'भागो, स्वाति साठे आ गई!...' संजय दत्त, अतीक अहमद और अजमल कसाब को कैद रखने वाली सख्त जेलर हुईं रिटायर

एक बार जब संजय दत्त को टाडा के मामले में गिरफ्तार करके लाया गया तो उन्होंने जेल के कपड़े पहनने से इंकार कर दिया था तो जेलर स्वाति साठे पहुंचीं और बोलीं कि 'संजू, तू बातों से मानेगा या लातों से?'

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स्वाति साठे हुईं रिटायर
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  • महाराष्ट्र कारागार विभाग की एक सख्त और ईमानदार अधिकारी स्वाति साठे रिटायर हो चुकी हैं.
  • जेल के कपड़े पहनने से इनकार करने वाले संजय दत्त को उन्होंने कहा था- 'संजू, तू बातों से मानेगा या लातों से?'
  • अतीक अहमद ने खानसामा की डिमांड की तो स्वाति ने कहा था- 'मेरी जेल में जो रहता है वो जेल का ही खाना खाता है.'
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इन दिनों मौसम चल रहा है ऐसे पुलिस अधिकारियों के सेवानिवृत्त होने का जिन्होंने किसी वक्त में मुंबई अंडरवर्लड के खिलाफ अभियान चलाया था. 31 जुलाई को मुंबई पुलिस के अंतिम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर दया नायक की सेवा निवृत्ति हुई. उसी दिन पड़ोसी शहर पुणे में भी एक महिला वर्दीधारी अफसर की सेवा समाप्त हुई, जिनका नाम सुनते ही अपराधियों के होश उड़ जाते थे. ये नाम है स्वाति साठे का जो महाराष्ट्र कारागार विभाग से बतौर आई.जी रिटायर हुईं. स्वाति साठे की छवि एक बड़ी ही ईमानदार और सख्त जेल अधिकारी की रही है. साठे के अधीन कई हाई प्रोफाइल शख्सियतें कैद में रहीं, जिनमें फिल्मस्टार संजय दत्त, शाइनी आहूजा, बमकांड आरोपी याकूब मेमन, आतंकी अजमल कसाब और अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम का नाम शामिल है.

ताकत और पैसे के बल पर राज करने वाले कैदियों को किया ठीक

'भागो, स्वाति साठे आ गई,' ये वाक्य उस वक्त मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में गूंज उठता था, जब साठे बतौर जेलर कारागृह परिसर का मुआयना करने निकलती थीं, जो कैदी अपनी ताकत और पैसे के बल पर जेल में राज करते थे, वे स्वाति साठे के सामने भीगी बिल्ली बन जाते थे. साठे एक सख्त और अनुशासन परस्त अधिकारी मानी जाती थीं. अगर कोई जेल में दबंगई करते दिखा और जेल के नियम तोड़ते पाया गया तो स्वाति साठे उसकी ऐसी खबर लेती थीं कि वो फिर कोई हिमाकत करने लायक नहीं रहता था.

संजय दत्त से कहा था-  'संजू, तू बातों से मानेगा या लातों से?”

एक बार जब संजय दत्त को टाडा के मामले में गिरफ्तार करके लाया गया तो उन्होंने जेल के कपड़े पहनने से इंकार कर दिया. जेल के निचले स्तर के कर्मचारी दत्त का रुतबा देखकर उनसे तमीज से पेश आ रहे थे और कपड़े पहन लेने की गुजारिश कर रहे थे, लेकिन दत्त नहीं मान रहे थे. जब खबर साठे के कानों तक पहुंची तो वह तमतमाते हुए दत्त के सामने पहुंचीं और अपनी छड़ी उन्हें दिखाते हुए चेतावनी दी – 'संजू, तू बातों से मानेगा या लातों से?” साठे का गुस्सा देखकर दत्त डर गए और फिर चुपचाप उन्होंने कपड़े पहन लिए.

अतीक अहमद से स्वाति ने कहा था- 'मेरी जेल में जो रहता है वो जेल का ही खाना खाता है.'

अतीक अहमद, उत्तर प्रदेश का वो बाहुबली राजनेता जिसकी हत्या कर दी गई, भी साठे का कैदी रह चुका है. 2006 में समाजवादी पार्टी ने मुंबई में तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के खिलाफ एक जेल भरो आंदोलन किया था. अतीक भी उसमें शामिल हुआ और गिरफ्तार कर लिया गया. उसे ऑर्थर रोड जेल में लाया गया. जेलर साठे ने अपनी छवि के मुताबिक उसके साथ कोई विशेष व्यवहार नहीं किया. अहमद ने मांग की कि वो जेल में अपने साथ अपना खानसामा भी रखना चाहता है तो स्वाति साठे ने सीधे मना कर दिया ये कहते हुए – 'मेरी जेल में जो रहता है वो जेल का ही खाना खाता है.'

