लखनऊ में बयानबाजी, दिल्ली में हाईप्रोफाइल मीटिंग, समझें क्यों यूपी का खूंटा मजबूत करना चाहती है BJP?

उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा के चुनाव होंगे. विधानसभा चुनाव में अभी 2 साल से अधिक का समय है. यूपी बीजेपी के लिए हमेशा से बेहद महत्वपूर्ण राज्य रहा है.

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नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज है. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकों और मुलाकातों का दौर चल रहा है. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी(Bharatiya Janata Party) के खराब प्रदर्शन के बाद से ही इस बात की चर्चा है कि राज्य में कई तरह के परिवर्तन पार्टी की तरफ से किए जा सकते हैं. प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद से राजनीतिक हलचल में तेजी आयी है.  पीएम मोदी और अमित शाह की बुधवार को मुलाकात हुई है. इससे पहले उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी मंगलवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. वहीं इन तमाम बैठकों को मुलाकात के बीच बुधवार को सीएम योगी आदित्यनाथ राज्यपाल से मिलने पहुंचे. विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की भी पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर है. 

केशव प्रसाद मौर्य  ने दोहराया, ‘सरकार से बड़ा है संगठन'
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बुधवार को दोहराया कि ‘संगठन सरकार से बड़ा है और वह कार्यकर्ताओं के दर्द को अपना मानते हैं क्योंकि कार्यकर्ता ही पार्टी का गौरव होते हैं.  मौर्य ने बीते रविवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कार्यसमिति की बैठक के दौरान भी यह बात कही थी.  

उपमुख्यमंत्री ने बुधवार को ‘एक्स' पर लिखा, “संगठन सरकार से बड़ा है, कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा दर्द है. संगठन से बड़ा कोई नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव हैं. ” मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच कथित तल्खी और उपमुख्यमंत्री द्वारा नयी दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के एक दिन बाद यह पोस्ट किया सामने आया है. 

राज्यपाल से सीएम की मुलाकात, क्या बात हुई? 
राज्यपाल और मुख्यमंत्री की मुलाकात साधारण तौर पर होती ही रहती है. खासकर विधानसभा सत्र और अन्य मुद्दों को लेकर भी बैठकें होती हैं. हालांकि राज्य में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ का राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मिलने को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. गौरतलब है कि आनंदी बेन पटेल लंबे समय से यूपी में राज्यपाल हैं और गुजरात की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. पीएम नरेंद्र मोदी का उन्हें विश्वास प्राप्त रहा है. ऐसे में दिल्ली में अमित शाह और पीएम मोदी के मुलाकात के बीच सीएम योगी और आनंदी बेन पटेल की बैठक पर भी लोगों की नजर है. 

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बीजेपी का दावा- संगठन और सरकार में कोई  टकराव नहीं
उत्तर प्रदेश में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद से ही इस बात की चर्चा है कि संगठन और सरकार में टकराव है. कई मौके पर नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर इसका जिक्र किया है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन और सरकार को लेकर बयान दिया था. हालांकि राज्यमंत्री बीएल वर्मा ने किसी भी तरह के टकराव की खबर को गलत बताया है.

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एनडीटीवी के साथ बात करते हुए बीएल वर्मा ने कहा, सरकार भी हमारी ही है और इसलिए हम एक दूसरे के पूरक हैं. संगठन अपनी जगह है और सरकार अपनी जगह है. मैं भी कार्यकर्ता हूं और कार्यकर्ताओं का सम्मान करता हूं. बीजेपी एक कार्यकर्ता आधारित पार्टी है कार्यकर्ताओं का सम्मान तो हम सभी करते हैं. उन्होंने कहा, संगठन और सरकार मिलकर ही आगे बढ़ते हैं. संगठन का काम संगठन करता है और सरकार का काम सरकार करती है. संगठन और सरकार मिलकर ही देश और प्रदेश की रफ्तार को आगे बढ़ाते हैं.

