देश के कई राज्यों में कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. वैक्सीनेशन बड़े शहरों में तेजी से हुआ, हालांकि, अब उन जगहों पर वैक्सीन की किल्लत हो गई है. वहीं देश की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य- उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां के गांवों से एक बड़ी चुनौती सामने आ रही है. टीके की किल्लत के साथ-साथ लोगों के मन में इसे लेकर भ्रम भी है, जिसे दूर करना स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती जैसा ही है.
यूपी की एक बड़ी चुनौती ग्रामीण इलाकों में लोगों को कवर करने के लिए पर्याप्त वैक्सीन जुटाने की और लोगों की हिचक तोड़ने की है. लखनऊ से 50 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित बाराबंकी जिले 1.2 लाख डोज़ देने का लक्ष्य था, लेकिन अभी तक इसका बस एक तिहाई दिया जा सका है.
ऊपर से, स्वास्थ्य विभाग की एक टीम जब एक गांव में पहुंची तो हंगामा हो गया. बताया जा रहा है कि टीके से बचने के लिए लोगों ने नदी में छलांग लगा दी. लोगों से बात की तो पता चला कि यहां अफवाह फैली है कि टीका लगवाने से मौत हो जाती है. कुछ ने बताया कि ये लोग कह रहे कि ये 'जहर की सूई' है.
कोरोना महामारी से जीतने के लिए वैक्सीनेशन बहुत जरूरी है. ऐसे में लोगों के बीच इस तरह के भ्रम इस मुहिम को नुकसान पहुंचा रहे हैं. प्रशासन को जल्दी ही इस पर काम करना चाहिए.
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वैक्सीन की कमी दूर करने की कोशिशें
दूसरी ओर वैक्सीन की कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने ग्लोबल टेंडर निकाला है. इसके लिए नियम भी ढीले किए गए, लेकिन फिलहाल सफलता नहीं मिल रही.
बता दें कि यूपी में 33 लाख लोगों को पूरा टीका लग चुका है, लेकिन 23 करोड़ से ज़्यादा की आबादी का 1.8% ही है. तीन हफ्ते पहले, यूपी पहला राज्य था जिसने 4 करोड़ टीकों के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला, लेकिन बिड खोलने की तारीख राज्य ने अब 10 दिन और बढ़ा दी है- महीने के आख़िर तक.सरकार ने अब स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन के पैमानों में भी ढिलाई दे दी है. टीकों के स्टोरेज के लिए तापमान 2 से 8 डिग्री की जगह -20 डिग्री, -70, -80 डिग्री कर दिया गया है, ताकि फ़ाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियां भी शामिल हो सकें.