शिवसेना बोली, उसे राहुल गांधी का समर्थन पर शरद पवार की पार्टी का रुख अलग

मंगलवार को संजय राउत ने दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की. संजय राउत ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ किसी भी मोर्चे में कांग्रेस हिस्सेदार होनी चाहिए.

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महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का है गठबंधन
नई दिल्ली:

महाराष्ट्र के गठबंधन में सहयोगी शिवसेना और एनसीपी का रुख बीजेपी विरोधी मोर्चे में कांग्रेस की भूमिका को लेकर अलग-अलग नजर आ रहा है. शिवसेना ने कहा है कि किसी भी विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस का होना आवश्यक है. इसके नेतृत्व को लेकर भले ही चर्चा की जा सकती है. वहीं नई दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक करने वाली एनसीपी का रुख अलग ही नजर आ रहा है. मंगलवार को संजय राउत ने दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की. संजय राउत ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ किसी भी मोर्चे में कांग्रेस हिस्सेदार होनी चाहिए. पार्टी को सार्वजनिक तौर पर यह कहने की वजह थी कि शिवसेना की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार को कांग्रेस का समर्थन मिलता रहे.

सूत्रों का कहना है कि तमाम मतभेदों के बावजूद महाराष्ट्र में तीनों दलों को साथ लाने वाले पवार को भी गांधी परिवार के नेताओं के विरोध में नहीं हैं.  ममता बनर्जी को उनका समर्थन -विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस के नेतृत्व पर मुहर न लगाने के लिए सोचे समझे तरीके से चुने गए शब्द- कांग्रेस पर यह दबाव बनाने के लिए है कि वो आगामी विधानसभा चुनावों में उसे पर्याप्त तवज्जो दे. 

पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पांच दिनों पहले शरद पवार से मिलने मुंबई पहुंची थीं. चूंकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे उपलब्ध नहीं थे तो सरकार के मंत्री आदित्य ठाकरे और संजय राउत ममता बनर्जी से मिले, जो बीजेपी के खिलाफ ऐसा मोर्चा बनाने निकली हैं, जिसकी धुरी कांग्रेस न हो. 

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ममता बनर्जी की बीजेपी के खिलाफ केंद्रीय राजनीति में धुरी बनने की महात्वाकांक्षा को उस वक्त बल मिला जब उन्होंने बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी मात दी. हालिया कुछ महीनों में वो कांग्रेस को बेहद कमजोर बताते हुए उसके पास पूरे विपक्ष की अगुवाई की क्षमता होने की बात ही खारिज करते हुए दिख रही हैं. उन्होंने कहा था, यूपीए क्या है, कोई यूपीए नहीं है. पवार से मुंबई में मुलाकात के बाद उन्होंने यह बयान दिया था. उन्होंने संकेत दिया था कि कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष का मजबूत गठबंधन अब टूटने की ओर है. पवार ने उस वक्त कहा था, कांग्रेस को किसी भी भाजपा विरोधी गठबंधन का हिस्सा बनाना पड़ेगा. 

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लेकिन पवार के बाद पार्टी में दूसरे बड़े नेता प्रफुल्ल पटेल ने पार्टी की कार्यसमिति की बैठक के बाद कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता आगामी चुनाव में अन्य समान विचारधारा वाले दलों के साथ काम करने को सहमत हुए हैं. उन्होंने विशेष तौर पर कांग्रेस का उल्लेख नहीं किया. लेकिन उन्होंने कहा, हम ममता बनर्जी के साथ काम करेंगे. सूत्रों ने कहा कि यह बयान पवार की पार्टी के भीतर चल रही उस बेचैनी का संकेत देता है कि कांग्रेस गोवा जैसे राज्यों में 

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सूत्रों का कहना है कि यह बयान शरद पवार की पार्टी के भीतर उस नाराजगी को दर्शाता है कि कांग्रेस गोवा जैसे राज्यों में रणनीतिक तौर पर ज्यादा सख्त रुख न दिखाए ताकि दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ न खड़ी हों. शरद पवार ने स्वयं सोनिया गांधी से गोवा में गठबंधन को लेकर बातचीत की थी. लेकिन कांग्रेस उसे कोई सीट देने को तैयार नहीं है. एनसीपी वहां 7 सीटें मांग रही है. अभी तक न तो आधिकारिक तौर पर कोई गठबंधन हुआ है और न ही पर्दे के पीछे कोई रणनीति दिख रही है कि ये दल अलग-अलग क्षेत्रों या सीटों पर एक दूसरे को नुकसान न पहुंचाएं.

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वहीं यूपीए अस्तित्व में ही न होने की भावना के साथ आगे बढ़ रहीं ममता बनर्जी ने कांग्रेस के कई नेताओं को पार्टी में शामिल करा लिया है. ममता बनर्जी जब मई में इस बार चुनाव लड़ रही थीं तो कांग्रेस ने उनके साथ गठबंधन नहीं किया. लेकिन जब ममता ने तीसरी बार बंगाल चुनाव जीता और वो भी पहले से भी ज्यादा बड़े अंतर से, तो कांग्रेस के खिलाफ उनकी त्योरी और चढ़ गई. उन्होंने कहा कि वो बीजेपी के खिलाफ आक्रामक तरीके से लड़ाई को तैयार हैं. 

लेकिन ममता बनर्जी की कांग्रेस के खिलाफ आक्रामकता के बीच शिवसेना को अनिच्छा के साथ आपात तौर पर आगे आकर राहुल गांधी से मुलाकात करनी पड़ी. पिछले कई महीनों से कांग्रेस नेता महाराष्ट्र में शिवसेना पर लगातार हमले कर रहे हैं. यह आक्रामकता कथित तौर पर राहुल गांधी की कथित तौर पर शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर उस असहजता का संकेत देती है, जिसमें उसे एक गैर सेकुलर दल माना जाता है.

ममता बनर्जी की आदित्य ठाकरे से मुलाकात के बावजूद सप्ताहांत में शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कांग्रेस के खिलाफ उनके विरोध को बीजेपी की मदद के तौर पर दर्शाया गया. इसमें कहा गया है कि 2024 के आम चुनाव में पीएम मोदी को हटाने के लिए सभी दलों को साथ आने को समय की आवश्यकता बताया गया है.

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