दक्षिण भारत का एक युवक पहले नोएडा में नौकरी करता था. लेकिन बीते दिनों उसने सैलरी बढ़ाने के लिए बेंगलुरु जाने का फैसला किया. उसकी सैलरी तो बढ़ गई, लेकिन अब बेंगलुरु जाकर वह खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहा है. इस युवक ने रेडिट पर अपनी परेशानी साझा की है. खास बात यह है कि बेंगलुरु जाकर फंसने की बात एक साउथ इंडियन युवक कर रहा है. यह युवक एक IT प्रोफेशनल है.
रेडिट पर IT प्रोफेशनल ने लिखी अपनी परेशानी
रेडिट पर शेयर की अपनी कहानी में IT प्रोफेशनल ने बताया कि बीते दिनों बेंगलुरु एक जॉब ऑफर आया. जिसमें प्रति माह 30 हजार रुपए बढ़ रहे थे. मैंने हामी भर दी. लेकिन अब बेंगलुरु आने के बाद ऐसा लग रहा है कि यह मैंने गलत फैसला ले लिया. यहां आकर सुकून खो गया.
मालूम हो कि बेंगलुरु को भारत की सिलिकॉन वैली माना जाता है. यहां देश भर से आईटी पेशेवर आते रहते हैं. लेकिन हर कोई इस शहर को अपने लिए सही नहीं मानता. ऐसा ही कुछ इस साउथ इंडियन युवक के साथ भी हुआ है.
बेंगगुरु के खराब बनियादी ढांचे और भारी ट्रैफिक से परेशान
रेडिट पर लिखे अपने पोस्ट में इस शख्स ने कर्नाटक की राजधानी के खराब बुनियादी ढांचे, भारी ट्रैफिक और सांस्कृतिक अंतर के कारण अपने फैसले पर पछतावे की बात लिखी है.
IT प्रोफेशनल ने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद एक साल से ज्यादा समय तक नोएडा में काम किया और अपनी नौकरी की तलाश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) तक ही सीमित रखी. इस बीच उन्हें अहसास हुआ कि वे करियर के अवसरों से चूक रहे हैं, इसलिए उन्होंने बेंगलुरु से एक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जिसमें प्रति माह 30,000 रुपये की बढ़ोतरी थी.
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बेंगलुरु को गंदा और अव्यवस्थित बताया
चार महीने बाद अब उन्हें बेंगलुरु शिफ्टिंग के फैसले पर निराशा जाहिर की. उन्होंने कहा, "इस सैलरी हाइक के लिए यह शिफ्ट होना उचित नहीं है," उन्होंने बेंगलुरु को "गंदा, अव्यवस्थित" बताया, शहर में "खराब सड़कें" और "सबसे खराब यातायात" है.
बेंगलुरु का पानी भी खराब, जनसंख्या घनत्व भारी
उन्होंने कहा कि पानी की गुणवत्ता खराब है और "प्रति व्यक्ति के लिए कम निजी स्थान है." उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच स्पष्ट विभाजन "हर दिन देखा जा सकता है." नोएडा की बात करते हुए उन्होंने लिखा कि नोएडा में व्यापक, अधिक खुली जगहों की तुलना में बेंगलुरु का उच्च जनसंख्या घनत्व भारी है. उन्होंने कहा, "मुझे नोएडा से बाहर जाने का वास्तव में अफसोस है."