रोम का पार्टनर, सोना, 0-9...Uk के इतिहासकार विलियम डेलरिंपल ने भारत को लेकर किया बड़ा दावा

India Story By UK Historian: भारत के इतिहास में भारत की सफलता की कहानियां कम पढ़ने को मिलती हैं. हालांकि, दुनिया अब भारत के किए कामों को मान्यता देने लगी है. जानिए यूके के इतिहासकार ने क्या कहा...

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विलियम डेलरिंपल की लिखी कई किताबें काफी प्रसिद्ध हुईं हैं.

दुनिया के मशहूर इतिहासकारों में विलियम डेलरिंपल (William Dalrymple) का नाम आता है. उनका जन्म 20 मार्च 1965 को यूनाइटेड किंगडम (UK) के स्कॉटलैंड में एडिनबर्ग में हुआ.उनकी पुस्तकों ने कई पुरस्कार जीते हैं. 2018 में, उन्हें ब्रिटिश अकादमी के राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया. वह रानी कैमिला के तीसरे चचेरे भाई हैं.डेलरिंपल पहली बार 26 जनवरी 1984 को दिल्ली आए और 1989 से वे लगभग यहीं के होकर रह गए. वे साल के ज्यादातर समय दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित अपने महरौली फार्महाउस में बिताते हैं, लेकिन गर्मियों में लंदन और एडिनबर्ग में रहते हैं. ये सब आपको बताना इसलिए जरूरी था, क्योंकि विलियम डेलरिंपल ने भारत के बारे में NDTV वर्ल्ड समिट में जो कहा है, उसे लेकर आपके मन में किसी तरह की शंका न उठ सके.

केवल गुलामी की बात

विलियम डेलरिंपल ने बताया कि भारत इस सदी की ताकत नहीं बल्कि 250 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक फैली भारतीय सहस्राब्दी से एक ताकत रहा है. उस समय भारत दुनिया का केंद्र था. तब भारतीय व्यापारी अपना माल रोमन साम्राज्य तक भेजते थे.अंगकोर वाट की गैली दीर्घाओं में आप खेरा की लड़ाई, लंका की लड़ाई, कृष्ण और उनकी गोपी की छवियां देखते हैं, मगर इनके बारे में इतिहास में कुछ नहीं है? भारत का एशिया पर 1000 वर्षों तक प्रभुत्व रहा. इतिहास में भारत की कहानी ज्यादातर उपनिवेशवाद के बारे में है.इसी कारण मैकऑले और उनके जैसे अन्य लोगों ने कहा था कि अच्छी अंग्रेजी किताबों की एक शेल्फ भारत और अरब के संपूर्ण देशी साहित्य के बराबर है. हालांकि, सच्चाई इससे अलग है.समुद्र में सिल्क रोड को सभी जानते हैं. हमें बताया गया है कि प्राचीन काल में पूर्व और पश्चिम में मुख्य व्यापार इसी रास्ते से होती थी.

रोम से व्यापार करता था भारत

सिल्क रोड के बारे में बताते हुए विलियम डेलरिंपल ने कहा कि एक पल के लिए इस मार्ग को याद करें और इसकी तुलना भारत के साथ रोमन व्यापार के वास्तविक स्वरूप से करें, जो कि इस वर्ष ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक नए मानचित्र से पता चलता है. यहां पुरातत्वविदों द्वारा खोजे गए रोमन सिक्कों के भंडार का एक नक्शा है. इसका सेंटर स्पेन, ग्रीस, इटली, दक्षिणी इंग्लैंड है और जैसे-जैसे आप स्कैंडिनेविया और जर्मनी में उत्तर की ओर जाते हैं, यह कम होता जाता है. भूमध्य सागर के आसपास बहुत सारे सिक्के हैं, नील नदी के नीचे कुछ सिक्के हैं. कुछ यमन में हैं और कुछ सिक्के अब अफगानिस्तान में बिखरे हुए हैं, लेकिन नीचे दाएं कोने में भारत को देखें. भारत रोमन सिक्कों के भंडार से भरा पड़ा है. वास्तव में, अब यह स्पष्ट हो गया है कि रोम का भारत प्रमुख व्यापारिक भागीदार था. प्रारंभिक सहस्राब्दी में भारत और रोम एक दूसरे के प्रमुख व्यापारिक भागीदार थे. इसके अलावा भी दुनिया के कई देशों को भारत सामान पहुंचाता था.

