- माओवादियों की सेंट्रल कमिटी के 17 साल तक सदस्य रहे चंद्रन्ना ने माना कि नक्सलवादी आंदोलन कमजोर हो गया है
- 45 साल तक अंडरग्राउंड मूवमेंट चलाने वाले चंद्रन्ना ने कहा कि दंडकारण्य के 3 जोन में पार्टी खत्म हो चुकी है
- उन्होंने कहा कि अमित शाह की डेडलाइन के बावजूद मार्च 2026 तक नक्सलवाद पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है
देश से नक्सलवाद के खात्मे की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की डेडलाइन में अभी 4 महीने बाकी हैं, लेकिन माओवादियों की कमर अभी से टूट गई है. माओवादियों की सेंट्रल कमिटी के 17 साल तक सदस्य रहे और 45 साल तक अंडरग्राउंड मूवमेंट चलाने वाले पिल्लारी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना ने NDTV से खास बातचीत में माना कि नक्सलियों में मतभेद अब खुलकर सामने आ चुके हैं. हालात ऐसे बन गए हैं कि वामपंथी चरमपंथ का सर्वाइव करना मुश्किल है.
टॉप नक्सली ने माना, कमजोर हो गई है पार्टी
बिगड़ती सेहत और सरकार के शिकंजे को देखते हुए मुख्यधारा में लौट चुके चंद्रन्ना ने बताया कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) पार्टी में अब वैचारिक मतभेद चरम पर हैं. इन मतभेदों और माओवादियों को लगे एक के बाद एक झटकों ने पार्टी को कमजोर कर दिया है. उन्होंने कहा कि मुख्यधारा में लौटना और हथियार डालकर सरेंडर करने में फर्क है. माओवादी पार्टी की विचारधारा अब भी जिंदा है, लेकिन बदले राजनीतिक और राष्ट्रीय हालात को देखते हुए पार्टी के राजनीतिक और सैन्य ढांचे में भी बदलाव हो रहे हैं. जब मैं पार्टी में था, तब हम कुछ दस्तावेज तैयार कर रहे थे. कुछ तैयार हो भी गए थे. इन सभी का मकसद बदलाव लाना था.
मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म करना मुश्किल
गृह मंत्री अमित शाह के मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म करने के सवाल पर चंद्रन्ना ने कहा कि पार्टी को नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मार्च तक इसे पूरी तरह खत्म किया जा सकता है क्योंकि यह सिर्फ हथियारबंद पार्टी नहीं है, यह लोगों के बीच रहकर काम करने वाली पार्टी है. देश में इसके हजारों कार्यकर्ता हैं. 16 राज्यों में इसका अस्तित्व है. 2019 में भी पार्टी को कुछ झटका लगा था. लेकिन हमें एकजुट रहकर लोगों की भलाई के लिए काम करते रहना होगा.
दंडकारण्य के 4 जोन में से 3 में खत्म हुई पार्टी
चंद्रन्ना ने माना कि 21 मई तो नंबाला केशव राव उर्फ बसवराज का मारा जाना पार्टी के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी. दंडकारण्य के 4 जोन में से सिर्फ दक्षिणी बस्तर जोन में अब पार्टी बची है. दोनों के बीच डिफरेंस है. नॉर्थ जोन में पार्टी और ब्यूरो को बड़ा नुकसान पहुंचा है. लेकिन साउथ जोन सेफ है. बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा वगैरा के कैडर देवूजी का लाइन पर चलते हैं, इसलिए ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.
माओवादियों की वजह से बस्तर नहीं पिछड़ा
45 साल तक अंडरग्राउंड रहकर माओवादी नीतियों का प्रचार-प्रसार करने वाले चंद्रन्ना ने बताया कि 70 के दशक में तेलंगाना में पार्टी की शुरुआत हुई थी. फिर पीपल्स वॉर ग्रुप बना और जमींदारों के खिलाफ लड़ाई शुरू हुई. इसकी बदौलत कई लोगों को जमीनें वापस मिलीं. उनका कहना था कि बस्तर में सत्ताधारी पार्टियां कहती हैं कि यह इलाका माओवादियों की वजह से पिछड़ा हुआ है, लेकिन यह सच नहीं है. आजादी को 75 साल हो चुके हैं, लेकिन यह अब भी पिछड़ा क्या हैं. इसकी वजह माओवादी नहीं, सत्ताधारी पार्टियां हैं. माओवादी आंदोलन तो 80 के दशक में बढ़ा था.
पार्टी में साफ दिख रहा विभाजन, कैडर भी प्रभावित
लंबे अरसे तक माओवादियों की सेंट्रल कमिटी के सदस्य रहे चंद्रन्ना ने माना कि ऑपरेशन कगार और सरकार की सरेंडर पॉलिसी की वजह से पार्टी के कई नेता अलग हो गए हैं. पार्टी में विभाजन साफ दिख रहा है. कैडर पर भी असर पड़ा है. आगे और भी लोग पार्टी से बाहर आ सकते हैं. सरकार जो वित्तीय सहायता दे रही है, लोगों को उसकी जरूरत है. लोगों को रहने के लिए घर, खाने के लिए भोजन और पहनने के लिए कपड़े चाहिए.
नौकरी-रोजगार से नहीं मिटेगा नक्सलवाद
उन्होंने कहा कि नौजवानों को सरकार की तरफ से नौकरी, रोजगार मिलने पर नक्सलवाद कमजोर हो सकता है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होगा. इसे पूरी तरह खत्म करना है तो उन समस्याओं को खत्म करना होगा, जिसकी वजह से नक्सलवाद आंदोलन शुरू हुआ था और ये समस्याएं हैं समाज में असमानता और गरीबी. अगर सरकार इन्हें खत्म कर देती है तो नक्सलवाद खत्म हो जाएगा.













