एक पूर्व राजनयिक ने मंगलवार को कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा (Taliban capture Afghanistan) भारत के लिए चिंता का विषय नहीं है. सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भारतीय राजदूत रह चुके तल्मीज अहमद ने कहा कि वर्तमान में अफगानिस्तान (Afghanistan) में भारत (India) की कोई भूमिका नहीं है और इस सुझाव को खारिज कर दिया कि भारत को तालिबान के साथ संपर्क (India contact with Taliban) बनाना चाहिए. उन्होंने कुछ लोगों के उन विचारों को ‘‘बिल्कुल व्यर्थ'' करार दिया कि अगर तालिबान अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लेता है तो भारत ‘‘खतरे में'' पड़ जाएगा.
अहमद ने एक टेलीफोन पर दिये साक्षात्कार में ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘तालिबान एक राष्ट्रीय आंदोलन है और वे अफगानिस्तान को नियंत्रित करना चाहते हैं लेकिन अफगानिस्तान के बाहर उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.'' उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान है जो 30 से अधिक वर्षों से भारत में चरमपंथियों की आवाजाही पर बहुत कड़ा नियंत्रण रखता है और ऐसा करना जारी रखे हुए है. अहमद ने कहा, ‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता कि स्थिति केवल इसलिए बदल रही है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण है.'' उन्होंने कहा कि अल कायदा और इस्लामिक स्टेट (आईएस) की भारत में ‘‘कोई भूमिका नहीं'' है.
अहमद ने कहा, ‘‘इसलिए, मुझे विश्वास नहीं है कि भारत में चरमपंथी गतिविधियां बढ़ने के संदर्भ में कोई प्रभाव पड़ेगा.'' उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के चरमपंथियों की शरणस्थली बनने की स्थिति में यह भारत के लिए नहीं बल्कि पाकिस्तान, चीन, रूस और मध्य एशियाई गणराज्यों के लिए खतरा पैदा करेगा. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इन सभी देशों की अफगानिस्तान (मध्य एशियाई गणराज्यों के माध्यम से रूस) के साथ सीमा है और इनकी एक ‘‘अशांत और असंतुष्ट'' आबादी है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इन देशों को चिंता करने की जरूरत है. यही कारण है कि रूस और चीन तालिबान के साथ जुड़ने की जल्दबाजी कर रहे हैं क्योंकि वे इस संबंध में बेहद कमजोर हैं.''
अहमद ने कहा कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा और लोगों की मुक्त आवाजाही के कारण चिंतित होना पड़ता है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में ही चरमपंथी तत्व हैं, जिनके अफगानिस्तान में अपने समकक्षों के साथ संबंध हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में अफगानिस्तान में भारत के लिए कोई स्थान या भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘हम काबुल शासन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध थे. हमने राष्ट्रीय विकास और कल्याण से संबंधित परियोजनाओं के साथ उनके हाथ मजबूत करने का प्रयास किया, लेकिन हमारे पास शासन को मजबूत करने के लिए कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं था.'' अहमद ने कहा कि अफगानिस्तान बहुत लंबे समय तक उथल-पुथल और अनिश्चितता का सामना करने वाला है.