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे इस विशेष हमले का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाना और भारत के लोगों के बीच सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाना था.'
जयशंकर ने पहलगाम हमले के बाद भारत को मिले अंतरराष्ट्रीय समर्थन का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि क्वाड ने आतंकवाद की साफ निंदा की है और अपने बयान में पहलगाम हमले का ज़िक्र किया है. उन्होंने आगे कहा कि ब्रिक्स, जिसके सदस्य चीन, ईरान और रूस हैं, ने भी हमले की निंदा की है. जयशंकर ने कहा, 'अगर भारत पर हमला होता है और कोई देश कहता है कि वह सीमा पार आतंकवाद की निंदा करता है, तो यह स्पष्ट है कि उनका क्या मतलब है.'
'सिर्फ 3 देशों ने किया विरोध'
जयशंकर ने यह भी कहा कि सरकार की कूटनीति का केंद्र बिंदु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद था. उन्होंने लोकसभा में कहा, 'हमारे लिए चुनौती यह थी कि इस समय पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का सदस्य है और हम नहीं... सुरक्षा परिषद में हमारे दो लक्ष्य थे: 1- सुरक्षा परिषद से जवाबदेही की आवश्यकता का समर्थन प्राप्त करना, और 2- इस हमले को अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाना.' उन्होंने आगे कहा, 'मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि अगर आप 25 अप्रैल के सुरक्षा परिषद के बयान को देखें, तो सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है.'
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा के दौरान लोकसभा में बताया, '25 अप्रैल से लेकर ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने तक कई फोन कॉल और बातचीत हुई. मेरे स्तर पर 27 कॉल आए, पीएम मोदी के स्तर पर लगभग 20 कॉल आए. लगभग 35-40 समर्थन पत्र आए, और हमने जो करने की कोशिश की, वह एक कहानी बनाने, ऑपरेशन सिंदूर को लॉन्च करने के लिए कूटनीति तैयार करने की थी. संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं, पाकिस्तान के अलावा केवल 3 देशों ने ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया.'
'26/11 में आपने क्या किया था?'
जयशंकर ने विपक्ष से कहा, 'आप खुद को एक साथ जोड़ रहे हैं.' हमसे पूछा गया था कि आप इस समय क्यों रुक गए? आप आगे क्यों नहीं बढ़े? यह सवाल वे लोग पूछ रहे हैं, जिन्होंने 26/11 के बाद महसूस किया था कि निष्क्रियता ही सबसे अच्छी कार्रवाई है.' उन्होंने कड़े शब्दों में विपक्ष से पूछा, '26/11 नवंबर 2008 में हुआ था. प्रतिक्रिया क्या थी? प्रतिक्रिया शर्म-अल-शेख की थी. शर्म-अल-शेख में, तत्कालीन सरकार और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस बात पर सहमत हुए थे कि आतंकवाद दोनों देशों के लिए एक बड़ा खतरा है. अब, आज लोग कह रहे हैं कि अमेरिका आपको जोड़ रहा है, रूस आपको जोड़ रहा है, यही मैंने दीपेंद्र हुड्डा जी को कहते सुना. आप खुद को जोड़ रहे हैं. आपको किसी विदेशी देश से यह कहने की जरूरत नहीं थी कि कृपया भारत को पाकिस्तान से जोड़िए... और सबसे बुरी बात यह है कि उन्होंने उसमें बलूचिस्तान का जिक्र स्वीकार कर लिया.'