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उपचुनाव को लेकर बीजेपी गंभीर
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 9 विधायकों के सांसद बनने के बाद  कटेहरी, मिल्कीपुर, करहल, फूलपुर, मझवां, गाजियाबाद, मीरापुर, कुंदरकी और खैर सीटों के अलावा कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. इनमें से करहल, कुंदरकी, कटेहरी, मिल्कीपुर और सीसामऊ सीट पर सपा काबिज रही है. जबकि, फूलपुर, खैर और गाजियाबाद सीट भाजपा के पास थी. मीरापुर की सीट पर भाजपा की सहयोगी दल रालोद तथा मझवां की सीट पर निषाद पार्टी को जीत मिली थी. बीजेपी किसी भी हालत में इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है. इस उपचुनाव से पहले पार्टी सभी तरह के आंतरिक मतभेद को सुलझाने के मूड में है. 

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उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए है बेहद महत्वपूर्ण

उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा के चुनाव होंगे. विधानसभा चुनाव में अभी 2 साल से अधिक का समय है. यूपी बीजेपी के लिए हमेशा से बेहद महत्वपूर्ण रही है. जब-जब बीजेपी यूपी में मजबूत हुई है. वो केंद्र के सत्ता तक पहुंची है. राम मंदिर आंदोलन के दौरान बीजेपी को 1996,1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों के दौरान 50 के आसपास सीटों पर जीत मिली थी.

केंद्र में सरकार बनाने में उस दौरान यूपी का प्रमुख योगदान रहा था. 2014 और 2019 के चुनावों में भी बीजेपी ने 60 अधिक सीटों पर जीत दर्ज किया था और केंद्र में बहुमत की सरकार बनायी थी. इस चुनाव में हालांकि बीजेपी को नुकसान हुआ है लेकिन इस हालत में भी बीजेपी के सबसे अधिक सांसद उत्तर प्रदेश से ही जीत कर पहुंचे हैं. ऐसे में पार्टी किसी भी स्तर पर इस राज्य में अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने देना चाहेगी. 

साल 2014 से यूपी में बीजेपी का प्रदर्शन

साल 2009 के लोकसभा चुनाव और 2012 के विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बीजेपी ने यूपी शानदार वापसी की थी. 

  • साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 71 सीटों पर जीत मिली थी
  • 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 312 सीटों पर जीत मिली थी.
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 62 सीटों पर जीत मिली थी.
  • 2022 में बीजेपी ने 255 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर लगातार दूसरी बार सरकार बनाया था.
  • 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. पार्टी को 33 सीटों पर जीत मिली. 

बीजेपी में कलह की अटकलों पर अखिलेश ने ली चुटकी
BJP की अंतर्कलह पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसा है.  "BJP की कुर्सी की लड़ाई की गर्मी में उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन ठंडे बस्ते में चला गया है. तोड़फोड़ की राजनीति का जो काम BJP दूसरे दलों में करती थी, अब वही काम वो अपने दल के अंदर कर रही है. इसीलिए BJP अंदरूनी झगड़ों के दलदल में धंसती जा रही है. जनता के बारे में सोचने वाला BJP में कोई नहीं है."

अखिलेश के हमले का केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया के जरिए  जवाब दिया . केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले को धोखा करार दिया है. केशव प्रसाद मौर्य ने बुधवार को X पर पोस्ट किया, "सपा बहादुर अखिलेश यादव जी, बीजेपी की देश और प्रदेश दोनों जगह मजबूत संगठन और सरकार है. सपा का PDA धोखा है. यूपी में सपा के गुंडाराज की वापसी असंभव है. बीजेपी 2027 विधानसभा चुनाव में 2017 दोहराएगी."

चुनाव परिणाम के बाद योगी की RSS प्रमुख से हुई थी मुलाकात
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात गोरखपुर में सीएम योगी आदित्यनाथ से हुई थी. सूत्रों ने इसे "शिष्टाचार मुलाकात" बताया था, क्योंकि मोहन भागवत आरएसएस के एक कार्यक्रम के लिए मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे थे. हालांकि, राजनीतिक हलकों में योगी आदित्यनाथ की आरएसएस प्रमुख से मुलाकात को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जा रहा था.

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