वक्फ बोर्ड के दावों पर मचा है बवाल
वक्फ कानून को लेकर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस कानून के खिलाफ याचिकाओं को सुना और इसे लेकर आज ( गुरुवार) को भी सुनवाई करने की बात कही है. इन सब के बीच वक्फ संपत्ति को लेकर NDTV को जो जानकारी मिली है वो भी बेहद चौंकाने वाली है. वक्फ बोर्ड दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों पर अपना दावा करती रही है. उसके अनुसार दिल्ली की कुतुब मीनार,हुमायूं का मक़बरा,पुराना किला और अग्रसेन की बावली जैसी दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें वक़्फ़ संपत्ति घोषित हैं. लेकिन इस कानून के आ जाने से अब उसका ये दावा खत्म हो गया है.
बात अगर वक्फ बोर्ड द्वारा किए जा रहे दावे की करें तो वो पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में रहे औरंगज़ेब का मक़बरा, आगरा और जयपुर की जामा मस्जिद और कर्नाटक में बीदर और गुलबर्गा का किला भी वक़्फ़ संपत्ति मानता है. आपको बता दें कि 1951 में औरंगज़ेब का मक़बरा संरक्षित इमारत घोषित हुआ लेकिन 1973 में वक़्फ़ संपत्ति घोषित हो गया. जयपुर की जामा मस्जिद 1965 में हुई वक़्फ़ संपत्ति घोषित , जबकि 1951 से वो संरक्षित इमारत था.
हैरान करने वाली बात तो ये है कि ताजमहल को भी 2005 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने वक़्फ़ संपत्ति घोषित कर दिया था. तब ताजमहल का प्रबंधन और देखभाल करने वाले ASI ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जिसके बाद कोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड से इस बात का सबूत मांगा था. उस दौरान वक़्फ़ बोर्ड इसका सबूत नहीं दे पाया और उसे अपना दावा आंशिक तौर पर वापस लेना पड़ा.
अब वक्फ कानून के आने से इन इमारतों के ऊपर वक़्फ़ बोर्ड का दावा ख़त्म हो गया है. वक़्फ़ संशोधन क़ानून की धारा 3 (D) ने पहले की ऐसी सभी घोषणाओं और अधिसूचनाओं को निरस्त और अमान्य करार दिया है जो पहले से चिन्हित संरक्षित इमारतों पर वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा करता हो.
संरक्षित इमारतों की देखभाल और प्रबंधन का जिम्मा 1861 में स्थापित भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण यानि ASI के पास होता है. देश में ऐसी इमारतें की संख्या 3687 है, जिनमें 246 इमारतें वक़्फ़ की संपत्ति घोषित हैं. कई मामलों में तो बाकायदा अधिसूचना भी जारी की गई है.
वक्फ संशोधन बिल को लेकर बनी जेपीसी के सामने ASI ने जो प्रेजेंटेशन दिया था , उसकी कॉपी एनडीटीवी के पास उपलब्ध है. जिसके मुताबिक़ वक़्फ़ संपत्ति घोषित होने के बाद इन संरक्षित ऐतिहासिक इमारतों के प्रबंधन और देखभाल में काफ़ी दिक्कत आती है क्योंकि वक़्फ़ बोर्ड का हस्तक्षेप काफ़ी बढ़ जाता है.
ASI की ओर से JPC को दी गई जानकारी के मुताबिक़
- वक़्फ़ बोर्ड कई बार ASI को रखरखाव का काम करने से रोकता है.
- वक़्फ़ बोर्ड कई बार मनमाने ढंग से संरक्षित इमारतों में फेरबदल कर देता है जिसे उस इमारत की प्रामाणिकता ख़त्म हो जाती है.
- कई मामलों में प्राइवेसी के नाम पर ASI के स्टाफ को भी इमारत की किसी खास जगह पर जाने नहीं दिया जाता है.
- जौनपुर स्थित अटाला मस्जिद में तो ASI स्टॉफ के विरोध के बावजूद वक़्फ़ बोर्ड ने अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं.
- वाराणसी के धरहरा मस्जिद में तो मुतावल्ली ने एक कमरे पर कब्जा कर रखा है.
- इमारत से जुड़े वक्फ के प्रतिनिधि या कमिटी के सदस्य या मुतावल्ली कई बार फोटोग्राफी इत्यादि की इजाजत दे देते हैं जो निषेध है.
- फतेहपुर सीकरी स्थित चिश्तिया मॉलिन में दरगाह कमिटी ने तो गाइडों को लाइसेंस भी जारी कर रखा है.
- जयपुर के जामा मस्जिद में वक़्फ़ प्रतिनिधि ने निर्माण कार्य कराया है तो अस्तोदिया स्थित दस्तरखान मस्जिद में मदरसा और वजू के नाम पर अतिक्रमण किया हुआ है .
बुधवार (16 अप्रैल) को जब नए क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई तो क़ानून का विरोध कर रहे पक्षों ने धारा 3 (D) का ज़िक्र करते हुए इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई. एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक़ ASI इन संरक्षित इमारतों को दोबारा अपने कब्ज़े में लेने की प्रक्रिया शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है. हालांकि उसकी नज़र कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई पर भी है क्योंकि अगर कोर्ट किसी तरह का अंतरिम आदेश देता है तो उसका असर वक़्फ़ घोषित इन इमारतों पर भी पड़ सकता है.