पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पुण्यतिथि पर मंगलवार को दिल्ली के लोधी रोड स्थित वीर सावरकर पार्क में उनकी बेटी और भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने पौधारोपण किया. अपनी मां को याद कर भावुक बेटी बोली कि वक्त भी उनके दुख को नहीं भर पाएगा. बांसुरी ने कहा, "आज 5 वर्ष हो गए जब कृष्ण मेरी मां को मुझसे चुरा कर के हम से ले गए थे. कुछ गम ऐसे होते हैं जिनकी भरपाई समय भी पूरी नहीं कर सकता है यह एक ऐसी क्षति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभार पर भारत में बहुत ही खूबसूरत महिम शुरू हुई है, एक पेड़ मां के नाम."
बांसुरी स्वराज ने मां को पुण्यतिथि पर किया याद
उन्होंने आगे कहा, "आज हमारे दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा जो दिल्ली भाजपा परिवार के मुखिया हैं उनके सानिध्य में वीर सावरकर पार्क में आकर हम सब ने मां की स्मृति को जीवंत करते हुए इक्कीस पौधे लगाए हैं. यहां उपस्थित प्रत्येक भाजपा कार्यकर्ता की आंखों में, उनके आशीर्वाद में, मुझे सुषमा स्वराज का वात्सल्य जीवंत मिलता है इसलिए मैं उन सबके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं."
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के साथ लगाए पौधे
इस दौरान दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने भी पौधा लगाकर सुषमा स्वराज की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किया. इस कार्यक्रम में बीजेपी के कार्यकर्ता काफी संख्या में मौजूद रहे. कार्यक्रम के दौरान वीरेद्र सचदेवा ने पूर्व विदेश मंत्री को अपनी मां स्वरूप बताया. सुषमा स्वराज उस विदेश मंत्री का नाम जिन्होंने कमान थामते ही मंत्रालय की सूरत बदल कर रख दी थी. उनके मंत्री रहते ये विभाग आम भारतीय का विभाग कहलाने लगा. वह जितनी सहज थीं उतनी ही काम को लेकर समर्पित और सख्त भी थीं. चाहे वो पाकिस्तान की बोलने सुनने में लाचार गीता हो या फिर दुर्दांत आतंकियों के बीच फंसे भारतीयों की वतन वापसी करानी हो, उन्होंने सब तक पहुंच बनाई.
राजनीतिक जीवन में लोगों पर सुषमा स्वराज ने छोड़ी है अमिट छाप
भारत के सियासी फलक पर अमिट छाप छोड़ने वाली सुषमा स्वराज का हर कोई मुरीद रहा. उनका 41 सालों का राजनीतिक जीवन तमाम उपलब्धियों से भरा था. सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता होने के साथ प्रखर वक्ता थीं. 6 अगस्त को ही सुषमा स्वराज का देहांत हुआ था. दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली थी. सुषमा स्वराज को समझना हो तो ट्विटर स्क्रॉल कर देख सकते हैं. यूक्रेन युद्ध के दौरान जब भारतीय छात्र फंसे थे तो उनका एक ट्वीट बहुत वायरल हुआ. जिसमें से एक में लिखा मिलेगा कि कोई भारतीय अगर मंगल ग्रह पर भी फंसा होगा तो विदेश मंत्रालय उसकी सकुशल वापसी कराएगा. ऑपरेशन राहत, ऑपरेशन संकटमोचक ऐसे बहुत सफल अभियान हैं जो सुषमा स्वराज की काबिलियत से हमें रूबरू कराते हैं. राजनीति के आकाश की तारा बन गईं इस जुझारू नेत्री से जुड़े कई किस्से हैं.
हरियाणा की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री रही हैं सुषमा स्वराज
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों की गहरी समझ ने उन्हें भारतीय और वैश्विक राजनीति का अहम चेहरा बना दिया. देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता से लेकर केंद्रीय मंत्री तक उनका सफर तमाम उतार-चढ़ाव से भरा रहा. उनके नाम हरियाणा की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री रहने का रिकॉर्ड है. वह देवीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार में मात्र 25 वर्ष की आयु में देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनी. वह दो कार्यकाल के लिए हरियाणा विधानसभा की विधायक रही थीं. इसके बाद 1979 हरियाणा जनता पार्टी की राज्य इकाई की चार सालों तक अध्यक्ष भी थीं.
1980 में बीजेपी में शामिल हुई थीं सुषमा स्वराज
1980 में सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं और उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया. उन्होंने दो साल तक पार्टी के अखिल भारतीय सचिव का पद संभाला और पार्टी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई. 1990 में स्वराज को राज्यसभा का सदस्य चुना गया. इसके बाद 1996 अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की भाजपा सरकार के दौरान उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया. सात बार सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज का यह लोकसभा सदस्य के रूप में दूसरा कार्यकाल था.
1998 में बनी थीं दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री
1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई, तो वह एक बार फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं. इसी बीच 1998 में कम समय के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री चुनी गई थीं. लगभग तीन महीने के उनके छोटे कार्यकाल के दौरान प्याज की बढ़ती कीमत को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी. 1999 के लोकसभा चुनाव में स्वराज ने कर्नाटक के बेल्लारी से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. हालांकि, वह हार गईं, लेकिन उनका कद बढ़ गया. वाजपेयी सरकार के तीसरे कार्यकाल में 2003 से मई 2004 तक उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के साथ-साथ संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में भी कार्य किया.
सोनिया गांधी के पीएम बनाने के खिलाफ सुषमा स्वराज ने उठाई थी आवाज
2004 में यूपीए के सत्ता में आने पर सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आ रहा था, जिसका सुषमा स्वराज ने जोरदार विरोध किया. उन्होंने कसम खाई कि अगर सोनिया गांधी शपथ लेती हैं तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी और अपना पूरा जीवन एक भिक्षुक की तरह बिताएंगी. उनका मानना था कि अगर आजादी के बाद कोई विदेशी देश का नेतृत्व करेगा तो यह समृद्ध लोकतांत्रिक परंपरा का अपमान होगा. हालांकि, सुषमा स्वराज को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा, क्योंकि सोनिया गांधी की जगह डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया.
विदेश मंत्री के तौर पर भी हासिल की कई उपलब्धियां
बतौर विदेश मंत्री 2015 में यमन में सऊदी गठबंधन सेना और हौथी विद्रोहियों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था. उस दौरान ऑपरेशन राहत चलाया और 5,000 भारतीयों की वतन वापसी सुनिश्चित की. ऐसे ही सबकी जुबान पर अब भी ऑपरेशन संकटमोचक का नाम रहता है. 2016 में दक्षिण सूडान के युद्ध में फंसे भारतीयों के लिए इसे चलाया गया और इसके तहत करीब 500 लोगों को भारत लाया गया था. ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि स्वराज विदेश में फंसे अपने देश के लोगों को लेकर कितनी फिक्रमंद रहती थीं.
भारत की कूटनीति का किया था बेहतर संचालन
विदेश मंत्री के पद पर रहने के दौरान उन्होंने भारत की कूटनीति का बेहतर संचालन करते हुए मानवीय व्यवहार की मिसाल कायम की. पांच सालों के अपने कार्यकाल के दौरान वो ट्विटर के जरिए हमेशा आम भारतीयों के साथ खड़ी दिखीं. भारत को कूटनीतिक स्तर पर मजबूती मिली. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझते हुए 67 साल की उम्र में सुषमा स्वराज का निधन हो गया.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)