कांग्रेस में थरूर और राहुल गांधी दो विचारधाराएं, टिप्पणी पर शशि थरूर बोले-आप सही कह रहे

कांग्रेस में वैचारिक खींचतान पर शशि थरूर ने ट्विटर यूजर के विश्लेषण पर सहमति जताई. यूजर ने लिखा है कि कांग्रेस पार्टी न शहरी सुधारवादी पहचान बचा पाई, न ग्रामीण राजनीति में विश्वसनीय विकल्प बन सकी.

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  • कांग्रेस में शशि थरूर और राहुल गांधी की वैचारिक हालत का एक ट्विटर यूजर ने विश्लेषण किया है
  • शशि थरूर 1990 के दशक की आर्थिक सुधारों और संस्थागत दृष्टिकोण वाली कांग्रेस प्रवृत्ति से जुड़े हैं
  • राहुल गांधी ने 2010 के बाद कांग्रेस को ग्रामीण शिकायत-आधारित जनपार्टी के रूप में पुनः आकार देने का प्रयास किया
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नई दिल्ली:

कांग्रेस के भीतर वैचारिक खींचतान को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है. एक ट्विटर यूजर के विश्लेषण पर शशि थरूर की टिप्पणी ने एक नई बहस छेड़ दी है. यूजर ने लिखा कि कांग्रेस पार्टी में शशि थरूर और राहुल गांधी दो अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक शहरी, संस्थागत और सुधारवादी रुख से प्रेरित हैं तो दूसरे ग्रामीण सेंट्ररिक जनवादी पार्टी की रणनीति पर हैं. यूजर के विश्लेषण पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लिखा कि आपका विश्लेषण विचारशील है. पार्टी में हमेशा एक से अधिक प्रवृत्तियां रही हैं; आपका फ्रेमिंग मौजूदा हकीकत को दर्शाता है.

ट्विटर यूजर के विश्लेषण के मुताबिक, कांग्रेस में आज दो प्रमुख विचारधाराएं हैं एक का प्रतिनिधित्व शशि थरूर करते हैं और दूसरी का राहुल गांधी. समस्या इन दोनों विचारों के सह-अस्तित्व में नहीं है, बल्कि इस बात में है कि कांग्रेस न तो किसी एक को चुन पा रही है, न ही दोनों को एकीकृत कर पा रही है.

थरूर को लेकर क्या कहा गया है?

थरूर  उस कांग्रेस प्रवृत्ति से जुड़े हैं जो 90 के दशक में उभरी थी. शहरी चेहरा, संस्थागत दृष्टिकोण और आर्थिक सुधारों के अनुकूल रुख. यह दौर आर्थिक संक्रमण और एलीट-नेतृत्व वाली गवर्नेंस का था. उस समय पी.वी. नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह, एस.एम. कृष्णा और मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे नेता नीतियों, संस्थाओं और प्रशासनिक दक्षता पर भरोसा करते थे, न कि जन-आंदोलन या सांस्कृतिक जुड़ाव पर.लेकिन यही शहरी तकनीकी नेतृत्व बार-बार कांग्रेस में हाशिए पर जाता रहा. विडंबना यह है कि इन नेताओं को आज की कांग्रेस की तुलना में दक्षिणपंथी खेमे से ज्यादा सम्मान मिला. 

राहुल गांधी को लेकर क्या कहा गया है? 

दूसरी ओर, राहुल गांधी उस रणनीतिक बदलाव का प्रतीक हैं जो कांग्रेस ने 2010 के बाद अपनाया बीजेपी के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए खुद को ग्रामीण, शिकायत-आधारित जनपार्टी के रूप में पेश करना. यह बदलाव प्रतिक्रियात्मक था और चुनावी नतीजों में इसकी विफलता साफ दिखती है. सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि इस ग्रामीण सोच की राजनीति का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति भारतीय राजनीति का सबसे एलीट और संरक्षित चेहरा है.

प्रतीकात्मक ग्रामीण राजनीति, बिना संगठनात्मक गहराई के, विश्वसनीयता खो देती है. भारत में ग्रामीण राजनीति केवल भाषणों से नहीं, बल्कि संगठन, संस्कृति और दीर्घकालिक जुड़ाव से चलती है. जहां बीजेपी आरएसएस के जरिए मजबूत है, वहीं कांग्रेस के पास यह ढांचा नहीं है. 

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थरूर इसके विपरीत अपने बैकग्राउंड, राजनीतिक भाषा और ऑडियंस के बीच तालमेल दिखाते हैं. सोशल मीडिया, खासकर इंस्टाग्राम पर उनकी बढ़ती सक्रियता इस फिट को दर्शाती है. उन्होंने कभी दक्षिणपंथ की ओर झुकाव नहीं दिखाया, जैसा कि पार्टी के भीतर कुछ लोग मानते हैं.  वे हमेशा से गर्वित हिंदू रहे हैं और इस पर किताब भी लिखी है. “Why I am a Hindu”. 

विश्लेषण का निष्कर्ष क्या है?

विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि कांग्रेस आज न तो एक विश्वसनीय शहरी सुधारवादी पार्टी है, न ही गंभीर ग्रामीण जनपार्टी. उसने एक पहचान छोड़ दी, लेकिन दूसरी को सफलतापूर्वक नहीं अपनाया. नतीजतन, उसकी पहचान अब मुख्य रूप से ‘विपक्ष' तक सीमित हो गई है. शासन की स्पष्ट विचारधारा के बिना विपक्षी राजनीति पतन की ओर ले जाती है. और यही कांग्रेस की मौजूदा चुनौती है. 
 

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