वाराणसी: गाली देने वाली चाची तो पहले चली गईं थीं, अब उनकी पहचान भी ख़त्म हो गई 

वाराणसी की उन दो दुकानों की कहानी जो अपने स्वाद और जायके के लिए मशहूर थीं. इन दोनों दुकानों को प्रशासन ने सड़क को चौड़ा करने के लिए गिरा दिया है. इन दुकानों के जायके और रौनक को याद कर रहे हैं रनवीर.

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लखनऊ:

सोचिए अगर आपको कोई दुकानदार गाली दे दे तो क्या आप कभी उस दुकान पर दोबारा कदम रखेंगे? शायद नहीं. है ना? लेकिन काशी की एक दुकान पर बैठने वाली महिला जब ग्राहकों को गाली देती थी तो लोग उस गाली को गाली नहीं, बल्कि आशीर्वाद समझते थे. गाली सुनने के बावजूद लोग एक नहीं, दो नहीं, बल्कि बार-बार उस दुकान पर जाते थे. ये दुकान थी लक्ष्मी चाची की कचौड़ी की दुकान. यहां चाची की गाली को लोग आशीर्वाद मानकर उनकी दुकान पर जाया करते थे. चाची तो इस दुनिया को लगभग 15 साल पहले छोड़कर चली गईं, अब उनकी पहचान यानी उनकी दुकान का भी नामोनिशान खत्म हो गया है. 

चाची की कचौड़ी और गाली खाते ग्राहक

वाराणसी के लंका स्थित रविदास चौराहे की पहचान यहां चाची की दुकान और उसके पास के पहलवान लस्सी वाले से होती है. चाची की दुकान जहां एक सदी पुरानी थी. वहीं पहलवान की दुकान आजादी के छह-सात साल बाद शुरू हुई थी. ये दोनों दुकानें अब इतिहास बन चुकी हैं. दरअसल वाराणसी में लगने वाले भीषण जाम को देखते हुए रोड के चौड़ीकरण के लिए रविदास चौराहे पर प्रशासन ने 35 दुकानों पर बुलडोजर चलाकर हटा दिया. इसी कार्रवाई की जद में चाची और पहलवान की दुकान भी आ गई. 

वाराणसी में पहलवान लस्सी के नाम से चार दुकाने थीं. इन्हें एक ही परिवार के लोग चलाते थे. इनमें से तीन दुकानें टूट गई हैं.

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चाची यानी लक्ष्मी चाची की दुकान पर जो आया, उनमें कई ऐसे नाम भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन में बड़ी ऊंचाइयों को छुआ है. इनमें नेता भी हैं, अभिनेता भी, अधिकारी भी हैं और खिलाड़ी भी. इनमें देशी भी हैं और तमाम विदेशी भी. बताते हैं कि चाची की दुकान में जब भीड़ होती थी और उसमें कोई ये बोल देता था कि जरा जल्दी कर देना. बस फिर क्या था. चाची को इससे मतलब नहीं कि सामने वाला कौन है, चाची ऐसा घुड़कतीं कि जिसको उनके अंदाज के बारे में पता नहीं होता, वो आग बबूला ही हो जाता था. हालांकि जब वो इस अंदाज को जानता तो उसी गाली को सुनने को जल्दी-जल्दी कह कर चाची का आशीर्वाद ले लेता. चाची की मौत तो करीब 15 साल पहले हो गई थी. उनकी मौत के बाद दुकान को उनके बेटे ने संभाल लिया. लेकिन चाची को जानने वाले पहले की ही तरह दुकान में आते रहे. 

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पहलवान की लस्सी, जिसने पिया स्वाद भूल नहीं पाया

बात करें पहलवान जी की लस्सी की. इस छोटी सी दुकान ने कई बड़ी हस्तियों को अपनी लस्सी का दीवाना बना रखा था. ये दुकान आजादी के बाद शुरू हुई. वक्त के साथ पहलवान जी का परिवार बढ़ता गया और एक के बाद दो और दो से कुल चार पहलवान लस्सी की दुकानें रविदास चौराहे की पहचान बन गईं. ऐसा नहीं है कि पहलवान जी के यहां सिर्फ लस्सी ही मिलती थी. यहां लस्सी के अलावा कचौड़ी, गुलाब जामुन, रबड़ी और ठंड के मौसम में काशी की चर्चित मिठाई मलइयो भी मिलती थी. कुल्हड़ में मिलने वाली इन मिठाइयों का स्वाद शब्दों में तो बताया नहीं जा सकता लेकिन इसको चखने वाले जानते हैं कि स्वाद क्या गजब होता रहा. 

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वाराणसी की मशहूर पहलवान लस्सी पर एक ग्राहक का सम्मान करते दुकान के मालिक.

पहलवान लस्सी की चार में से तीन दुकानें चौराहे के एक तरफ थीं और एक दुकान दूसरी तरफ. दूसरी तरफ वाली एक दुकान तो बच गई लेकिन तीन दुकानें कार्रवाई की जद में आ गई हैं. पहलवान लस्सी के मालिक मनोज यादव बताते हैं कि सभी चारों दुकानें उनके ही परिवार की हैं. चार में से एक दुकान से उनके छह भाइयों का घर चलता था. दिन में 16 घंटे मनोज यादव और उनके भाई दुकान चलाते थे. जब बुलडोजर उनकी दुकान पर चला, उससे पहले मनोज यादव और उनके भाइयों ने दुकान के सामने जाकर दुकान को प्रणाम किया और नाम आंखों से अपनी दुकान को टूटते हुए देखते रहे. 

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ऐसा नहीं है कि प्रशासन ने अचानक बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की है. दुकानें संकट मोचन मंदिर के महंत जी के नाम थीं. दशकों से ये दुकानदार किराया देकर अपना घर भी चला रहे थे और काशी के जायके को देश-दुनिया तक पहुंचाने का भी काम कर रहे थे. रोड चौड़ीकरण के लिए नोटिस दिए जाने के बाद दो दिन पहले देर रात बुलडोजर की गरज के साथ इतिहास से चाची और पहलवान की 8गुणा 10 फुट की दुकानें भी खत्म हो गईं. पहलवान लस्सी के मालिक मनोज यादव बताते हैं कि उनके मालिक यानी महंत जी दयालु हैं और जो जगह बच गई है, उन्होंने उनमें से कहीं उन्हें जगह देकर दुकान देने का आश्वासन दिया है.

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