अदाणी पर चिट्ठी लिखने वालों का कच्चा चिट्ठा, जिनके दामन खुद दागदार वो लगा रहे आरोप

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड को 21 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अदाणी ग्रुप के खिलाफ चिट्ठी लिखकर मनगढ़ंत आरोप लगाए

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नई दिल्ली:

भारत का सपना 2047 तक सबसे बड़ी ताकत बनने का है. अभी दुनिया में भारत की अर्थव्यवस्था पांचवे नंबर पर है, जिसे बहुत जल्द तीसरे नंबर पर ले जाने की तैयारी है. लेकिन दुनिया में कई ऐसे लोग और संगठन हैं जिनसे भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था बर्दाश्त नहीं होती. इसीलिए अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले अदाणी ग्रुप (Adani Group) पर घेराबंदी की विदेशी साजिशें हो रही हैं. इसी कड़ी में 21 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को खत लिखकर कोयला आयात में कार्रवाई की बात की है. लेकिन इन कंपनियों के दामन और नीयत कितने दागदार हैं, यह इस रिपोर्ट से साफ हो जाता है.

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बस दो साल की दूरी पर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने जा रहा है. इसमें आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े औद्योगिक समूहों की महत्वपूर्ण भागीदारी है. इनमें से ही एक अदाणी ग्रुप है, जिसके औद्योगिक और कारोबारी प्रयासों से भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है. लेकिन यह मजबूती दुनिया की कुछ निहित स्वार्थों से प्रेरित ताकतों को रास नहीं आ रही है. अब देखिए, 21 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड को अदाणी ग्रुप के खिलाफ चिट्ठी लिखी है. इन संगठनों ने मनगढ़ंत आरोप लगाया है कि अदाणी ग्रुप की कंपनियों ने इंडोनेशिया से कोयला आयात मामले में गड़बड़ी की है और डायरेक्टरेक्ट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) के जरिए इसकी जांच हो. जानकार कह रहे हैं कि यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है.  
वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी कहते हैं कि, यह तो हमारी इकानॉमी को डिस्टर्ब करने, अस्थिर करने की बात है. और अदाणी ग्रुप जिसको एक बहुत सीरियस मामले में क्लीन चिट मिली है सुप्रीम कोर्ट से, उसको दोबारा किसी भी किसी भी तरीके से और झूठ फैलाकर फिर से डीफेम करने की बात है. 

पहले आप अदाणी समूह के खिलाफ डीआरआई (DRI) मामले को समझिए. डीआरआई ने करीब एक दशक पहले एक जांच शुरू की थी कि क्या अदाणी समूह और अन्य कंपनियों ने कोयले की कीमतें बढ़ाने के लिए दूरस्थ मध्यस्थों का इस्तेमाल किया था? जबकि अदाणी ग्रुप ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक केस जीत लिया था जिसमें डीआरआई को शिपमेंट का विवरण मांगने से रोक दिया गया था. 

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दरअसल यह सारा मामला लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स में जार्ज सोरोस समर्थित आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट यानी ओसीसीआरपी (OCCRP) के दस्तावेज के आधार पर छपी रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है. इस रिपोर्ट का खोखलापन समझने के लिए आप देखिए कि इस पर बाजार का क्या रुख रहा. बाजार में यह साजिश एकदम मुंह के बल गिरी. 

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फाइनेंशियल टाइम्स में जार्ज सोरोस समर्थित संगठन की रिपोर्ट के आने के बाद भी बाजार का रुख अदाणी ग्रुप के लिए सकारात्मक रहा. बुधवार को यह रिपोर्ट आई और गुरुवार को अदाणी इंटरप्राइजेज का शेयर 8.01 प्रतिशत चढ़ गया. इससे पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही दूध का दूध और पानी का पानी कर चुका है. ताजा खबर यह है कि अदाणी समूह की प्रमुख कंपनी अदाणी इंटरप्राइजेज  लिमिटेड के शेयर वह समूचा नुकसान कवर कर चुके हैं जो वर्ष 2023 की शुरुआत में एक शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद हुआ था. 

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ब्लूमबर्ग (Bloomberg) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2023 में अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद कंपनी के शेयरों में लगभग 2,49,458 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ था. गुरुवार को 8.01 फीसदी की तेजी के बाद शुक्रवार को अदाणी इंटरप्राइजेज का शेयर 1.7 फीसदी के उछाल के साथ 3445.05 तक पहुंच गया. जो कि फरवरी 2023 में इसके सबसे निचले स्तर के मुकाबले लगभग तीन गुना है. 

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अदाणी ग्रुप के खिलाफ लगे तमाम आरोप अदालतों में टिक नहीं पाए. उल्टा आरोप लगाने वाले कटघरे में खड़े हो गए. देश से विदेश तक साजिश के इस मकड़जाल में जो लोग शामिल हैं उन्हें कई बार कोर्ट की फटकार मिली है. 

महेश जेठमलानी कहते हैं कि, यह तो फिजूल की बात है, इसमें कोई दम है ही नहीं. यह 2014 का ट्रांजेक्शन है, सेम खिलाड़ी हैं जो हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बारे में पार्टिसिपेट किए थे, वही एक्टर्स फिर से इसमें इनवॉल्व हैं. यानी OCCRP.. यह बेमतलब का इशू है. यह अपोजीशन का डेस्प्रेशन दिखाता है.

