आस्ट्रेलिया के लौवी इंस्टीट्यूट के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर माइकल फुलीलव के साथ बातचीत में उनसे पूछा गया कि पश्चिम में एक अवधारणा बन रही है कि क्या भारत उदारवाद छोड़कर अनुदारवाद की तरफ़ बढ़ रहा है. हवाला द इकोनॉमिस्ट मैगजीन के आलेख का दिया गया. विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने अपने जवाब में इस मैगज़ीन पर राजनीतिक तौर पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि पश्चिम के वे लोग जो भारत को लेकर लिख रहे हैं और टिप्पणी कर रहे हैं वे भारत में आ रहे बदलावों को समझ पाने में नाकाम रहे हैं. भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मज़बूत हैं. आज से 70 साल पहले के भारत के नेताओं की तरफ़ देखें तो वे ज़्यादातर अंग्रेज़ी बोलने वाले और बड़े शहरों से होते थे.
विदेश मंत्री ने आगे कहा कि मैं आपको बताना चाहूंगा कि आखिर क्यों इस तरह के विश्लेषण (भारत के अनुदारवाद की तरफ़ बढ़ने जैसे) किए जा रहे हैं. वे इसलिए कि अब जब वे यहां देखते हैं तो सोचते हैं कि ये वे लोग नहीं हैं जिनको हम जानते थे. ये अलग तरह की भाषा बोलते हैं. इनके सोचने का तरीका नहीं पता. इनके सामाजिक व्यवहार का तरीका अलग हैं. ये वो लोग नहीं हैं जिनको हम जानते थे. ये अलग हैं.
विदेश मंत्री ने कहा कि वे भारत में आए इस बदलाव को समझने की कोशिश नहीं करते. ये वैश्विकरण और कुलीनता से जुड़ी समस्या लगती है. भारत में एक सांस्कृतिक बदलाव भी हो रहा है. वे हर चुनाव में एक अलग तरह की भविष्यवाणी करते हैं. आपने जिस पब्लिकेशन का नाम लिया उनकी पिछली भविष्यवाणियों को ही देख लीजिए. पिछले 6 साल में ये लोग भारत के बारे में सब कुछ गलत समझ रहे हैं.
एस जयशंकर ने कहा कि भारत के बदलावों से दुनिया को कैसे परिचित कराया जाए, बदलता भारत दुनिया के साथ कैसे बेहतर तरीके से संवाद करे, ये काफ़ी अहमियत रखता है. उन्होंने ये भी कहा कि विदेश मंत्री के तौर पर उनके सामने ये चुनौती है और दो साल से वे इस पर काम कर रहे हैं.