लोकसभा छोड़ अब राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचेंगी सोनिया, एक युग का अंत या कांग्रेस में बड़ा बदलाव

अमूमन संसद के भीतर और बाहर वह अपने सहयोगियों को आगे रखती हैं, लेकिन आमतौर पर मृदुभाषी सोनिया तीखे हमले करने में भी पूरी तरह सक्षम रहीं. पिछले साल सितंबर और दिसंबर में उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक और विपक्षी सांसदों के निलंबन को लेकर बीजेपी को आड़े हाथ लिया था.

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कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) अब 25 साल बाद लोकसभा को अलविदा कहने जा रही हैं. विदेशी मूल और जिन परिस्थितियों में वह राजनीति में आईं उसके बावजूद  उनका चुनावी रिकॉर्ड शानदार रहा है. खैर वह लोकसभा नहीं अब राज्यसभा के सहारे संसद पहुंचेंगी. उन्होंने राजस्थान से नामांकन दाखिल किया है. इस दौरान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मौजूद थे. ये सीट पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हुई है. राजस्थान में कांग्रेस के 70 विधायक हैं. ऐसे में कांग्रेस को यहां से एक राज्यसभा सीट मिलनी तय है.  

सोनिया गांधी फिलहाल रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व कर रही हैं. वह अमेठी से भी लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं. यह पहली बार होगा जब वह संसद के उच्च सदन में जाएंगी.  

सार्वजनिक जीवन से रिटायरमेंट नहीं बल्कि नई शुरुआत

बता दें कि 77 साल की सोनिया गांधी अभी सार्वजनिक जीवन से रिटायरमेंट नहीं ले रहीं, बल्कि राज्यसभा के जरिए वह एक नई शुरुआत कर रही हैं. सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव पार्टी के गढ़ उत्तर प्रदेश के अमेठी और कर्नाटक के बेल्लारी से लड़ा था.  उन्होंने दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की. दरअसल, ये 1999 का साल था और यानी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के आठ साल बाद उन्होंने पार्टी को मजबूती से खड़ी करने का जिम्मा उठाया था. 2004 में वह कांग्रेस के दूसरे गढ़ रायबरेली भेजी गईं. कांग्रेस नेता 1999 से लगातार अपनी पार्टी के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम कर रही हैं, खासकर पिछले दशक की राजनीतिक और संसदीय उथल-पुथल के बीच भी वह पार्टी को मजबूती से लेकर खड़ी रही हैं.

महत्वपूर्ण मुद्दों पर तीखे हमले करने में नहीं रहीं पीछे

अमूमन संसद के भीतर और बाहर वह अपने सहयोगियों को आगे रखती हैं, लेकिन आमतौर पर मृदुभाषी सोनिया तीखे हमले करने में भी पूरी तरह सक्षम रहीं. पिछले साल सितंबर और दिसंबर में उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक और विपक्षी सांसदों के निलंबन को लेकर बीजेपी को आड़े हाथ लिया था.

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2018 में उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "...प्रधानमंत्री लेक्चर देने में बहुत अच्छे हैं...लेकिन लेक्चर से पेट नहीं भर सकता.. आपको दाल चावल चाहिए ही. लेक्चर देने से बीमार ठीक नहीं हो सकते...स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत पड़ती है. "और 2015 में भी उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला था. इस बार उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त जैसे प्रमुख पदों में पारदर्शिता के वादे को लेकर सरकार को घेरा था.

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रायबरेली सीट पर 2004 से रहा कब्जा

बता दें कि 2004 से ही रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी का कब्जा रहा है. यहां उन्हें कभी भी 55 प्रतिशत से कम वोट नहीं मिला.  यह सीट (2014 और 2019) उन्होंने तब भी जीती जब पीएम मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को हराया. यहां तक कि राहुल गांधी परिवार के दूसरे गढ़ अमेठी से हार गए. अब 2024 के चुनाव में देखना होगा कि कांग्रेस यहां से किसको उतारेगी. उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस प्रियंका को यहां से उतार सकती है. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की विदाई और सोनिया गांधी को राज्यसभा भेजा जाना इस कहानी का दो तिहाई हिस्सा मात्र है. माना जा रहा है कि इसी सीट के जरिए शीर्ष नेतृत्व में पीढ़ीगत बदलाव का संकेत दिया जा सकता है.

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प्रियंका गांधी वाड्रा की हो सकती है एंट्री

प्रियंका गांधी वाड्रा के राजनीतिक करियर के बारे में क्या वह चुनाव लड़ेंगी या नहीं लड़ेंगी वाली बातें चलती रहती हैं, लेकिन जबसे उनकी मां सोनिया गांधी ने राज्यसभा का रुख किया है तो एक बार फिर उनकी एंट्री को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. 2019 के चुनाव से 5 साल पहले प्रियंका ने कहा था कि वह किसी भी समय चुनावी शुरुआत करने को तैयार हैं. जब उनसे पूछा गया कि वह यूपी के वाराणसी से पीएम मोदी के सामने चुनाव लड़ेंगी तो उन्होंने चुटकीभरे अंदाज में कहा था कि क्यों नहीं. वैसे कांग्रेस के गढ़ से चुनाव लड़ने के लिए बढ़िया मौका है. 

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