'दो जिस्म, एक लीवर और 6 घंटे लम्बा ऑपरेशन!' नवजात बहनों की हुई चमत्कारी सर्जरी

6 घंटे के सफल ऑपरेशन कर इन जुड़वा बच्चियों को अलग किया है और दो दिनों के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया था. डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखने के बाद अब बच्चियों को घर भेज दिया गया है. परिवार को जब जुड़े हुए जुड़वा बच्चे की जानकारी मिली थी, तब इनके पास गर्भपात का विकल्प था लेकिन इन्होंने बच्चियों को जीवन देने की ठानी!

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वाडिया हॉस्पिटल में इससे पहले भी ऐसी तीन चमत्कारी सर्जरी हो चुकी हैं.
मुंबई:

दो शरीर, एक लीवर और छह घंटे का लम्बा ऑपरेशन! मुंबई के वाडिया अस्पताल में चमत्कारी सर्जरी के ज़रिए दो जुड़वा बहनों को अलग किया गया. लाखों में किसी एक बच्चे को होने वाली इस बीमारी का ऑपरेशन बहुत जटिल था. इसकी सक्सेस रेट 50%  बतायी जाती है! जुड़वां बच्चियों का जन्म वाडिया अस्पताल में ही 21 दिसंबर 2020 को हुआ था. इनका शरीर छाती से लेकर पेट तक जुड़ा हुआ था. दोनों का लीवर एक था और निचले छाती की हड्डी से नाभि तक का हिस्सा जुड़ा था. शरीर में खून की कमी भी थी.

जन्म के समय इन बच्चियों का कुल वजन 4.2 किलोग्राम था. जन्म के समय एक बच्ची गुलाबी दिख रही थी और दूसरी का रंग पीला पड़ता दिख रहा था.  डॉक्टरों को पहले से आभास था कि इन बच्चों को तत्काल सर्जरी की जरूरत है. इसके बाद माता-पिता की अनुमति से जन्म के चौदहवें दिन इनकी सर्जरी की गई. पीडिऐट्रिक सर्जन के साथ नीओनेटॉलॉजिस्ट, ऐनेस्थीज़ीलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन, कार्डियक सर्जन और रेडियोलॉजिस्ट जैसे स्पेशलिस्ट्स की मौजूदगी में 3 जनवरी को आखिरकार ये चमत्कारी सर्जरी हुई!

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6 घंटे का सफल ऑपरेशन कर इन जुड़वा बच्चियों को अलग किया गया. उसके बाद दो दिनों के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया था. डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखने के बाद अब बच्चियों को घर भेज दिया गया है. परिवार को जब लीवर से जुड़े हुए जुड़वा बच्चे की जानकारी मिली थी, तब इनके पास गर्भपात का विकल्प था लेकिन इन्होंने बच्चियों को जीवन देने की ठानी!

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जुड़वा लड़कियों की माँ नेहा ने कहा, "दसवें हफ़्ते में हमें पता चला कि हमारे बच्चे जुड़े हुए हैं, फिर हमने पता करना शुरू किया कि सेपरेशन सर्जरी के लिए कहाँ जा सकते हैं फिर हमें वाडिया का सुझाव मिला. हम हर चुनौती के लिए तैयार थे, हम जानते थे ये आसान नहीं होगा लेकिन हमें बच्चियों की ज़िंदगी के लिए ये कदम उठाना ही था."

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वाडिया हॉस्पिटल के पीडीऐट्रिक विभाग के हेड डॉ. प्रदन्या बेंद्रे ने कहा, "ऐसे बच्चों की सर्जरी बहुत जोखिम भरी होती है, छठवाँ महीना था और उनको ऑप्शन था कि वो गर्भ गिरा सकते थे, पर पेरेंट्स को बच्चे चाहिए ही थे.  उनकी जाँच में पता चला कि उनका लीवर काफ़ी जुड़ा था, नसें भी एक-दूसरे की तरफ़ जा रही थीं. इस वजह से एक बच्ची को तकलीफ़ ज़्यादा थी, दूसरे को कम. इसका मतलब ये होता है कि ऐसे बच्चों को बहुत दिनों तक जुड़वां नहीं रख सकते. इनकी डिलीवरी प्लान की गयी इस सर्जरी के लिए एक स्पेशल टीम बनाया गया था." बता दें कि ऐसी जटिल और रेयर सर्जरी का सक्सेस रेट सिर्फ़ 50% बताया जाता है. वाडिया हॉस्पिटल में इससे पहले भी ऐसी तीन चमत्कारी सर्जरी हो चुकी हैं. 

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