रविवार (7 फरवरी) को उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़, जिसमें अब तक 18 लोग मारे जा चुके हैं और 200 से ज्यादा लोग लापता हैं, के क्या कारण हो सकते हैं? इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह इंगित करना अभी जल्दबाजी होगी कि आपदा के कारण क्या थे? वैसे ग्लेशियल झील के फटने या टूटने से लेकर एवलांच तक की घटनाओं को इस हादसे के पीछे अलग-अलग सिद्धांत के तौर पर देख जा रहा है. इस घटना की वजह से 'हिमनदी झील का बर्फ बाढ़" का प्रकोप बनकर उभरा और उसकी वजह से नदी में मलबा गिरा. पर्यावरणविदों ने क्षेत्र में विकास की तीव्र गति और जलवायु परिवर्तन को भी आपदा के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
भूवैज्ञानिक गतिविधियों का अध्ययन करने वाले देश के शीर्ष निकाय, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ने आज कहा कि उत्तराखंड का जल-प्रलय "ग्लेशियल काल्विंग" के कारण प्रतीत होता है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के चीफ दिनेश गुप्ता ने कहा, "इस तबाही के बाद, हम फिर से एक समिति का गठन करेंगे. इस घटना के कारण के बारे में भविष्यवाणी करना फिलहाल जल्दबाजी होगी. शुरुआती लक्षण से यह ऋषिगंगा और धौलीगंगा क्षेत्र में सबसे अधिक ऊंचाई पर ग्लेशियल काल्विंग प्रतीत होता है."
उत्तराखंड ग्लेशियर तबाही की नई तस्वीरें, तपोवन सुंरग में रेस्क्यू मिशन जारी
रविवार को, अधिकारियों ने शुरू में कहा था कि इसका कारण एक ग्लेशियर का टूटकर नदी में गिरना था, बाद में इसके बजाय कहा गया कि इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)की घटना कहा जा सकता है. यह तब होता है जब भूवैज्ञानिक कारणों से कोई ग्लेशियर पीछे हटती है, तब वहां झील की सीमा- बन जाती है, और वहां बड़ी मात्रा में पानी का तेज बहाव (बाढ़ जैसी स्थिति) होने लगता है जो आसपास सबकुछ नष्ट कर देता है.
IIT के एक प्रोफेसर ने कहा कि यह बादल फटने जैसा नहीं लग रहा था. आईआईटी-इंदौर के ग्लेशियोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद फारूक आजम ने कहा, "ग्लेशियर फटने की यह एक बहुत ही दुर्लभ घटना है. सैटेलाइट और Google earth की इमेज इस क्षेत्र के आसपास कोई भी ग्लेशियल झील (हिमाच्छादित झील) नहीं दिखाती हैं, लेकिन संभावना है कि इस क्षेत्र में वाटर पॉकेट हो सकता हो. ऐसे वाटर पॉकेट भी ग्लेशियरों के अंदर झील जैसा ही होता है , जो इस घटना के लिए अग्रणी कारक हो सकता है...लेकिन इसकी संभावना नहीं है कि वहां बादल फटा होगा... "
क्या होता है ग्लैशियर फटना? उत्तराखंड में कितना कहर बरपा सकती मौजूदा घटना?
इस ग्लेशियर आपदा ने साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई त्रासदी की याद दिला दी है, जब मानसून की बाढ़ और भूस्खलन हुआ थे जिसमें 6,000 लोगों की जान चली गई थी. केदरानाथ त्रासदी ने राज्य में विशेष रूप से ऋषिगंगा बांध के आसपास के अलग-अलग क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं की समीक्षा करने को मजबूर कर दिया था.
रविवार की घटना उत्तराखंड के अलकनंदा नदी प्रणाली में एक जलप्रलय का कारण बनी जिसने पनबिजली स्टेशनों और पांच पुलों को ध्वस्त कर दिया. इसने चमोली जिले के जोशीमठ में कई सड़कों को भी बहा दिया और अधिकारी गांव खाली कराने के लिए मजबूर हो गए.