टाटा बनाम साइरस मिस्त्री विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने मिस्त्री फर्मों और शापूरजी पल्लोनजी मिस्त्री के खिलाफ टाटा संस में अपने शेयरधारिता की सुरक्षा के खिलाफ पूंजी जुटाने, गिरवी रखने, शेयरों के संबंध में कोई हस्तांतरण या कोई और कार्रवाई ना करने का आदेश दिया. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट आज यानी 26 मार्च को टाटा बनाम साइरस मिस्त्री विवाद पर फैसला सुनाएगा. इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ फैसला सुनाएगी. बता दें कि पिछले साल 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. दो दिसंबर को मिस्त्री द्वारा टाटा संस के शेयरों के जरिए पूंजी जुटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने मिस्त्री फर्मों और शापूरजी पल्लोनजी मिस्त्री के खिलाफ टाटा संस में अपने शेयरधारिता की सुरक्षा के खिलाफ पूंजी जुटाने, गिरवी रखने, शेयरों के संबंध में कोई हस्तांतरण या कोई और कार्रवाई ना करने का आदेश दिया. 

साइरस मिस्त्री के एसपी समूह ने टाटा समूह से औपचारिक अलगाव की मांग की

मालूम हो कि 5 सितंबर को टाटा संस ने शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप (एसपी ग्रुप) को टाटा संस में रखे गए शेयरों को गिरवी रखने से रोकने की मांग की गई थी, जब मिस्त्री समूह ने ब्रुकफील्ड के साथ 3,750 करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. मिस्त्री परिवार टाटा संस में 18.5 प्रतिशत का मालिक है, जबकि टाटा ट्रस्ट और टाटा समूह की कंपनियों के पास बाकी हिस्सेदारी है.

अक्टूबर 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष से हटाए जाने के बाद दिसंबर 2016 से टाटा समूह और एसपी समूह एक कानूनी लड़ाई में शामिल हैं. नेशनल कंपनी अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के फैसले के खिलाफ साइरस मिस्त्री अपील की, जिसने उन्हें टाटा समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल कर दिया था, वह स्थगन के लिए शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है. इस क्रॉस-एक्शन अपील के माध्यम से, मिस्त्री ने जजमेंट के खिलाफ व्यापक राहत की मांग की थी.

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पीठ ने रतन टाटा और टाटा समूह की अपील को दिसंबर 2019 में NCLAT द्वारा पारित उसी फैसले को चुनौती देने वाली अपील के साथ टैग किया था. वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे टाटा संस (और रतन टाटा) की ओर से पेश हुए और कहा कि दोनों पक्षों की अपील पर तेजी से सुनवाई की जा सकती है. 10 जनवरी, 2020 को, टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड को एक अस्थायी राहत में, सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2019 के NCLAT जजमेंट पर रोक लगा दी थी (जिसने साइरस मिस्त्री को कंपनी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल किया था).

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इसके बाद 24 जनवरी को, शीर्ष अदालत ने NCLAT के फैसले को स्वीकार करते हुए टाटा संस द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया था, जिसमें उसने अपने दिसंबर 2019 के फैसले को संशोधित करने के लिए एक आवेदन को खारिज कर दिया था. 18 दिसंबर 2019 को, नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने साइरस मिस्त्री को टाटा समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल किया. 

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मिस्त्री की अपील को मानते हुए, अपीलीय न्यायाधिकरण ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल मुंबई पीठ के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें उनकी जगह पर एन चंद्रशेखरन की अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति को बरकरार रखा था. इसके अलावा, दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि साइरस मिस्त्री के खिलाफ न्यायाधिकरण की टिप्पणी "अवांछनीय और असंगत रूप से गलत तथ्यों पर आधारित थी जो पूरी तरह से निराधार है."

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NCLAT ने टाटा-मिस्त्री मामले में ROC की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा

अपीलीय न्यायाधिकरण ने उल्लेख किया था कि नामांकन और पारिश्रमिक समिति में साइरस मिस्त्री, दो स्वतंत्र निदेशक, जिसमें फरीदा खंबाटा (10 वीं प्रतिवादी ) और रणेंद्र सेन (8 वें प्रतिवादी ) और एक निदेशक, विजय सिंह (9 वें प्रतिवादी), एक नामित निदेशक शामिल थे.