अतीक अहमद से स्वाति ने कहा- 'अगर चिल्लाना बंद नहीं किया तो अंडा सेल में डाल दूंगी'

साठे का जवाब सुनकर अतीक आग बबूला हो उठा और उसने धमकी भरी आवाज में कहा – 'मैं इतनी जेलों में रह चुका हूं लेकिन किसी ने भी मुझसे ऊंची आवाज में बात नहीं की.' स्वाति साठे ने इस पर अतीक को चेतावनी दी – 'तुमको क्या लगा कि यहां मुजरा देखने मिलेगा? अगर चिल्लाना बंद नहीं किया तो अंडा सेल में डाल दूंगी.'

इस बीच पार्टी के महाराष्ट्र प्रमुख अबू आजमी ने मध्यस्थता की और उन्होने कान में अतीक को स्वाति साठे की छवि के बारे में बताया और अंडा सेल कितनी तकलीफदेह जगह है ये भी बताया. इसके बाद अतीक अहमद शांत हो गया. दो रात वो जेल में ही फर्श पर सोया और बिना किसी विरोध के जेल का खाना खाया. इस बीच वो साठे की कार्यशैली से बड़ा प्रभावित हुआ और जमानत पर बाहर निकलते वक्त साठे से बोला – 'मैडम, जेल ऐसी ही होनी चाहिए. हमारे जैसे लोग जेल में सुख-सुविधा की फरमाईश करते हैं. आपको तो यूपी की जेल में आना चाहिए.

जेल में अक्सर रंगरलियां मनाई जाती थीं... स्वाति ने शुरू करवाया भजन-गजल और योग

स्वाति साठे के ऑर्थर रोड जेल में प्रभार संभालने से पहले अक्सर जेल में रंगरलियां मनाईं जाती थी. नए साल का मौका हो या किसी डॉन का जन्मदिन, गैंगस्टर जमकर अय्याशी करते थे. स्वाति साठे ने ये सबकुछ बंद करा दिया. दूसरी ओर उन्होंने जेल में सांस्कृतिक आयोजन शुरू करवा दिए जैसे भजन, गजल, योग इत्यादि के कार्यक्रम और कैदियों को उनमें शिरकत करने के लिए प्रोत्साहित किया.

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स्वाति साठे के सामने जब आया ये धर्मसंकट

स्वाति साठे के लिए उस वक्त धर्मसंकट आ खड़ा हुआ जब पुलिस महकमे के ही कुछ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एक मामले में कैदी की तरह उनकी जेल में आए. ये मामला था करोड़ों के फर्जी स्टांप पेपर घोटाले का था, जिसे तेलगी घोटाले के नाम से भी जाना जाता है. इस घोटाले की जांच के दौरान मुंबई पुलिस के कांस्टेबल से लेकर कमिश्नर रैंक तक के अधिकारी गिरफ्तार किए गए थे. स्वाति साठे ने उन्हें भी जेल में कोई विशेष सहूलियत नहीं दी.

स्वाति ने जेल में ऐसे टाले गैंगवार, ये बनाई रणनीति

मुंबई अंडरवर्ल्ड के कई गिरोहों में आपसी गैंगवार होते थे और ये गैंगवार जेल के भीतर भी जारी रहते जब उन गिरोह के लोगों का आमना-सामना होता. दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और अरूण गवली जैसे माफियाओं के बीच चलने वाली अदावत उनके गुर्गे जेल की चारदीवारी के भीतर भी निभाते. स्वाति साठे ने जेल-गैंगवार को रोकने के लिए अलग-अलग गिरोह के सदस्यों को अलग अलग बैरक्स में रखने की रणनीति बनाई ताकि उनके बीच के टकराव को टाला जा सके. इसके बावजूद एक बार कैदी अबू सलेम पर दूसरे कैदी मुस्तफा दौसा ने चम्मच को पत्थर से धारदार बनाकर हमला कर दिया. अपनी अनुशासनप्रियता की वजह से साठे महाराष्ट्र के दिवंगत गृहमंत्री और एनसीपी नेता आरआर पाटिल की काफी चहेती थीं.

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आर्थर रोड से जब उनकी पदोन्नती और तबादला हुआ तो महाराष्ट्र की दूसरी जेलों में जाकर भी उन्होने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया. कई जेलों से उन्होंने कैदियों के पास से मोबाइल फोन जब्त किए और भ्रष्ट जेल कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की. कई भ्रष्ट अधिकारी उनके दुश्मन बन गए. साठे के मुताबिक- गैंगस्टरों से ज्यादा खतरा उन्हें अपने ही विभाग के भ्रष्ट अफसरों से था. एक बार साठे और उनके परिवार को ऐसे ही एक अधिकारी से धमकी का भी सामना करना पड़ा था. तमाम दबावों के बावजूद स्वाति साठे ने अपने तेवर बरकरार रखे और उनके बारे में ये मशहूर था कि राजनीतिक आकाओं के नियम से बाहर दिए गए आदेश को मानने से वे इंकार कर देती थीं.

कैदियों को सुधारने की रही हमेशा मंशा

साठे के जानने वाले बताते हैं कि भले ही स्वाति साठे एक सख्त छवि की अधिकारी रही हों, लेकिन वे उनकी मंशा कैदियों को सुधारने की रहती. वह चाहती थीं कि जेल से निकलने के बाद कैदी अच्छा जीवन जी सकें. यही वजह है कि जेल से बाहर निकले वे कैदी जो कि उनके हाथों सजा पा चुके हैं भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते.

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