दृष्टिबाधितों की मदद के लिए चेन्‍नई के Autism से प्रभावित स्‍टूडेंट्स ने बनाई विशेष कोविड वेबसाइट

Autism से प्रभावित चेन्‍नई के तीन स्‍टूडेंट्स प्रेम, प्रणव श्रीधर और सर्वना राज ने दृष्टिबाधित समुदाय को कोविड-19 से संबंधित अहम जानकारी उपलब्‍ध कराने के लिए देश की पहली वेबसाइट डिजाइन की है.

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तीनों स्‍टूडेंट्स ने जटिल सरकारी डेटा को ग्राफिक्‍स, चार्ट्स के जरिये सरल ढंग से समझाने का प्रयास किया है

चेन्‍नई:

विश्‍वास करना मुश्किल है लेकिन यह है सच. Autism (मस्तिष्‍क के विकास के दौरान होने वाली बीमारी) से प्रभावित चेन्‍नई के तीन स्‍टूडेंट्स प्रेम, प्रणव श्रीधर और सर्वना राज ने दृष्टिबाधित समुदाय को कोविड-19 से संबंधित अहम जानकारी उपलब्‍ध कराने के लिए देश की पहली वेबसाइट डिजाइन की है.साइट www.hashackcode.com/covid-19 पर इन्‍होंने राज्‍य सरकारों और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के जटिल सरकारी डेटा को ग्राफिक्‍स, चार्ट्स और तस्‍वीरों के जरिये HTML फॉर्म में सरल ढंग से समझाने का प्रयास किया है ताकि दृष्टिबाधित लोग द्वारा इस्‍तेमाल स्‍क्रीन रीडर इसे 'पढ़' सके. आमतौर पर स्‍क्रीन रीडर्स ऐसे फॉर्म में दिए गए डेटा या जानकारी को 'रीड' नहीं कर पाता और  दृष्टिबाधित लोग इस तक पहुंच नहीं पाते. 

21 वर्ष के प्रणव श्रीधर autistic स्‍टूडेंट हैं और विजुअल कम्‍युनिेकेशन करते हुए अब वेब डेवलपर बन गए हैं. वे अपने कार्य के प्रति समर्पित हैं और लेपटॉप पर स्‍वतंत्र रूप से काम करते हैं. वे कहते हैं, 'हम ऐसे युग में रह रहे हैं जहां हर चीज ऑनलाइन और डिजिटल है. मैं दृष्टिबाधित लोगों (visually impaired people) और neuro diverse व्‍यक्तियों की मदद करना चाहिता हूं ताकि वे डिजिटल वर्ल्‍ड के साथ-साथ वास्‍तविक दुनिया को भी समझ सकें.' दरअसल यह योजना तकनीकी सामाजिक उद्यमी (Techie social entrepreneur) मनु सेकर के दिमाग की उपज थी जिन्‍होंने इन्‍हें अपनी एकेडमी में वेब डिजाइनिंग और कोडिंग सिखाई. संभवत: यह पहली बार है जब neuro diverse group ने सफलतापूर्वक एक अन्‍य अशक्‍त वर्ग (differently abled group) की परेशानी का हल तलाशा है. Autistic सहित neuro diverse ग्रुप के लिए कौशल की जरूरत के बारे में बताते हुए हैशहैककोड (HashHackCode) के संस्‍थापक और CEO मनु बताते हैं, 'यह लोग अधिकांश अवसरों से वंचित हैं, ये हमेशा कम कौशल वाली नौकरियों(low skilled jobs) की ओर धकेले जाते हैं. यह उन सभी को गलत साबित करता है कि वे ही सक्षम लोग हैं और वास्‍तविक दुनिया को समस्‍याओं को हल कर सकते हैं.'

चेन्‍नई के वाल्‍मीकि नगर में एक और autistic student, 25 वर्ष के प्रेम शंकर, अपनी मां मनगई अलवराप्‍पन की मदद से अपने लेपटॉप पर कोविड डेटा अपडेट करते हैं. वे इसे पूरी सावधानी के साथ सरकारी वेबसाइट से कॉपी करते हैं. यही नहीं, उन्‍होंने विवाह के लिए सेलिब्रेशन वेबसाइट्स भी डिजाइन की हैं और अब तक 7000 रुपये कमाए हैं. उनकी मां ने अपनी नौकरी छोड़कर प्रेम के साथ 'कोडिंग' सीखी ताकि उसका मार्गदर्शन कर सकें. वे कहती हैं, 'प्रेम की लगातार बैठने की क्षमता में सुधार हुआ है, वह पहले 10-20 मिनट से ज्‍यादा नहीं बैठ पाता था. अब वह एक घंटे तक कंप्‍यूटर पर काम कर सकता है. वह कोई गलती नहीं करता. उसकी एंट्री बेहद बेहद सटीक है, हम खुश हैं.' कमाने की क्षमता वाला प्रेम का नया IT (Information Technology) कौशल परिवार के लिए प्रेरणा बनकर आया है. उसके पिता अल्‍वराप्‍पन कहते हैं, 'पहले हम चिंतित रहते थे. अब हमारे लिए कुछ उम्‍मीद की किरण है. वह अब कमा रहा है.'

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टीम के तीसरे सदस्‍य सर्वना राज की मां दीपा सतीश ने बेटे को कौशलवान बनाने में मदद के लिए अपना 'बेस' तूतीकोरिन से चेन्‍नई शिफ्ट कर लिया था. वे बेहद खुश हैं और कहती हैं, 'हमने इसे कर दिखाया. हमने साबित किया है कि ये बच्‍चे भी वेबसाइट बना सकते हैं और HTML और CSS कोडिंग के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा सीख सकते हैं.' ये माताएं अब आईटी कंपनियों, मीडिया डिजिटल प्‍लेटफॉर्म्‍स और कॉरपोरेट्स के बीच कौशलवान autistic लोगों को मौका देने के लिए जागरूकता अभियान शुरू कर रही हैं. प्रणव की मांग, रूपा श्रीधर कहती हैं, 'यह निश्चित रूप से इनके लिए आगे बढ़ने का रास्‍ता होगा. हम आईटी फील्‍ड में बहुत सारे विकल्‍प देख रहे हैं.' 

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दृष्टिबाधितों ने इस तीनों स्‍टूडेंट्स की ओर से विकसित की गई सुलभ (Accessible) वेबसाइट को हाथोंहाथ लिया है. चेन्‍नई के एक अन्‍य हिस्‍से नेत्रोदय (दृष्टिबाधितों के केंद्र) में, आईएएस बनने का इच्‍छुक दृष्टिबाधित सेल्‍वामनि इस साइट को, हर दिन के कोविड डेटा को लेकर अपडेट रहने के लिहाज से उपयोगी मानता है. वह कहता है, 'यह कोविड डेटा के लिए 'वन स्‍टॉप शॉप' की तरह है. मैं हर उस जानकारी तक पहुंच पा रहा हूं जिस तक पहले नहीं पहुंच पा रहा था. नेत्रोदय के संस्‍थापक सी. गोविंदकृष्‍णन कहते हैं, 'हम पूरी तरह आत्‍मनिर्भर हैं. इस वेबसाइट ने हमारे आत्‍मविश्‍वास को एक अलग स्‍तर पर पहुंचाने का काम किया है. '

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