हमें साझेदारों की तलाश, उपदेशकों की नहीं: विदेश मंत्री एस जयशंकर का यूरोप पर तंज

आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम में विदेश मंत्री एस जयशंकर से पूछा गया था कि भारत की यूरोप से क्‍या अपेक्षा है. जवाब में जयशंकर ने पश्चिमी देशों पर तीखा हमला बोला.

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिमी देशों पर तीखा हमला बोला है.
नई दिल्ली:

भू-राजनीतिक मुद्दों पर भारत के रुख को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे यूरोपीय देशों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तंज कसा है. विदेश मंत्री ने कहा कि भारत साझेदारों की तलाश करता है, उपदेशकों की नहीं और यूरोप का कुछ हिस्सा अभी भी इस समस्या से जूझ रहा है. आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम में आइसलैंड के पूर्व राष्ट्रपति ओजी ग्रिमसन और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख समीर सरन के साथ बातचीत के दौरान यह टिप्पणी की. 

विदेश मंत्री एस जयशंकर से पूछा गया था कि भारत की यूरोप से क्‍या अपेक्षा है. जवाब में जयशंकर ने पश्चिमी देशों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, "जब हम दुनिया को देखते हैं तो हम साझेदारों की तलाश करते हैं, उपदेशकों की नहीं. विशेष रूप से ऐसे उपदेशकों की जो विदेश में जो उपदेश देते हैं, उसे अपने देश में नहीं अपनाते हैं और मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अभी भी इस समस्या से जूझ रहा है, इसमें कुछ बदलाव आया है." 

साझेदारी के लिए समझ-संवेदनशीलता होनी चाहिए: जयशंकर

उन्होंने कहा कि रियलिटी चेक के लिए यूरोप एक निश्चित क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है. विदेश मंत्री ने कहा, "अब वे इस दिशा में आगे बढ़ पाते हैं या नहीं, यह हमें देखना होगा. हालांकि हमारे दृष्टिकोण से यदि हमें साझेदारी को विकसित करना है तो कुछ समझ होनी चाहिए, कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए, हितों में पारस्परिकता होनी चाहिए, यह अहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है, ये सभी कार्य यूरोप के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्तर पर प्रगति पर हैं, कुछ आगे बढ़े हैं, कुछ थोड़े कम."

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इस टिप्पणी का समय महत्वपूर्ण है. यह टिप्पणी न केवल डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आई है, बल्कि पहलगाम आतंकी हमले और पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सख्त कार्रवाई के बाद भी आई है, जिसे भारत में होने वाली कई आतंकी घटनाओं में शामिल माना जाता है. 

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भारत ने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत की: जयशंकर

जयशंकर ने कहा कि भारत ने हमेशा ‘‘रूसी यथार्थवाद'' की वकालत की है और संसाधन प्रदाता और उपभोक्ता के रूप में भारत और रूस के बीच ‘‘महत्वपूर्ण सामंजस्य'' है और वे इस मामले में एक दूसरे के ‘‘पूरक'' हैं. 

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विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना करते हुए कहा कि इसने ‘‘यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है.''

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उन्होंने कहा, ‘‘मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं.''

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना.''

विदेश मंत्री ने आर्कटिक में हालिया घटनाक्रम के दुनिया पर पड़ने वाले असर और बदलती वैश्विक व्यवस्था के क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर व्यापक चर्चा करते हुए ये बातें कहीं. 

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