सेना ने नए कॉम्बैट कोट का IPR अपने नाम किया, नकल करने पर होगी कानूनी कार्रवाई, लगेगा जुर्माना

नया कॉम्बैट कोट आर्मी डिजाइन ब्यूरो की पहल पर राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. सेना का कहना है कि यह साझेदारी सैनिकों की कार्यक्षमता में सुधार लाएगी.

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सेना ने अपने नए कॉम्बैट कोट की डिजाइन और छलावरण पैटर्न पर पूर्ण बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) हासिल कर लिए हैं. इस कदम के साथ सेना को इसके निर्माण, उपयोग और उत्पादन पर विशिष्ट अधिकार मिल गए हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार अब कोई भी संस्था या व्यक्ति बिना अनुमति इस कोट की नकल, बिक्री या व्यावसायिक उपयोग करेगा तो उसके खिलाफ पेटेंट व डिज़ाइन कानूनों के तहत कानूनी कार्यवाही और क्षतिपूर्ति का दावा दायर किया जाएगा.

कॉम्बैट कोट की विशेषता

सेना का यह उन्नत कॉम्बैट कोट एक तीन-परत वाला बहुउद्देश्यीय युद्धक परिधान है, जिसे सैनिकों की ऑपरेशनल क्षमता बढ़ाने और बदलते मौसम में उन्हें अधिक सुरक्षा देने के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें अत्याधुनिक डिजिटल प्रिंट पैटर्न है जो दुश्मन की निगाह से बेहतर छिपाव प्रदान करता है.

विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों जैसे जंगल, पहाड़, रेगिस्तान और शहरी वातावरण में पहनने के अनुकूल है. इसकी बीच वाली परत हल्की और सांस लेने योग्य है. यह गर्माहट देती है लेकिन सैनिक का लचीलापन बरकरार रहता है.इसकी तीसरी परत एक थर्मल प्रोटेक्शन लेयर है जो अत्यधिक ठंड में तापमान और नमी को नियंत्रित करती है और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी है.

किसने तैयार की डिजाइन?

नया कॉम्बैट कोट आर्मी डिजाइन ब्यूरो की पहल पर राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. सेना का कहना है कि यह साझेदारी न केवल सैनिकों की कार्यक्षमता में सुधार लाएगी बल्कि रक्षा परिधान क्षेत्र में नवाचार, डिजाइन मानकीकरण और स्वदेशीकरण को भी नई दिशा देगी.

IPR अधिकार क्यों ज़रूरी?

सेना के पुराने कॉम्बैट पैटर्न की बाजार में होने वाली अनाधिकृत नकलों से सुरक्षा जोखिम पैदा हो रहे थे और वर्दी के दुरुपयोग की आशंकाएं बढ़ती जा रही थीं. IPR सुरक्षित होने से कॉम्बैट ड्रेस की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित होगी. साथ ही असली और नकली में फर्क करना आसान होगा.

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