देश की राजनीति में जाति (Caste) का मुद्दा कितना बड़ा ये किसी है छिपा नहीं है. हर दल जातिगत वोट को साधने के लिए क्या कुछ नहीं करता है. देश में जब लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) बेहद नजदीक है, ऐसे में जाति की चर्चा होना तो लाजिमी है. कई लोग बीजेपी (BJP) को ब्राह्मण- बनिया की पार्टी के रूप में देखते हैं. वहीं तमिलनाडु (Tamil Nadu) में भी जाति का मुद्दा काफी मायने रखता है.
इसी मुद्दे पर एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने मशहूर विचारक एस गुरुमूर्ति से बात की. यह पूरा इंटरव्यू आज दोपहर 1 बजे और रात 9 बजे एनडीटीवी इंडिया पर प्रसारित किया जाएगा. एस गुरुमूर्ति ने जाति के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि अगर आप देखेंगे तो जाति सिर्फ एक सामाजिक संस्था नहीं है, कई लोगों ने इसे गलत समझा, यह सांस्कृतिक संस्था है. जिसका एक अपना भगवान है, इसमें जीवन जीने का एक तरीका है, शादी का जश्न मनाने का इसका अपना एक तरीका है. इसका भी अपना साहित्य है. लोग यह नहीं जानते.
इसी के साथ एस गुरुमूर्ति ने कहा कि बीजेपी ने राम जन्मभूमि आंदोलन और बाद में सेनगोल पर बताया कि जाति केवल राजनीतिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली सामाजिक संस्था नहीं है, यह सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ स्थापित की जाने वाली सामाजिक संस्था नहीं है. जाति तो असल में एक बड़ी पहचान है. जो अत्यधिक आध्यात्मिक और अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक है, ये एक प्रकार का जाति का गठबंधन है. पीएम मोदी तमिलाडु की राजनीति को नए तरीके से गढ़ रहे हैं. एक तरफ जहां बीजेपी ने जातियों के सांस्कृतिक पहलूओं को उबारा, वहीं डीएमके जातियों की सांस्कृतिक जड़ों के खिलाफ है. नतीजतन मोदी की राजनीति ने डीएमके को अप्रासंगिक बना दिया.
डीएमके जाति को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से अलग रखना चाहती थी. उनका कहना है कि जाति सिर्फ एक सामाजिक नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक संरचना है, जब देश के पीएम इसे समझ चुके हैं. जाति के इस पहलू और उनके दृष्टिकोण ने डीएमके की राजनीति को पुराना बना दिया है. इसलिए बीजेपी का उदय हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिग पुश के सवाल पर फेमस थिंकर एस गुरुमूर्ति ने कहा कि डीएमके अपनी तरह से राजनीति करने में लगी है, वह अब थकी हुई नजर आ रही है. एस गुरुमूर्ति ने कहा कि डीएमके ने "मोदी वापस जाओ" के नारे लगाकर पीएम मोदी को और उकसाने की कोशिश की, जबकि प्रधानमंत्री मोदी उकसावे को हल्के में नहीं लेते हैं.
उन्होंने कहा कि जयललिता और करुणानिधि के बाद AIADMK, DMK दोनों ही दलों में अब पहले जैसी बात नहीं रही. दोनों ही दल अपनी गूंज दिखा पाने में की पोजिशन में अब नहीं रहे. AIADMK का रोल डीएमके की खिलाफत करना था. जबकि डीएमके हमेशा ही द्रविड़ियन की राजनीति करता रहा है. डीएमके का काम तमिलनाडु को द्रविड़ियन विचारधारा को लेकर फिर से परिभाषित करना था, चाहे वह सीधे तौर पर या फिर घुमा फिराकर एंटी हिंदू हो या फिर एंटी ब्राह्मण, डीएमके ने इन सब को द्रविणियन विचारधारा की तरफ मोड़ दिया. करुणानिधि ये बात अच्छी तरह से जानते थे. हालांकि, उनके बाद इस दल को भी दूसरे दलों की तरह ही परिवार द्वारा चलाया जा रहा है.
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