इजरायल-हमास युद्ध के दौरान NDTV के पत्रकारों के अनुभव जान खड़े हो जाएंगे रोंगटे

उमाशंकर सिंह और कादम्बिनी शर्मा ने एक और रोंगटे खडे़ करने वाला किस्सा बताया. दोनों गाजा बॉर्डर की ओर जा रहे थे. रास्ते में कुछ बंदूकधारी मिले, उन्होंने रुकने का इशारा किया लेकिन ड्राइवर गाड़ी रोकने की बजाए स्पीड में ही चलाता रहा.

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नई दिल्ली:

जंग का माहौल कैसा होता है? इजरायल गए हमारे दो सहयोगी कादम्बिनी शर्मा और उमाशंकर सिंह ने अपने अनुभव साझा किए तो रोंगटे खड़े हो गए. पिछले पूरे हफ्ते लगातार वो इजरायल-गाजा की सीमा पर रहे. कभी सायरन बजने की आवाजें सुना रहे थे तो कभी रॉकेट टकराने की वीडियो दिखा रहे थे. मगर, इन सबको दिखाने के लिए उन्हें कई बार अपनी जान को जोखिम में डालना पड़ा. एक बार तो एक रॉकेट दोनों के होटल के एकदम पास आकर गिरा. वहीं एक बार ड्राइवर के कारण बंदूकधारी उन पर गोलियां दागने ही वाले थे. मगर वे बच गए और अब दिल्ली लौट आए हैं.

कादम्बिनी शर्मा ने होटल के पास रॉकेट गिरने के हादसे के बारे में बताया कि अगर दस मीटर भी रॉकेट हमारे करीब और गिरा होता और हम उस बंकर में नहीं होते तो हम यहां बैठे नहीं होते. दूसरी बात ये है कि जैसे ही सायरन बजा, हम अंदर की तरफ भागे. कुछ ही देर बाद एक आवाज आई, कुछ भारी गिरने की. उसके कुछ सेकेंड बाद हम लोग बाहर देखने के लिए निकले कि हुआ क्या? तब हमें एहसास हुआ कि हुआ क्या है? होटल के पास खड़ी वो गाड़ी बिलकुल लोहे का कबाड़ होकर पलटी हुई थी और उससे धुंआ निकल रहा था. उस समय लगा कि अगर हम बंकर में नहीं होते तो वहां पर जितने लोग मौजूद थे, उनके लिए यह रॉकेट जानलेवा साबित होता.  

उमाशंकर सिंह ने बताया कि होटल के पास हमले वाले दिन से पहले मैं शूट करने के लिए बाहर निकल जाता था. मगर उस दिन हम बाहर शूट करने की बजाय सीधा बंकर में गए. रॉकेट गिरा तो तो मुझे लगा कि आज शायद ऊपर वाले ने बचा लिया. उमाशंकर सिंह ने बताया कि इजरायल में टैक्सी मिलनी भी मुश्किल हो रही थी. उनकी एक जानकार ने टैक्सी दिलाई तो वह भी खुद ही चलानी पड़ी. कोई भी टैक्सी चलाने को तैयार नहीं था और किराया भी काफी महंगा हो गया था. क्यों कि अगर टैक्सी चलाने के लिए कोई साथ जाता तो उसकी जान को खतरा था और टैक्सी देने पर टैक्सी को नुकसान होने का खतरा था. वही गाड़ी लेकर होटल पहुंचे और पार्क किया, तभी रॉकेट अटैक हो गया.

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उमाशंकर सिंह और कादम्बिनी शर्मा ने एक और रोंगटे खडे़ करने वाला किस्सा बताया. दोनों गाजा बॉर्डर की ओर जा रहे थे. रास्ते में कुछ बंदूकधारी मिले, उन्होंने रुकने का इशारा किया लेकिन ड्राइवर गाड़ी रोकने की बजाए स्पीड में ही चलाता रहा. बिलकुल पांच कदम पहले वो जाकर रुका. हालांकि, इतनी देर सेना इंतजार नहीं करती. वो शायद हमारी किस्मत थी कि उन्होंने इंतजार किया. चार या पांच सेकेंड अगर और गाड़ी नहीं रुकती तो वे गोली चला देते. जिस जगह पर हम खड़े थे, वहां पर हमास के आतंकवादी आए थे और फायरिंग कर लोगों को मारा था, गाड़ियां जलाईं थीं. बाद में ड्राइवर ने बताया कि वो मोबाइल पर कुछ देख रहा था. कुछ खबर या कुछ क्लिप या कुछ फिल्म कुछ देख रहा था. उसने बताया कि जब बंदूकधारियों ने इशारा किया तो मेरा ध्यान उस तरफ नहीं था. इसलिए देख नहीं पाया.

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उमाशंकर सिंह और कादम्बिनी शर्मा ने निष्पक्ष पत्रकारिता कैसे करते हैं, इसके बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि गाजा में घुसना संभव नहीं था. इजरायल और फिलिस्तीन की दुश्मनी बहुत पुरानी है. ऐसे में दोनों देशों का पक्ष रखना आसान नहीं था. बीबीसी और दूसरी एजेंसिज के जरिए आ रही सूचनाओं का इस्तेमाल किया जा रहा था. हमें कभी डिपोर्टेशन या किसी तरह का दबाव इजरायल कि ओर से होने का अंदेशा नहीं हुआ. अमेरिका भी इस बात को कह रहा है कि आम लोगों का नुकसान कम से कम होना चाहिए. इजरायल की दलील है कि सघन आबादी के इलाकों में ही ज्यादातर हमास के लोग रहते हैं और इस दावे में काफी दम है. वहीं गाजा में बगैर बिजली, पानी, चिकित्सा के रह रहे लोगों की आवाज उठाना भी हमारा काम था और वह हमने किया.

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