लेकिन साजिश का यह इंटरनेशनल मकड़जाल है कि मानता नहीं. अब 21 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा है. तो जरा समझते हैं कि आखिर कौन हैं यह अंतरराष्ट्रीय संगठन जो भारत की आर्थिक प्रगति को रोकना चाहते हैं. एक है ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर इंटरनेशनल जस्टिस (Australian center for international justice) जिस पर फंडिंग में गड़बड़ी के कई संगीन आरोप हैं. आलोचकों का मानना है कि मानवाधिकार के नाम पर यह अपने दाताओं के हित में काम करता है. वहीं तस्मानिया का बॉब ब्राउन फाउंडेशन दावा तो पर्यावरण के लिए काम करने का करता है लेकिन इस पर आरोप है कि यह विरोध करते-करते कई बार कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ा देता है. साथ ही यह फाउंडेशन पर्यावरण के नाम पर आर्थिक प्रभावों पर पर्याप्त रूप से नहीं सोचता. 

वहीं कल्चर अनस्टेंड नाम का संगठन जीवाश्म ईंधन के खिलाफ अभियान चलाता है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह संगठन पब्लिक शेमिंग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विरोध के नाम पर बेहद टकराव की स्थिति तक चला जाता है. एक और संगठन है इको (Eko) जिस पर पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर गंभीर आरोप है. यहां तक कि इस पर लेनदेन का हिसाब किताब पूरी तरह से पारदर्शी ना रखने का भी आरोप है.  फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ ऑस्ट्रेलिया (Friends of the earth Australia) नाम के संगठन पर जलवायु परिवर्तन के असर को बेवजह तूल देने का आरोप लगता है. 

चिट्ठी लिखने वालों में लंदन माइनिंग नेटवर्क (London mining network) पर भी आरोप लगता है कि यह माइनिंग कंपनियों को लेकर बेहद नकारात्मक रवैया अपनाता है. वहीं मैके कंजर्वेशन ग्रुप पर ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में कुछ विकास प्रोजेक्ट का बेवजह विरोध करने का आरोप है. मार्केट फोर्सेस नाम का संगठन कोयला और डीजल-पेट्रोल जैसे फॉसिल फ्यूल में वित्तीय संस्थानों के निवेश के खिलाफ अभियान चलाने के लिए जाना जाता है. उस पर यह भी आरोप है कि बगैर आर्थिक विकास को सोचे यह कोयले के इस्तेमाल पर तंग नजरिया रखता है. वहीं स्टॉप अदाणी नाम का संगठन ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में अदाणी ग्रुप के कार्माइकल कोल माइन प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन चलाता है. इसके आंदोलन को आर्थिक विकास और नौकरियां पैदा करने के रास्ते में बाधा के रूप में देखा जाता है. 

सनराइज मूवमेंट (Sunrise movement) अमेरिका का संगठन है जो मौसम पर काम करता है. यह अपने विकास के विरोध वाले रुझान के लिए जाना जाता है. वहीं टिपिंग पॉइंट (tipping point) भी मौसम पर ही काम करता है जिस पर फंडिंग में घपले और पारदर्शिता की कमी का आरोप लग चुका है. जबकि टॉक्सिक बॉन्ड्स (toxic bonds) भी कोयला और डीजल पेट्रोल जैसे ईंधन क्षेत्र में काम करने के नाम पर वित्तीय संस्थानों को निशाना बनाता है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसका फोकस वित्तीय संस्थानों को बदनाम करने का होता है. एक्सटिंक्शन रिबेलियन (extinction rebellion) यानि XR नाम का क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रुप भी मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखने वालों में है. जिस पर लंदन में जेपी मॉर्गन के मुख्यालय में तोड़फोड़ का आरोप लग चुका है. 

जब निहित स्वार्थों के लिए काम करने वाले ऐसे संगठन आरोप लगाते हैं तो उसमें साफ साफ साजिश की बू आती है. यह साजिश पुरानी है और इस पर NDTV से बात करते हुए जानकारों ने क्या कहा यह भी पढ़ लीजिए. 

सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक जेएन गुप्ता ने कहा कि मार्केट और मार्केट प्लेयर्स ने यह महसूस किया कि अदाणी ग्रुप को निशाना बनाया गया. इससे बाजार ने ऐसी बेबुनियादी खबरों को नजरअंदाज करना सीखा. भारत का आर्थिक विकास तेजी से हो रहा है और यह बात उन लोगों को हजम नहीं हो रही है, जो चाहते हैं कि भारत की आर्थिक तरक्की ना हो. ऐसे लोग ही यह सब करके सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं. 

पर्यावरण के नाम पर भारत के विकास की राह में यह साजिशी संगठन इस बात को बड़े आराम से भूल जाते हैं कि 2009 में सौर ऊर्जा के मामले में नौवें स्थान पर ठिटका भारत अब तेज गति से आगे बढ़ रहा है और 2023 में जापान को पीछे छोड़कर तीसरे पायदान पर आ गया. हकीकत है कि अक्षय ऊर्जा के मामले में भारत अपने टारगेट को पार कर चुका है. जाहिर है भारत पर्यावरण के लिए जो हो सकता है वो कर रहा है लेकिन वह अचानक जीवाश्म ईंधन को बंद करके अपने ग्रोथ के इंजन को बंद नहीं कर सकता और अदाणी समूह इस विकास की मुहिम में अपना योगदान दे रहा है. जिन देशों को यह पच नहीं रहा वे अदाणी ग्रुप को निशाना बनाकर भारत के विकास को रोकने का प्रयास करते हैं.

(Disclaimer: New Delhi Television is a subsidiary of AMG Media Networks Limited, an Adani Group Company.)

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