गांधीवादियों के राष्ट्रव्यापी संगठन ‘बापू के लोग' ने वर्तमान पर्यावरणीय क्षरण के प्रभावों को कम करने के इरादे से एक घोषणापत्र तैयार किया है. इसके साथ ही संगठन ने कहा कि पर्यावरणीय क्षरण के विभिन्न रूपों ने भारत को एक गहरे सभ्यतागत संकट की ओर धकेल दिया है. राज्यसभा में बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य अनिल हेगड़े ने रविवार को आधिकारिक तौर पर घोषणापत्र जारी किया.
प्रसिद्ध इतिहासकार, गांधीवादी और पर्यावरणविद रामचंद्र गुहा ने इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमें प्रगति की अपनी राह पर पुनर्विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'अगर जलवायु परिवर्तन नहीं भी हो रहा हो तब भी भारत को पर्यावरणीय आपदा का सामना करना पड़ेगा. जलवायु परिवर्तन समस्या को अधिक गंभीर बना रहा है.'
गुहा ने कहा कि ‘बापू के लोग' का घोषणापत्र हमें बताता है कि कैसे पुनर्विचार करना है. उन्होंने कहा, ‘‘यह हमें बताता है कि हम अपने देश के लिए कोई ऐसा रास्ता कैसे बनाएं जो न केवल इसकी संस्कृति, बल्कि इसकी पर्यावरणीय बाधाओं के मद्देनजर भी अनुकूल हो.' उन्होंने ‘समाज में तेजी से आ रही गिरावट' पर काबू पाने के लिए राजनीतिक विकेंद्रीकरण, नागरिक संगठनों के पुनरुद्धार और नवीकरण तथा विज्ञान के पुनरुद्धार जैसे कदमों का सुझाव दिया.
प्रसिद्ध रंगमंच हस्ती और गांधीवादी प्रसन्ना ने घोषणापत्र तैयार करने में अहम भूमिका निभाईं. उन्होंने समाज को उसकी वर्तमान स्थिति से ऊपर उठाने के लिए ‘70 और 30' अर्थव्यवस्था का सुझाव दिया जहां सभी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में कम से कम 70 प्रतिशत मानव श्रम शामिल हो. उन्होंने कहा कि देश भर के कई संगठनों और लोगों ने इस घोषणापत्र को आकार दिया है और इस विचार का विवरण प्रस्तुत करते हुए एक पुस्तक प्रकाशित की जाएगी.
सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक विनोद व्यासलु ने कहा कि अर्थव्यवस्था के बारे में कक्षाओं में जो शुरुआती चीजें हमें सिखाई जाती हैं उनमें से एक यह है कि हमें 'विकास, अधिक विकास और सदा के लिए विकास' की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'लेकिन मेरा मानना है कि हर चीज का एक उचित आकार होता है. अगर बच्चा उसी हिसाब से बढ़ता रहे, जैसे वह पहले छह महीनों में बढ़ता है, तो 20 साल की उम्र में वह 40 फुट लंबा हो जाएगा.'
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