कांग्रेस की तानाशाह सरकार, इंदिरा का जिक्र, नसबंदी... जब आपातकाल की निंदा पर लोकसभा में हो गया हंगामा

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह 18वीं लोकसभा लोकतंत्र का विश्व का सबसे बड़ा उत्सव है. अन्य चुनौतियों के बावजूद 64 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने पूरे उत्साह के साथ चुनाव में भाग लिया.

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नई दिल्‍ली:

लोकसभा अध्‍यक्ष ओम बिरला ने आपातकाल की जमकर निंदा की, जिसके बाद सदन में विपक्ष ने जोरदार हंगामा शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में अपने कैबिनेट का परिचय कराया. इसके बाद ओम बिरला ने इमरजेंसी की निंदा की और इसे देश के इतिहास का एक काला अध्याय बताया. उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने आपातकाल के दौर में ऐसे कई काम किये, जिन्होंने संविधान की भावनाओं को कुचलने का काम किया, लेकिन हम संविधान की रक्षा की भावना को दोहराते हैं. इस दौरान अध्‍यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस को तानाशह सरकार कहा, इंदिरा गांधी का जिक्र किया और नसबंदी तक के मुद्दे पर विपक्ष को घेरा. 

लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, "ये सदन 1975 में देश में आपातकाल(इमरजेंसी) लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया. कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें. ऐसा करके नागरिकों के अधिकारों का दमन किया गया और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया."

जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी

कांग्रेस पर प्रहार करते हुए ओम बिरला ने कहा, "इमरजेंसी के दौरान लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी का, शहरों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई मनमानी का और सरकार की कुनीतियों का प्रहार झेलना पड़ा. ये सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताना चाहता है. 1975 से 1977 का वो काला कालखंड अपने आप में एक ऐसा कालखंड है, जो हमें संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता है. ये कालखंड हमें याद दिलाता है कि कैसे उस समय इन सभी पर हमला किया गया और क्यों इनकी रक्षा आवश्यक है."

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तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, "इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशियरी की भी बात कही, जो कि उनकी लोकतंत्र विरोधी रवैये का एक उदाहरण है. इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां लेकर आई. जब हम आपातकाल (इमरजेंसी) के 50वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ये 18वीं लोकसभा, बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने और इसे संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है. मीडिया को सच लिखने से रोकने के लिए पार्लियामेंट्री प्रोसिडिंग्स (प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिकेशन) रिपील एक्ट, प्रेस काउंसिल (रिपील) एक्ट और प्रिवेन्शन ऑफ पब्लिकेशन ऑफ ऑब्जेक्शनेबल मैटर एक्ट लाए गए. इस काले कालखंड में ही संविधान में 38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन किया गया. कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें."

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इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह हुआ

स्‍पीकर ओम बिरला ने कहा, "1975 में आज के ही दिन तब की कैबिनेट ने इमरजेंसी का पोस्ट-फैक्टो रेटिफिकेशन किया था, इस तानाशाही और असंवैधानिक निर्णय पर मुहर लगाई थी. इसलिए अपनी संसदीय प्रणाली और अनगिनत बलिदानों के बाद मिली इस दूसरी आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए, आज ये प्रस्ताव पास किया जाना आवश्यक है. इमरजेंसी के दौरान, गैर-कानूनी गिरफ्तारियों और सरकारी प्रताड़ना के चलते अनगिनत लोगों को यातनाएं सहनी पड़ीं थीं, उनके परिवारवालों को असीमित कष्ट उठाना पड़ा था. इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी. इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं."

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