वो 30 सेकेंड, मलबे में रेंगती जिंदगी...धराली त्रासदी के ये 7 दृश्‍य पढ़ते-देखते नम हो जाएंगी आपकी आंखें

Uttarkashi Cloudburst: अपनों की तलाश में परेशान लोग रात भर सो नहीं पाएंगे, अगली सुबह नींद से आंखें थकी होंगी, लेकिन एक उम्‍मीद होगी, जो बिछड़ गए, बह गए, वो शायद लौट आएं!

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  • उत्तरकाशी के धराली गांव में अचानक बादल फटने से भारी तबाही हुई, जिसमें घर और लोग-बाग बह गए.
  • सैलाब के तेज बहाव के कारण लोग चीख-पुकार करते नजर आए और जान बचाने के लिए मलबे से भागते दिखे.
  • सेना ने राहत कार्यों के लिए मोर्चा संभाला है, जबकि स्थानीय प्रशासन और लोग भी मदद में हाथ बंटा रहे हैं.
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उत्तरकाशी:

Uttarkashi Dharali Tragedy: शांत पहाड़, सेबों के बागान और 'ईश्वर का तोहफा' कही जाने वाली धराली घाटी... कल तक जहां सुबहें जीवन के संगीत से गूंजती थीं, आज वहां खौफ, डर, तबाही और बेबसी की गूंज है. उत्तरकाशी के धराली गांव में अचानक फटे बादल ने सबकुछ बदल दिया. महज 30 सेकेंड और ये शांत खूबसूरत घाटी, चीख-पुकारों के शोर में तब्‍दील हो गई. हजारों लोगों की आंखों के सामने मलबे का उफनता सैलाब उनके बाग-बगीचे, घर-आंगन को बहा ले गया. इसी के साथ बह गए उनके सपने भी. हर चीख, हर पुकार... गवाही देती रही कि कुदरत का कहर किस कदर बरपा और सबकुछ बर्बाद करता चला गया.  

उत्तरकाशी के धराली से जो वीडियो और तस्‍वीरें सामने आई हैं, उन दृश्‍यों में खौफ का मंजर साफ दिख रहा है, जान बचाने की जद्दोजहद भी दिख रही है. उन्‍हीं तस्‍वीरों और शब्‍दों के जरिए हम जो कुछ दृश्‍य दिखाने जा रहे हैं, हो सकता है उन्‍हें देख आप भावुक हो जाएं. मदद के लिए सेना ने मोर्चा संभाल लिया है, बाकी हम और आप यहीं दूर से उनकी सलामती की दुआं कर सकते हैं. 

दृश्य-1: काली मौत की परछाईं

बादल फटने के कुछ देर पहले तक धराली की गलियां जीवन से लबरेज थीं. सुबह शायद हर दिन की तरह हुई होगी. सेब के बागानों में काम करते लोग, बच्चों की खिलखिलाहट, सैलानियों के साथ चाय-पराठे की महक. लेकिन कुछ ही देर बाद सारी रौनक जैसे ठिठक गई. आसमान घने काले बादलों से घिरा था और चंद सेकेंडों में चमकती घाटी पर काली मौत की परछाइयां उतर आईं. अभी कुछ देर पहले तक जहां सुकून ही सुकून था, वहां अब चीख-पुकार, भागते-चिल्‍लाते लोगों का शोर था. 

दृश्‍य-2: 'भागो-भागो' की आवाज

धराली में लोग रोज की तरह अपने अपने काम में ही लगे होंगे. खूबसूरत पलों को कैमरे में कैद कर रहे होंगे. तभी उन्‍हें कुछ दिखता है, और फिर उसी वीडियो में 'भागो रे, भागो! की आवाज सुनाई देती है. सामने पानी और मलबे की दीवार अचानक बढ़ती चली आ रही थी. होटल, रेस्टोरेंट, घर-बार कुछ भी नहीं बचा. 