टाटा ट्रस्ट ने मिस्त्री के प्रदर्शन की सराहना की थी और उनके निष्कासन का उनके प्रदर्शन में कमी से कोई लेना-देना नहीं था. इसके बाद, न्यायाधिकरण ने एसोसिएशन ऑफ आर्टिकल के अनुच्छेद 121 को संदर्भित किया था और यह उल्लेख किया था कि यह कहना या आरोप लगाना उत्तरदाताओं के लिए खुला नहीं था कि टाटा समूह के तहत कंपनियों में नुकसान साइरस मिस्त्री के कुप्रबंधन के कारण था.

पत्राचार से सामने आने वाली घटनाओं की लगातार श्रृंखला इस फैसले में कहीं और संदर्भित होती है जो यह दर्शाती है कि कंपनी के मामलों के संचालन के संदर्भ में विश्वास की हानि, साइरस पल्लोनजी मिस्त्री की योग्यता के लिए जिम्मेदार नहीं थी, बल्कि शक्तियों के अनुचित दुरुपयोग पर अन्य उत्तरदाताओं के हिस्से पर थी.  

ट्रिब्यूनल ने कानून के तहत प्रक्रिया का पालन किए बिना, टाटा संस लिमिटेड को 'सार्वजनिक कंपनी' से 'निजी कंपनी' में बदलने की कार्रवाई करने के लिए कंपनी, उसके निदेशक मंडल की कार्रवाई पर भी सवाल उठाया. साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद दोनों पक्षों के बीच यह विवाद शुरू हुआ था.

 दरअसल, शापूरजी पालोनजी समूह (Shapoorji Pallonji Group) ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल बयान में कहा है कि टाटा संस प्रभावी रूप से दो समूहों की कंपनी है. टाटा ट्रस्ट्स, टाटा परिवार के सदस्यों और टाटा कंपनियों के पास इक्विटी शेयर कैपिटल की 81.6 फीसदी हिस्सेदारी है. वहीं मिस्त्री परिवार की 18.37 फीसदी है. टाटा संस एक कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी और टाटा ग्रुप के लिए होल्डिंग कंपनी है. टाटा संस की वैल्यू सूचीबद्ध शेयर, गैर सूचीबद्ध शेयर, ब्रांड, कैश बैलेंस और अचल संपत्तियों में इसकी हिस्सेदारी से निकलती है. टाटा संस में शापूरजी पालोनजी समूह की 18.37 फीसदी हिस्सेदारी की वैल्यू 1,75,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है.

परिसंपत्ति के बंटवारे और आकलन पर मतभेद
टाटा ग्रुप से अलग होने की अपनी स्कीम में शपूरजी पालोनजी समूह ने कहा है कि वैल्युएशन पर विवाद को सूचीबद्ध परिसंपत्ति (जिनका शेयर मूल्य पता हो) के प्रो राटा स्प्लिट और ब्रांड (ब्रांड वैल्युएशन पहले से टाटा द्वारा हो चुकी हो और पब्लिश की जा चुकी हो) के प्रो राटा शेयर के जरिए दूर कर सकते हैं. सकल ऋण के आकलन के तहत गैर सूचीबद्ध परिसंपत्ति के मामले में एक तटस्थ तीसरे पक्ष द्वारा मूल्यांकन किया जा सकता है. गैर नकदी समझौते के तौर पर शपूरजी पालोनजी समूह ने ऐसी सूचीबद्ध टाटा कंपनियों में प्रो राटा शेयरों की मांग की है, जिनमें टाटा संस की फिलहाल हिस्सेदारी है. उदाहरण के तौर पर TCS में टाटा ग्रुप की हिस्सेदारी 72 फीसदी है.

टाटा संस में बड़ा हिस्सेदार शापूरजी पालोनजी समूह
शापूरजी पालोनजी समूह की टाटा संस में 18.37 फीसदी हिस्सेदारी TCS में 13.22 फीसदी शेयर हिस्सेदारी के तौर पर बनती है. गौरतलब है कि पालोनजी मिस्त्री के बेटे साइरस मिस्त्री को 2012 में रतन टाटा की जगह टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया था, लेकिन चार साल बाद 2016 में उन्हें अचानक पद से हटा दिया गया था. तभी से उनकी टाटा समूह के साथ ठनी हुई है. टाटा समूह ने एसपी समूह की हिस्सेदारी खुद खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसके लिए मिस्त्री परिवार तैयार नहीं है. इसके बाद टाटा समूह ने 5 सितंबर को एसपी समूह को अपने हिस्से के शेयर बेचने या गिरवी रखने से रोकने के लिए शीर्ष अदालत की शरण ली थी.

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