उपचुनाव के भरोसे लटकी है CM तीरथसिंह रावत की गद्दी, BJP में दरार भी रास्ते की अड़चन

तीरथ सिंह रावत अभी सांसद हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के छह महीने के अंदर यानी 10 सितंबर तक उनका विधायक बनना ज़रूरी है. उपचुनाव पर कोरोना के फिलहाल रोक है.

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कुर्सी का फेरा, तीरथ सिंह रावत ने डाला दिल्ली में डेरा
नई दिल्ली:

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तीन दिन से दिल्ली में हैं. न किसी ने मिल रहे हैं और न ही बाहर निकल रहे हैं, हालांकि जिस दिन आए उसी रात गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनकी मुलाकात हो गई थी. अगले दिन देहरादून वापसी का कार्यक्रम था जो अचानक टल गया जिसके बाद से अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया है. वह मुख्यमंत्री रहते हैं या नहीं, ये चुनाव आयोग पर निर्भर करेगा.

बता दें कि सवाल उठ रहे हैं कि क्या तीरथ सिंह रावत पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं? क्या ये फिर से सत्ता परिवर्तन की आहट तो नहीं है? दरअसल, तीरथ सिंह रावत अभी सांसद हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के छह महीने के अंदर यानी 10 सितंबर तक उनका विधायक बनना ज़रूरी है. अब दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जिसे लेकर तीरथ सिंह रावत दिल्ली आए थे हालांकि कोरोना को लेकर फ़िलहाल उपचुनाव पर चुनाव आयोग की रोक है, जिसके चलते तीरथ सिंह रावत की कुर्सी ख़तरे में लग रही है. साथ ही पार्टी अभी ये तय नहीं कर पाई है कि तीरथ सिंह रावत कहां से उपचुनाव लड़ेंगे. सूत्रों के हवाले से ये भी खबर है कि सतपाल महाराज और धन सिंह रावत जैसे दिग्गज नेता भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए आलाकमान पर दबाव बना रहे हैं?

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तीरथ सिंह रावत चुनाव को लेकर अनिश्चिंतता और बीजेपी की राज्य इकाई में दरार के कारण उनकी चार महीने पुरानी सत्ता छिनने की  चिंता को लेकर पिछले तीन दिनों से दिल्ली में हैं.

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गौरतलब है कि रावत ने सीएम की कुर्सी मार्च में संभाली यानी जब उत्तराखंड चुनाव पर सिर्फ एक साल बचा था. तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ बीजेपी में उग्र असंतोष के चलते तीरथ सिंह रावत को कुर्सी सौंपी गई. राज्य में होने वाले चुनावों के मद्देनजर बीजेपी को उस समय तुरंत सत्ता में परिवर्तन करना पड़ा था. फिलहाल पद पर बने रहने के लिए तीरथ सिंह रावत को (जो कि एक सांसद हैं ) एक विधानसभ सीट जीतनी है और 10 सितंबर तक उत्तराखंड विधानसभा का सदस्य बनना है.  सूत्रों के मुताबिक- चुनाव आयोग की स्थिति पर पूरी नजर है.  इससे पहले मार्च-अप्रैल में होने वाले चुनाव को लेकर बड़ा विवाद हुआ था. कोरोना की दूसरी लहर के फैलाव में चुनावों को दोष दिया गया था.

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