गंगा में मिल रहे शव यूपी सरकार के आंकड़ों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. वाराणसी में प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद भी ये शव गंगा में नजर आ रहे हैं. पुलिस प्रशासन और जो लोग गंगा में शव डाल रहे हैं, उनके बीच आंख मिचौली का खेल चल रहा है.लेखपाल जीत लाल चौधरी ने ANI से कहा कि मुनादी भी कराई जा रही है कि कोई लाश नदी में ना फेंके, अगर वह किसी कारण अंतिम संस्कार का खर्च उठाने में अक्षम है तो उसकी पर्याप्त व्यवस्था कराई जाएगी.
जीत लाल लेखपाल हैं. इससे पहले वह मुनादी किसी सरकारी योजना को जनता तक पहुंचाने के लिए करते रहे होंगे लेकिन पहली बार वह शवों को गंगा में न डालने की मुनादी की बात कर रहे हैं. हालांकि इनकी ड्यूटी जमीनों की नापतोल और उसका लेखा-जोखा रखने की है, लेकिन इस वक्त यह गंगा के किनारे शवों का इस बात का लेखा-जोखा रख रहे हैं कि कहीं कोई आकर झटके से फेंक न जाए.
लेखपाल ने कहा, बिहार में डेड बॉडी मिलने की सूचना मिली थी तो तुरंत प्रशासन ने ड्यूटी लगाई और हम नाव लेकर निकले हैं. कहीं भी डेड बॉडी मिली तो उसका अंतिम संस्कार की व्यवस्था की जा रही है. जहां भी डेड बॉडी मिलेगी उसका संस्कार करेंगे. लेखपाल अगर मुनादी कर रहे है तो पुलिस एनाउंसमेंट कर चेतावनी के साथ इस बात की निगहबानी भी कर रही है कि कहीं कोई शव उनकी सीमा में ना आ जाए. उसके लिए पुलिस चौकन्नी भी है और लगातार गश्त भी कर रही है.
सब इंस्पेक्टर बी एन उपाध्याय ने ANI से कहा कि यह पेट्रोलिंग हम लोग कर रहे हैं कोई भी लाश जो बाहर से बहकर आ रही है, उसका दाह संस्कार कर रहे हैं. इसके लिए स्टैटिक फोर्स लगाया गया है.
लोगों को बताया जा रहा है लकड़ी की व्यवस्था की गई है. हम लोग रानी घाट से लेकर कि पूरा तक पेट्रोलिंग कर रहे हैं. लेकिन मजबूरियां देखिए कि पुलिस और प्रशासन के तमाम लोगों की मुस्तैदी के बाद भी गंगा की गोद से इधर उधर से लाशें निकल ही आ रही हैं. बड़ी तादाद में लोगो ने इन्हें गंगा के हवाले जो किया है और यही शव प्रशासन के लिए सिरदर्द बने हैं.
हालांकि लोगों का कहना है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारें जिस तरह इन शवों को लेकर परेशान हैं और जितना अमला और ताकत इसमें लगा रही हैं. उतना प्रशासनिक अमला और ताकत अगर कोरोना से पीड़ित लोगों की स्वास्थ्य व्यवस्था में लगाई जाती तो शायद इस बीमारी पर काबू पा लिया जाता और लोगों की इतनी जान भी नहीं जाती.
इस महामारी की दूसरी लहर में किसी ने अपने मां-बाप को तो, किसी ने भाई-बहन को और कुछ ऐसे भी मजबूर होंगे, जिन्होंने अपनी संतान को गंगा में बहा दिया होगा. लिहाजा गंगा में बहते सैकड़ों शव बता रहे है कि ये त्रासदी कितनी भयानक है. मगर उससे भी ज़्यादा भयानक सच ये है कि जिंदा रहने पर जिन्हें इलाज नहीं मिला, मरने के बाद उन्हें आंकड़ों में भी जगह नहीं मिलेगी.