सोने की चिड़िया ऐसे बना

250 ईसा पूर्व में अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और उनके शासनकाल में आप देखते हैं कि प्रचारकों को आधुनिक लीबिया तक के क्षेत्र में भेजा जा रहा है. आप बौद्ध धर्म को दक्षिण की ओर फैलते हुए भी देखते हैं. तब अशोक ने अपने पुत्र महिंदा को श्रीलंका भेजा. हमने हाल ही में मध्य श्रीलंका में राज गलाह की पहाड़ी पर महिंदा का मूल स्तूप खोजा है, जिस पर ब्राह्मी लिपि में उनका नाम लिखा है.समय के साथ श्रीलंका बौद्ध गतिविधि का केंद्र बन गया और यहां से बर्मा, थाईलैंड, मलेशिया तक पहुंचा.इतिहासकार प्लिनी (Pliny) ने रोमन इलाकों से भारत के इलाकों में सोने की आश्चर्यजनक निकासी के बारे में बात की है.रोम और भारत के बीच व्यापार इतना ज्यादा था कि रोमन लोग भारत के पश्चिमी तट के प्रत्येक बंदरगाह को जानते थे. उनकी जुबान पर विशेष रूप से बारी (अब केरल)और गाजा (अब गुजरात) नाम रहता था.अमरावती से कुछ भारतीय शासकों के दरबार में उपहारों में सुंदर इथियोपियाई सामान की तस्वीरें भी मिली हैं. इससे पता चलता है कि भारत में विदेशों से बने सामानों का उपयोग भी होता था.भारत में ही उस समय रोम से भारी मात्रा में सामान के बदले सोना पहुंचता था.उस समय रोम के बारे में कहा जाता था कि वहां कभी सूर्य नहीं डूबता और भारत उसी से कमाकर बहुत अमीर होता जा रहा था.

शिक्षा की जननी नालंदा

मूल रूप से, बौद्ध धर्म सिर्फ व्यापारियों द्वारा चीन में लाया गया एक धर्म है. 5वीं और 6वीं शताब्दी तक, आप पाते हैं कि गुप्तावंश की मूर्तियों की नकल चीन में की जा रही थी.चीन के बौद्ध मंदिरों पर भारतीय दिखने वाले देवता और अप्सराएं होती थीं.इसी बीच चीन का एक भिक्षु जुआन जांग यात्रा करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय आता है.नालंदा उस समय दुनिया का ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज था. प्राचीन एशिया का नासा था. यहां का दौरा कर चीन, कोरिया और जापान के भिक्षुओं ने किया. जुआन जांग ने बताया था कि नालंदा के पुस्तकालय में न केवल बौद्ध ग्रंथ, बल्कि वेदों, विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान से भरे हुए हैं. नालंदा में विभिन्न मठों और विश्वविद्यालय भवनों की योजना ही आज हम ऑक्सब्रिज में पाते हैं.

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हम सभी अपने स्कूलों में जिन नंबरों को जानते हैं, वह ब्राह्मी से आए हैं. अमेरिका में, हम उन्हें अरबी अंक कहते हैं, क्योंकि यूरोपीय लोगों ने उन्हें अरबों से प्राप्त किया था, लेकिन अरबों ने इन्हें भारत से प्राप्त किया. जीरो भी भारत से आया. इसे तो सब मानते हैं. बीजगणित भारत ने दिया. पहली शताब्दी में ब्राह्मी लिपि में 1 से 9 तक के अंत लिखे गए. ब्राह्मी लिपि प्राचीन भारत लिपि थी. फिर इसे 9वीं शताब्दी में लिखा गया. फिर ग्यारहवीं शताब्दी में संस्कृत देवनागरी लिपि में लिखा गया. यहीं से अरब होते हुए ये यूरोप तक पहुंचा. 

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