यूपी के गांवों में ढेरों प्रथामिक स्वास्थ्य केंद्र बंद, कोरोना से हो रहीं तमाम मौतें..

यूपी के तमाम ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ को कोरोना ड्यूटी में भेज देने से पीएचसी में ताला लग गया है. कोरोना में ओपीडी पहले से ही बंद थी. अब इमरजेंसी वाले मरीजों का भी इलाज बंद हो गया.

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यूपी के गांवों में ढेरों प्रथामिक स्वास्थ्य केंद्र बंद।
लखनऊ:

यूपी के तमाम ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ को कोरोना ड्यूटी में भेज देने से पीएचसी में ताला लग गया है. कोरोना में ओपीडी पहले से ही बंद थी. अब इमरजेंसी वाले मरीजों का भी इलाज बंद हो गया. ऐसे में लोगों को इलाज के लिए दूर दूर भटकना पड़ रहा है. हमारे सहयोगी कमाल खान ने उन्नाव के एक गांव से वहां की स्वास्थ्य सुव‍िधाओं का जायजा लिया जहां पीएचसी में ताला लगा है और तमाम लोगों की कोरोना जैसे लक्षणों से मौत हो गई है. उन्नाव के कंजौरा गांव की बंद पीएचसी को लेकर स्थानीय निवासी रवींद्र पीएचसी कां बंद ताला देख मायूस हुए. उन्हें जुकाम-बुखार है, डर रहे हैं कि कहीं कोरोना ना हो. उन्होंने कहा, 'यहां कोई है ही नहीं, ताला बंद है. महीनो से नहीं आ रहे हैं तो आज सोचा कि आ गए होंगे क्योंकि इससे पहले श‍िकायतें की जा चुकी हैं. लेकिन यहां कोई आया नहीं.'

गांव में मातृ एवं श‍िशु कल्याण केंद्र तो कभी खुलते ही नहीं. यहां हर तरफ झाड़झंखाड़ उगे हैं. एक कमरे में झाड़झंखाड़ भरा है, दूसरे कमरे के अंदर स्ट्रेचर पर बिल्ली आराम कर रही है. गांव में मातृ एवं श‍िशु कल्याण केंद्र की दीवार पर तस्वीर में तो एक गर्भवती महिला की सेवा हो रही है, और लिखा भी हुआ है कि प्रसव पूर्व देखभाल एवं प्रसव सेवाएं, लेकिन गांव में लोगों का कहना है कि शायद जब से बना है कुछ दिनों के लिए ही खुला था, बाकी हमेशा बंद रहता है. यहां दीवार पर एक सूचना पेंट की गई है कि अगर इस केंद्र का कोई कर्मचारी घूस मांगे तो टोल फ्री नंबर पर बताएं.

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जब गांव वालों से पूछा गया कि क्या ऐसी कोई समस्या आती है तो का स्थानीय निवासी जयप्रकाश सिंह ने कहा, 'यहां कोई आता ही नहीं तो घूस क्या ताला और दीवार मांगेंगे.' गांव में भाईलाल के घर उनका परिवार सूप बना रहा है. भाईलाल भी सूप बनाते थे. बीमा हुए, कई जगह इलाज के लिए गए लेकिन गुजर गए. गरीबी ने ठीक से शोक भी मनाने नहीं दिया, रोज रोजी कमाना मजबूरी है. भाईलाल के भाई पप्पू नें बताया, 'दो डॉक्टरों से दवाई करवाई पावा में. वहां से कोई फायदा नहीं हुआ. फिर एक डॉक्टर बाबरपुर के पास किन्ना है, वहां करवाया. वहां भी कोई फायदा नहीं हुआ. उसके बाद वो गुजर गए.'

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कमल दादी के बहुत दुलारे थे. बताते हैं कि दादी के मन्नत मांगने से वो पैदा हुए थे. कहते हैं कि उन्हें अफसोस रहेगा कि जिस दादी ने इतना प्यार किया, जब वो बीमार हुईं तो बचा नहीं सके. गांव के प्रधान कहते हैं कि आसपास की 9 ग्राम सभाओं की करीब 20 हजार की आबादी इस पीएचसी पर निर्भर है. गांव में एक महीने में 20 लोगों की मौत हो गई लेकिन पीएचसी नहीं खुली.

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कंजौरा गांव के प्रधान संदीप यादव कहते हैं, 'लोग झोला छाप डॉक्टरों से दवा करवा लेते हैं. अगर आराम नहीं मिला, दिक्कत ज्यादा बढ़ गई तो फिर प्राइवेट नर्सिंग होम जाते हैं उन्नाव या कानपुर या हरिपुर.' भयानक महामारी के इस दौर में जब इस गांव में तमाम मौतें हो रही हैं कोरोना के लक्षणों से, इस तरह से स्वास्थ्य केंद्र का बंद होना खतरनाक संकेत है.

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