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दृश्य-3: सैलाब की चेतावनी- हट जाओ

खीर गंगा नदी किनारे खड़े लोग बस देख पा रहे थे. कैसे भूरे उफान के साथ लकड़ी के गट्ठर, घरों की छतें और पेड़ों के तने बहते जा रहे हैं. सामने से भागते लोग अचानक ठिठकते हैं, क्योंकि पीछे से भूरे रंग का पानी मानो दीवार की तरह उनकी ओर लपक रहा है. सैलाब मानो ये कह रहा हो क‍ि हटो, ये रास्‍ता मेरा है. जो फंसे, वे सोच रहे होंगे, वक्त कम है, बारिश फिर शुरू हो सकती है. मौसम विभाग ने भी तो यही पूर्वानुमान जताया है.

दृश्य-4: जान बचाने की जद्दोजहद

सैलाब के तेज बहाव में पीछे लोग, जान बचाने के लिए बदहवास दौड़ते, कभी गिरते, कभी उठते. वीडियो में दिखता है कि कैसे सैलाब और मलबे में फंसा एक व्यक्ति रेंगता, घिसटता, जीवन के लिए संघर्ष कर रहा होता है. पीछे लोग आवाज दे रहे होते हैं, कोई बचा लो उसे. उस व्‍यक्ति को हिम्‍मत दे रहे होते हैं. शाबास.. बहुत अच्‍छे... आगे बढ़ो. उसका हर कदम मौत से दूर, जीवन की ओर बढ़ रहा था.  

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दृश्य-5: पहाडि़यों पर टूटता दुखों का पहाड़

धराली में बादल फटने के बाद जहां तक नजर जाए, केवल मलबा और तबाही का मंजर दिख रहा था. घर-बार, होटल, होम स्‍टे, सब बह चुका था या सिल्ट में दफ्न हो गया था. सोचिए वो खौफनाक मंजर कैसा रहा होगा. सड़क पर दौड़ते लोग, बह रहा मलबा और वो बुजुर्ग, जिसने अपनी पूरी जिंदगी इसी गांव में बिताई हो. लोग अपने घरों की ओर बढ़ते विनाश के लहर को निहार रहे होंगे. दिमाग काम नहीं कर रहा होगा और दिल धक्‍क से बैठ गया होगा. हर तरफ चुप्पी और लोगों पर टूटता दुखों का पहाड़.   

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दृश्‍य-6: धराली के आंसू पोंछ रहा होगा मुखबा 

जिस रास्‍ते तबाही आई, उसके एक ओर धराली गांव है और दूसरी ओर है मुखबा, जिसे लोग गंगा का मायका कहते हैं. गंगोत्री धाम के कपाट जब बंद हो जाते हैं तो मान्‍यता है कि मां गंगा, इसी मुखबा गांव में निवास करती हैं. आज मां गंगा का वो मायका, अपने पड़ोसी गांव धराली के दुख का सहभागी बन रहा होगा. उसकी भी आंखें नम होंगी और वो पड़ोसी धराली के आंसू पोंछ रहा होगा. 

दृश्य-7: न जाने कैसी होगी अगली सुबह? 

अब यहीं अगली सुबह का दृश्‍य सोचिए. धराली की अगली सुबह, आम दिनों जैसी नहीं है. फल लदे सेब के पेड़ बह चुके हैं. मलबे में कहीं टूटी चारपाई पड़ी होगी. बच्चों की टूटी साइकिल और वहीं किताबों में दबा उनका भविष्य- सब खामोश हैं. पक्षियों की चहचहाहट भी शायद रुक सी गई होगी, जैसे कुदरत को खुद भी अपने किए पर पछतावा हो रहा हो. अपनों की तलाश में परेशान लोग रात भर सोए नहीं होंगे, नींद से आंखें थकी होंगी, लेकिन एक उम्‍मीद होगी, जो बिछड़ गए, बह गए, वो शायद लौट आएं! हर कोई एक दूसरे को ढांढस बंधा रहा होगा. लोगों के चेहरों पर दर्द तो है, मगर आंखों में उम्‍मीदें भी बाकी होंगी. 

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धराली में जो हुआ, उस दर्दनाक मंजर को शब्दों में समेटना नामुमकिन है.  
 

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