- पीएम मोदी ने राममंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा स्थापना कर भारतीय लोकतंत्र की प्राचीन जड़ों पर जोर दिया
- उथिरामेरूर गांव के 10वीं सदी के शिलालेख में भारत में जमीनी स्तर की मजबूत लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का उल्लेख
- चोल वंश के परान्तक चोल प्रथम के शासनकाल में ग्राम सभा और ऊर जैसे दो प्रकार की ग्राम सभाओं का संचालन होता था
आज राममंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा की स्थापना कर दी गई. अयोध्या पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने चक्का घुमाकर धर्म ध्वजा को शिखर पर फहराया. इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भारतीय लोकतंत्र की प्राचीन जड़ों पर जोर दिया और बताया कि कैसे भारत में लोकतंत्र की जड़ें हजारों साल पहले भी कितनी मजबूत थीं. उन्होंने इस संदर्भ में तमिलनाडु के एक गांव के शिलालेख का जिक्र किया. आइए जानते हैं कि पीएम मोदी ने जिस उथिरामेरूर गांव शिलालेख की बात की, वह क्या था और उस समय वहां शासन व्यवस्था कैसे चलती थी.
उथिरामेरूर में शिलालेख की कहानी?
भारत में लोकतंत्र की जड़ें इतनी गहरी हैं कि 10वीं शताब्दी में ही तमिलनाडु के एक गांव में दुनिया की सबसे मजबूत जमीनी स्तर की शासन प्रणाली मौजूद थी. चेन्नई से लगभग 85 किलोमीटर दूर उथिरामेरूर (Uthiramerur) गांव में चोल काल के इस शिलालेख में भारत के हजार साल पुराने लोकतंत्र का इतिहास छिपा हुआ है. इसमें 10वीं शताब्दी के दौरान प्रचलित जमीनी स्तर की शासन व्यवस्था का जिक्र किया. जबकि मैग्ना कार्टा जिसे आधुनिक समय का पहला लोकतंत्र माना जाता है, वह भी साल 1215 का है.
उथिरामेरूर शिलालेख क्या है?
उथिरामेरूर शिलालेख तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के उथिरामेरूर शहर में मिले प्राचीन तमिल शिलालेखों का एक समूह है. ये शिलालेख 10वीं सदी के हैं और इनका निर्माण चोल वंश के शासनकाल के दौरान हुआ था, जिन्होंने दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन किया था. यह मुख्य रूप से परान्तक चोल प्रथम (907-956 ईस्वी) के शासनकाल में बनाए गए थे. मंदिर में उकेरे गए ये शिलालेख ग्रामीण स्व-शासन की ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करते हैं.
10वीं शताब्दी में कैसी थी शासन प्रणाली?
उथिरामेरूर के शिलालेखों में गांव के शासन और समितियों के चुनाव के लिए विस्तार से नियम दिए गए हैं, जो आज के लोकतंत्र की कई विशेषताओं को दर्शाते हैं.
1. ग्राम सभाएं (Sabha and Ur)
उथिरामेरूर में दो प्रकार की ग्राम सभाएं थीं, जो अलग-अलग वर्गों का प्रतिनिधित्व करती थीं.
सभा (Sabha): यह विशेष रूप से ब्राह्मणों की सभा थी. सभा मुख्य रूप से भूमि की बिक्री, तालाबों की खुदाई के लिए बंदोबस्ती निधि का प्रबंधन करती थी, और बंजर भूमि के प्रबंधन के लिए 'ऊर' को कर्तव्य सौंपती थी. सभा स्थानीय मंदिर के हॉल में ढोल बजाकर बुलाई जाती थी.
ऊर (Ur): यह सभी वर्गों के लोगों से मिलकर बनी थी.
2. कार्यकारी समितियां (Variyams) और चुनाव
चोल राजा परान्तक प्रथम के शासनकाल के दौरान, कार्यकारी शक्तियां वारियम्स (Variyams) नामक समितियों को दी जाती थीं.
प्रत्येक वारियम में 6 से 12 सदस्य होते थे, जो उनके कार्य के महत्व पर निर्भर करता था.
गांव को 30 कुडुम्बु (Kudumbus) या वार्डों में विभाजित किया गया था. इन वार्डों से ही विभिन्न समितियों के सदस्यों का सलाना चुनाव होता था.
चुनाव की कुडवोलई प्रणाली (Kudavoloi System)
सदस्यों का चयन एक अनोखी और लोकतांत्रिक प्रणाली से होता था, जिसे कुडवोलई (Kudavoloi) या 'ताड़ के पत्तों के टिकटों का बर्तन' प्रणाली कहा जाता था.
इस प्रणाली में योग्य उम्मीदवारों के नाम ताड़ के पत्तों पर लिखकर एक बर्तन में डाले जाते थे, और फिर निष्पक्ष रूप से सदस्यों का चयन किया जाता था.
3. योग्यता और कार्यकाल
शिलालेखों में उम्मीदवार बनने के लिए कड़े नियम और योग्यताएं निर्धारित थीं.
कर देने योग्य भूमि का स्वामित्व होना चाहिए.
स्वयं के स्वामित्व वाली भूमि पर निवास होना चाहिए.
आयु 35 से 70 वर्ष के बीच होनी चाहिए.
मंत्रों और ब्राह्मणों का ज्ञान होना चाहिए.
कुछ विशिष्ट अपराधों या गतिविधियों से संबंधित नहीं होना चाहिए.
कार्यकाल: समिति के सदस्य का कार्यकाल 360 दिन (एक वर्ष) का होता था.
निष्कासन: यदि कोई सदस्य किसी अपराध का दोषी पाया जाता था, तो उसे तुरंत पद से हटा दिया जाता था.
4. दंड का प्रावधान
उथिरामेरूर शिलालेखों में अपराधों के लिए दंड का भी उल्लेख मिलता है.
व्यभिचार, चोरी और जालसाजी जैसे अपराधों के लिए गधे पर बैठाकर घुमाना एक प्रकार का दंड था.














