लोकसभा चुनाव में मिली हार की यूपी बीजेपी ने की समीक्षा, गिनाए ये छह कारण

लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद उत्तर प्रदेश बीजेपी ने 15 पेज की एक विस्तृत रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को भेजी है. इसमें हार के प्रमुख कारणों का जिक्र किया गया है. इसमें कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और नियमित सरकारी पदों पर संविदा पर होने वाली भर्तियों का जिक्र है.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के नेताओं के बीच कलह की खबरें सुर्खियां बन रही हैं.इस बीच उत्तर प्रदेश बीजेपी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चुनाव में प्रदर्शन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है. इसमें हार के कारणों की जानकारी दी गई है.इनमें पेपर लीक,सरकारी नौकरियों के लिए संविदा कर्मियों की नियुक्ति और राज्य प्रशासन की कथित मनमानी जैसी चिंताओं का जिक्र है.

किस दल ने कितनी सीटें जीती थी

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन ने राज्य की 80 में से 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी.वहीं बीजेपी के नेतत्व वाले एनडीए के हिस्से में केवल 36 सीटें आई हैं.एनडीए ने 2019 के चुनाव में 64 सीटों पर जीत दर्ज की थी.इस हार के बाद उत्तर प्रदेश बीजेपी ने 15 पेज की एक विस्तृत रिपोर्ट पार्टी नेतृत्व को भेजी है.सूत्रों के मुताबिक पार्टी के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए करीब 40 हजार लोगों की राय ली गई.इस दौरान अयोध्या और अमेठी जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया.

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यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बीते दिनों दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की.उत्तर प्रदेश में पार्टी की चुनावी असफलता के बाद प्रदेश नेताओं के साथ आगे विचार-विमर्श किया जाएगा.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस हार के लिए 'अति-आत्मविश्वास'को जिम्मेदार ठहराया है.उनके इस बयान के बाद प्रदेश के बीजेपी नेताओं के बीच कलह की अटकलें तेज हो गईं.इसका उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने खंडन किया.उन्होंने कहा कि पार्टी और संगठन जनता से बड़ा है.

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हार के कौन से हैं प्रमुख कारण

उत्तर प्रदेश बीजेपी की रिपोर्ट में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए छह बुनियादी कारणों की पहचान की गई है.इनमें कथित प्रशासनिक मनमानी,कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष,बार-बार पेपर लीक और सरकारी पदों पर संविदा कर्मियों की नियुक्ति शामिल है.रिपोर्ट में कहा गया है कि संविदा पर होने वाली नियुक्तियों ने विपक्ष की ओर आरक्षण को लेकर खड़े किए गए नैरेटिव को और बल दिया.

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बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा,"विधायक के पास कोई पॉवर नहीं है. जिलाधिकारी और दूसरे अधिकारी शासन कर रहे हैं.इससे हमारे कार्यकर्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं.सालों से आरएसएस और बीजेपी ने एक साथ काम किया है,समाज में मजबूत संबंध बनाए हैं. अधिकारी पार्टी कार्यकर्ताओं की जगह नहीं ले सकते." आरएसएस बीजेपी का मातृ संगठन है. बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने का श्रेय उसे ही दिया जाता है.

लगातार पेपर लीक ने बदला माहौल

बीजेपी के एक दूसरे नेता का कहना था कि राज्य में पिछले तीन सालों में हुए करीब 15 पेपर लीक से विपक्ष के इस नैरेटिव को बल मिला कि बीजेपी आरक्षण खत्म करना चाहती है.उन्होंने कहा,"इसके अलावा, सरकारी नौकरियां संविदा कर्मियों से भरी जा रही हैं,जिससे हमारे बारे में विपक्ष के भ्रामक नैरेटिव को बल मिला."

उत्तर प्रदेश बीजेपी की बैठक में शामिल होते नेता.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लखनऊ में राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने के बाद इन मुद्दों के समाधान के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ परामर्श किया था.बीजेपी के एक पदाधिकारी ने एनडीटीवी को बताया,"दरअसल इन मामलों पर विस्तार से चर्चा होनी है,इसलिए वे राज्य के नेताओं को बैचों में बुला रहे हैं."

बीजेपी से क्यों दूर हुए कोइरी-कुर्मी

इस रिपोर्ट में ओबीसी की प्रमुख जातियों कुर्मी और मौर्य-कुशवाहा समुदायों से मिले कम समर्थन और दलित वोटों में आई कमी का हवाला दिया गया है. वहीं अतिरिक्त कारकों के रूप में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कम होते वोट शेयर और कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन को स्वीकार किया गया है.

सूत्रों ने बताया कि बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को यह बताया गया है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को तुरंत हल करना चाहिए. इसके अलावा अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई को और बढ़ने से रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू करना चाहिए.कभी ओबीसी की पसंदीदा पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृत्व में 1990 के दशक में लोध समुदाय के समर्थन का दावा किया था,लेकिन 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ओबीसी के बीच बीजेपी का समर्थन बढ़ा है. 

कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का प्रयास

पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा,''2014, 2017, 2019 और 2022 की जीत की लय को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए.वरिष्ठ नेताओं को इसमें हस्तक्षेप करने और मार्गदर्शन देने की जरूरत है.प्रदेश को केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों का पालन करने के महत्व को समझना चाहिए.हम सब बराबर हैं, किसी को भी अपने आप को बड़ा नहीं मानना चाहिए. नेताओं को यूपी के स्थानीय मुद्दों को समझना चाहिए. कार्यकर्ताओं के बीच मनोबल बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए.'' 
 

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का स्वागत.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुर्मी और कोइरी इस बार बीजेपी से दूर हुए हैं.वहीं पार्टी को दलितों का केवल एक तिहाई वोट मिला.रिपोर्ट में कहा गया है कि बसपा के वोट शेयर में 10 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि कांग्रेस ने यूपी के तीन क्षेत्रों में अपनी स्थिति में सुधारी है. इसने चुनाव परिणाम को प्रभावित किया.

लंबे चुनाव अभियान ने कार्यकर्ताओं को थकाया

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि टिकट में तेजी की वजह से पार्टी का अभियान जल्दी चरम पर पहुंच गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि छठा और सातवां चरण आते-आते कार्यकर्ता थक चुके थे. आरक्षण के खिलाफ पार्टी नेताओं के बयानों ने पार्टी का जनाधार कम किया. 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है,"वरिष्ठ नागरिकों में पुरानी पेंशन योजना जैसे मुद्दों की चर्चा रहा, वहीं युवाओं की चिंता अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे रहे." इसमें कहा गया है कि विपक्ष ने प्रभावी ढंग से उन मुद्दों को उठाया जो लोगों से जुड़े थे.रिपोर्ट में पार्टी कार्यकर्ताओं से सम्मानपूर्वक व्यवहार की अपील की गई है. इसमें कहा गया है कि एकता सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृ्त्व की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं. 

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को कहां मिली सबसे कम सीटें

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने प्रदेश की 80 में से 37 सीटों पर जीत दर्ज की है. उसे 2019 के चुनाव में केवल पांच सीटें मिली थीं. वहीं बीजेपी 2019 की 62 सीटों से घटकर 33 पर सिमट गई है. यूपी के इस चुनाव परिणाम की वजह से बीजेपी अकेले के दम पर बहुमत जुटा पाने में नाकाम रही.इस नतीजे ने पार्टी नेतृत्व को स्तब्ध कर दिया. उसे उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत मिलने की उम्मीद है. इसी उत्तर प्रदेश में इस साल जनवरी में राम मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया था.बीजेपी का सबसे कमजोर प्रदर्शन पश्चिम और काशी (वाराणसी) क्षेत्रों में रहा.वो काशी की 28 में से केवल आठ सीटें ही जीत पाई. वहीं ब्रज क्षेत्र (पश्चिमी यूपी) में बीजेपी ने 13 में से आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में बीजेपी 13 में से केवल छह सीटें ही जीत पाई. वहीं अवध (लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद) में उसे 16 में से केवल सात सीटें ही मिलीं.इसी तरह बीजेपी कानपुर-बुंदेलखंड में भी अधिक सीटें नहीं जीत पाई. वो 10 में से केवल चार सीटें ही जीत पाई. 

हार के लिए जिम्मेदार कौन

योगी आदित्यनाथ ने इन खराब नतीजों के लिए अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार बताया तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी संगठन को मजबूत करने के जरूरत पर जोर दिया.

बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य के नेताओं को आपसी मतभेद सुलझाने और 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर ध्यान लगाने को कहा है. बीजेपी के एक सूत्र ने कहा, " उपचुनाव तब नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होगा. उन्होंने हमें चीजों को ठीक करने और शिकायतों का समाधान करने की सलाह दी है." उन्होंने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मतदाताओं से जुड़ने और नुकसान को कम करने के लिए प्रदेशव्यापी दौरा करेंगे.

अभी हाल ही में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर राज्य सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कोटा भरने में देरी की ओर इशारा किया था. अपना दल (सोनेलाल)  का ओबीसी विशेषकर कुर्मियों के बीच प्रभाव है.

योगी आदित्यनाथ गुट का दावा

वहीं योगी आदित्यनाथ के समर्थकों का कहना है कि राज्य प्रशासन पर मुख्यमंत्री की कमान,कड़ी कानून-व्यवस्था और अनुशासन ने बीजेपी को राज्य में अपनी पकड़ बनाए रखने में मदद मिली.उनके एक करीबी विधायक ने बताया,'' अलोकप्रिय उम्मीदवारों को फिर से चुनाव लड़ाने से परहेज किया जाना चाहिए था. टिकट वितरण में योगी आदित्यनाथ की कोई भूमिका नहीं थी. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता में पास लौटकर अपनी लोकप्रियता साबित की है. उनकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता संदेह से परे है.केंद्रीय नेतृत्व भी इसे मानता है.'' 

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