यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने आज बिहार चुनाव के दौरान सिवान की रैली में उस खौफ का जिक्र किया जो सन 2004 तक चला था. इस रैली के दौरान योगी ने सिवान के चंदा बाबू का जिक्र किया. वो चंदा बाबू जो सिवान की राजनीति और वहां के खौफ के खिलाफ एक योद्धा के तौर पर जाने जाते रहे हैं. उस दौर में बिहार में रंगदारी, अपहरण, हत्या का बोलबाला था. उस दौर में सिवान में शहाबुद्दीन का खौफ था. आलम ये था सिवान का मतलब ही शहाबुद्दीन होता था. शहाबुद्दीन के खिलाफ उस दौर में कोई बोलने के लिए खड़ा तक नहीं होता था.
2004 का वो मनहूस साल
बात 2004 की है. सिवान में किराना की दुकान चलाने वाले चंदा बाबू के पास कुछ दिनों से रंगदारी की कॉल आ रही थी. पर चंदा बाबू ने इसे इग्नोर कर दिया था. फिर 16 अगस्त 2004 का वो दिन आया, जिसमें चंदा बाबू का पूरा परिवार ही उजड़ गया. इसी दिन चंदा बाबू के दुकान पर कुछ लोग आए और चंदा बाबू के बेटे सतीश से दो लाख रुपये की मांग करने लगे. लेकिन वो नहीं माने, पहले सतीश को मारा-पीटा फिर लूटकर जाने लगे. इसी दौरान जब बड़े भाई को चंदा बाबू के छोटे बेटे राजीव ने पिटते देखा तो वो उसने बाथरूम में रखी एसिड की बाल्टी से एक मग भर उसे हमलावरों की तरफ फेंक दिया.
दो बेटों को तेजाब से नहला दिया
इसके बाद गुस्साए अपराधियों ने सतीश के साथ-साथ मौके पर पहुंचे उनके तीसरे भाई गिरीश पर तेजाब डाल दिया. दोनों की दर्दनाक मौत हो गई. यही नहीं, अपराधियों ने बाद में राजीव का अपहरण कर लिया था. इसी दौरान चंदा बाबू की दुकान भी लूट ली गई.अपने तीसरे बेटे की तलाश में चंदा बाबू लगातार ढूंढ रहे थे. लेकिन बताया गया कि राजीव अपराधियों के चुंगल से निकलकर भाग गया था. चंदा बाबू की पत्नी की शिकायत पर मामला तो दर्ज हुआ लेकिन उस समय के एसपी भी उनसे नहीं मिले थे. यहां तक कि प्रशासन के लोग ही उन्हें शहर छोड़कर जाने के लिए कह रहे थे.
सिस्टम के खिलाफ चंदा बाबू का संघर्ष
लेकिन चंदा बाबू ने हार नहीं मानी और इस पूरे सिस्टम के साथ अकेले लड़ने का फैसला किया. इसी दौरान 2005 में राज्य में सत्ता परिवर्तन होता है और नीतीश कुमार शासन में आते हैं. इस हत्याकांड का अकेला चश्मदीद चंदा बाबू का बेटा राजीव था. पर उसकी गवाही के ठीक तीन दिन पहले डीएवी मोड़ पर 16 जून को 2014 राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उस वक्त राजीव की शादी के केवल 18 दिन ही हुए थे.
शहाबुद्दीन को जेल पहुंचाया
इसके बाद तो चंदा बाबू पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. राजीव की हत्या के दो साल बाद शाहुबद्दीन को जमानत मिल गई थी. तब चंदा बाबू ने कहा था कि इसे मैं हार-जीत के रूप में नहीं देखता हूं. क्योंकि जिंदगी में सब कुछ हार चुका हूं. तब उन्होंने कहा था कि या तो हमें भगवान मार दे या फिर शहाबुद्दीन. हालांकि तमाम मुसीबतों के बाद भी चंदा बाबू ने शाहबुद्दीन को सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लिया था. दिसंबर 2020 में चंदा बाबू का निधन हो गया था.














