मध्य प्रदेश में कफ सिरप से बच्चों की मौत... अब दवाओं के कमजोर रिपोर्टिंग सिस्टम पर उठे सवाल ​​​​​​​

दूषित कफ सिरप के कारण छिंदवाड़ा में बच्चों की दुर्भाग्यपूर्ण मौतों के मद्देनजर दिल्ली स्थित सीताराम भरतिया इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च ने अपने डॉक्टरों को एक एडवाइजरी जारी की है.

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  • मध्य प्रदेश में जहरीली कफ सिरप से बच्चों की मौत ने देश के स्वास्थ्य संरचना की कमियों को उजागर किया है.
  • देश में ओपीडी में दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों की रिपोर्टिंग की कोई प्रभावी व्यवस्था वर्तमान में नहीं है.
  • डॉक्टर और मरीज दोनों के पास दवा से होने वाले नुकसान की रिपोर्टिंग के लिए स्पष्ट और आसान प्रक्रिया नहीं है.
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नई दिल्‍ली:

मध्य प्रदेश में बच्चों की कंटामिनेटेड/जहरीली कफ सिरप से हुई दर्दनाक मौत के बाद देश में स्वस्थ्य के बुनियादी ढांचे को लेकर कई बड़े सवाल खड़े हुए हैं. एक अहम सवाल देश में कमजोर Adverse Drug Reaction Reporting को लेकर उठ रहा है. यानि अगर किसी विशेष ड्रग या सिरप की वजह से मरीज की हालत खराब हो रही है तो तत्काल इसकी जानकारी सरकारी मेडिकल ऑथॉरिटीज के पास कैसे रिपोर्ट की जाए. 

मरीजों के लिए नहीं कोई व्‍यवस्‍था 

मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप के शुरुआती इस्तेमाल के दौरान ही अगर बच्चों के स्वस्थ्य पर इसके घातक असर की जानकारी रिपोर्ट की गयी होती तो कई मासूम बच्चों की जान बचाई जा सकती थी.अभी देश में OPD के मरीजों और डॉक्टरों के पास किसी ड्रग्स के इस्तेमाल के प्रतिकूल असर को तत्काल रिपोर्ट करने की कोई कारगर व्यवस्था नहीं है. ये व्यवस्था सिर्फ हॉस्पिटल में एडमिट किये गए मरीजों के लिए है जो देश में कमजोर हो चुकी है. 

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स  

सीताराम भरतिया इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च के डिप्‍टी मेडिकल डायरेक्टर डॉ. जीतेन्द्र नागपाल ने एनडीटीवी से कहा, 'मैं यह कहूंगा की रिपोर्टिंग की व्यवस्था कमजोर है. खास तौर पर जैसे OPD में, जैसे आपने डॉक्टर को दिखाया और दवाई लिख दी, उस सन्दर्भ में यह व्यवस्था काफी कमजोर है. कई बार पेशेंट, डॉक्टर के पास वापस जाता है कि उसकी प्रेसक्राइब्ड दवाई का असर नहीं हुआ या नुकसान हो गया है. ऐसे में कहां और कैसे डॉक्टर को रिपोर्ट करना चाहिए और कितने डॉक्टर एक्चुअली ये रिपोर्ट कर रहे हैं?' 

उन्‍होंने आगे कहा, 'यह एक समस्या का कारण है. दूसरा, अगर मरीज को खुद लगा की दवा से नुकसान हो रहा है तो उसके पास भी ऐसी कोई रिपोर्टिंग की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में कई बार अहम बात दब कर रह जाती है. ऐसे मामलों में रिपोर्टिंग का एक बहुत अच्छा एक मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क बन सकता है. आजकल AI का जमाना है और अगर एक एरिया से किसी विशेष दवाई की वजह से मरीजों को नुकसान हो रहा है तो AI की मदद से जो अधिकारी ड्रग्स सिस्टम की मॉनिटरिंग करते हैं वो इंटेलिजेंस गैदरिंग कर सकते हैं.'

और भी ऐसे कफ सिरप मौजूद?  

डॉ. जीतेन्द्र नागपाल कहते हैं, छिंदवाड़ा में जिस परिस्थिति में मासूम बच्चों की जहरीले कफ सिरप से मौतें हुईं वह 'टिप ऑफ द आइसबर्ग'  हो सकता है यानी सिर्फ एक शुरुआत भर हो सकता है. सवाल ये है क्या ये एक आइसोलेटेड इंसिडेंट था? या ऐसी कई घटनाएं होती हैं जिसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं होती है? क्या हर प्लांट में GMP गाइडलाइन्स फॉलो हो रहा है, ड्रग्स की टेस्टिंग फार्मेसी में हो रही है? ये तो तय है कि इस मामले में WHO के मैंडेट के अनुसार कफ सिरप की मैन्युफैक्चरिंग के दौरान गुड मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रैक्टिस यानी GMP का पालन नहीं किया गया.

संभव है कि कुछ मामलों में इस तरह के कंटामिनेटेड दवाइयों का बच्चों के वाइटल ऑर्गन्स जैसे लिवर, किडनी आदि पर काफी बुरा असर पड़ रहा है लेकिन इसकी पुख्ता जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाई है.  

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दिल्ली में जारी हुई एडवाइजरी 

दूषित कफ सिरप के कारण छिंदवाड़ा में बच्चों की दुर्भाग्यपूर्ण मौतों के मद्देनजर दिल्ली स्थित सीताराम भार्गव विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान ने अपने डॉक्टरों को एक एडवाइजरी जारी की है. इस एडवाइजरी के तहत DGHS दिशानिर्देशों का सख्‍ती से पालन करने और कफ सिरप का सीमित इस्तेमाल करने की बात कही गई है. साथ ही डॉक्‍टरों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी प्रतिकूल घटना के बारे में तुरंत ध्यान दें. जाहिर है, मध्य प्रदेश में मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत से जिलों और कस्बों में स्वास्थ्य केंद्रों और ड्रग मैनेजमेंट की व्यवस्था पर आम लोगों का विश्वास कमजोर हुआ है. इस संकट को दूर करने के लिए नए स्तर राज्य सरकारों को बड़े स्तर पर हस्तक्षेप करना होगा. 

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