तेलंगाना के श्रीसैलम में निर्माणाधीन टनल की छत का एक हिस्सा ढहने से 8 मजदूर फंस गए. पिछले कुछ सालों में इस तरह के हादसों की संख्या में बढोतरी देखने को मिली है. भारत में पिछले कुछ साल में बुनियादी ढांचे के विकास ने तेजी पकड़ी है. सड़कें, रेलवे और टनल जैसी परियोजनाएं में तेजी आयी है. हाल के वर्षों में उत्तराखंड के सिल्क्यारा-बरकोट टनल हादसे से लेकर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में हुए टनल ढहने की घटना के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि भारत में ऐसी घटनाओं की संख्या में बढ़ोतरी क्यों हो रही है? सवाल यह खड़े हो रहे हैं कि क्या ये सिर्फ मानवीय लापरवाही का नतीजा हैं या भौगोलिक चुनौतियां भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही हैं?
कब कहां हुए हादसे?
- उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिल्क्यारा-बरकोट टनल हादसे ने देश का ध्यान खींचा. नवंबर 2023 में निर्माणाधीन इस टनल का एक हिस्सा अचानक ढह गया था. जिसके चलते 41 मजदूर 17 दिनों तक अंदर फंसे रहे थे.
- मई 2022 में जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में एक टनल के ढहने से 10 मजदूरों की जान चली गई.
- हिमाचल प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां भूस्खलन और टनल की दीवारों के कमजोर होने से हादसे हुए.
क्यों हो रहे हैं हादसे?
पिछले लगभग एक दशक में भारत में इस क्षेत्र में तेजी से काम हुए हैं. लेकिन टनल निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें विस्तृत भू-तकनीकी सर्वेक्षण (जियो-टेक्निकल सर्वे) और सटीक डिजाइन की जरूरत होती है. लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि प्रोजेक्ट की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में इन पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है.
सिल्क्यारा टनल हादसे में यह सामने आया था कि डीपीआर में पहाड़ को ठोस चट्टान (हार्ड रॉक) बताया गया था, लेकिन खुदाई के दौरान यह भुरभुरी मिट्टी और कमजोर चट्टानों का क्षेत्र निकला था. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शुरूआत में ही सही भू-तकनीकी सर्वे किया गया होता, तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था.
- निर्माण में जल्दबाजी और लापरवाही: भारत में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का दबाव अक्सर गुणवत्ता पर भारी पड़ता है. ठेकेदार और निर्माण कंपनियां समय सीमा पूरी करने के लिए जरूरी सुरक्षा मानकों को अनदेखा कर देती हैं. उदाहरण के लिए, टनल की दीवारों को मजबूत करने के लिए स्टील सपोर्ट और कंक्रीट लाइनिंग का काम अधूरा छोड़ दिया जाता है. जम्मू-कश्मीर के हादसे में जांच से पता चला कि टनल के उस हिस्से में सपोर्ट सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं था, जिसके चलते ढहने की घटना हुई थी.
- सुरक्षा मानक को नजरअंदाज करना: टनल परियोजनाओं में सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र निगरानी व्यवस्था जरूरी है. लेकिन भारत में कई बार यह देखा गया है कि सरकारी एजेंसियां और प्राइवेट फर्में मिलकर इन मानकों को दरकिनार कर देती हैं. कई बार इस तरह के हादसों के पीछे इसे भी जिम्मेदार माना जाता है.
सबसे अहम फैक्टर: भौगोलिक कारण
भारत का भौगोलिक ढांचा टनल निर्माण के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता रहा है. खासकर हिमालयी क्षेत्र, जहां ज्यादातर टनल परियोजनाएं चल रही हैं, अपनी संवेदनशील और अस्थिर भू-संरचना के लिए जाना जाता है. इन भौगोलिक कारणों को समझना जरूरी है, क्योंकि ये हादसों के पीछे एक बड़ा कारक हैं. हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है, जो अभी भी भूगर्भीय हलचलों से गुजर रही है। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में चट्टानें और मिट्टी लगातार बदलाव के दौर से गुजर रही हैं। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में टनल निर्माण के दौरान अक्सर भुरभुरी चट्टानें, फॉल्ट लाइन्स और पानी के स्रोत मिलते हैं.
हालांकि तेलंगाना की घटना के लिए इस फैक्टर को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है. तेलंगाना का क्षेत्र हिमालय के क्षेत्र की तरह कमजोर चट्टान वाला इलाका नहीं माना जाता है.
दुनिया के देश कैसे सेफ तरीके से सुरंगें खोदते हैं?
विकसित देश जैसे स्विट्जरलैंड, जापान और नॉर्वे सुरंग निर्माण से पहले इलाके का गहन भू-वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। इसमें चट्टानों की मजबूती, भूजल का स्तर, फॉल्ट लाइन्स और भूकंपीय जोखिमों का आकलन शामिल होता है. उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैंड का गोट्थर्ड बेस टनल (दुनिया की सबसे लंबी रेल सुरंग, 57 किमी) बनाने से पहले कई सालों तक भू-तकनीकी डेटा इकट्ठा किया गया था,भारत में कई बार लापरवाही के कारण भी इस तरह की घटनाएं होती हैं.
24 घंटे से फंसे हैं मजदूर
तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में श्रीशैलम सुरंग नहर परियोजना के निर्माणाधीन हिस्से के अंदर फंसे आठ लोगों को निकालने के लिए बचाव अभियान बीते 24 से ज्यादा घंटों से लगातार जारी है. सुरंग के अंदर राहत और बचाव कार्य चला रहे लोगों की मदद के लिए ड्रोन की मदद भी ली जा रही है. बचाव दल ने श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) सुरंग के ढहे हुए हिस्से का निरीक्षण किया और अंदर जाने की कोशिश भी की. लेकिन मलबे के कारण अदंर जाने में फिलहाल सफलता नहीं मिल पाई है और आगे की रणनीति तैयार की जा रही है.
तेलंगाना के सिंचाई मंत्री एन. उत्तम कुमार रेड्डी ने बताया कि राज्य सरकार विशेषज्ञों की मदद ले रही है, जिनमें पिछले साल उत्तराखंड में इसी तरह की घटना में फंसे श्रमिकों को बचाने वाले लोग भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, सरकार सेना और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की भी मदद ले रही है.
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