हार को मात देकर बच्चों को भविष्य की नई राह दिखा रही हैं छत्तीसगढ़ की शारदा

80% दिव्यांगता के बावजूद शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार पाने वाली शारदा ने शिक्षा में अपनी इनोवेश से नई मिसाल कायम की.

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रायपुर:

देश में कई ऐसे टीचर्स हैं जो अपने कार्यों और समर्पण को लेकर अक्‍सर चर्चा में रहते हैं. उनमे कुछ ऐसे हैं जो स्‍कूलों में पढाई के साथ साथ अपने बच्चों के जीवन को सुधारना और अनोखे कामों के लिए भी जाने जाते हैं. वह बाकियों से अलग हटकर कुछ करने का प्रयास करते रहते हैं. कुछ टीचर्स ऐसे भी होते हैं जो हर कठिनाइयों को पार करते हैं लेकिन अपना कर्त्तव्य कभी नहीं भूलते. ऐसी ही एक मिसाल हैं छत्तीसगढ़ की शारदा.

पोलिया से भी नहीं मानी हार लिखी नई कहानी

80 प्रतिषत दिव्यांगता के साथ भी हार नहीं मानने वाली शारदा को शिक्षक दिवस के दिन राष्ट्रपति राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से नवाजा गया. शारदा को एक साल की उम्र में पोलियो हो गया था और पढ़ाई रुक गई थी. उन्होनें अपने माता पिता भाई के मदद से बड़ी मुश्किलों के बाद शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद 2009 में शिक्षक बनी. शारदा बताती हैं , "जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो एक स्थिति ऐसी आ गयी थी कि मैं बैसाखी से चलती थी, गिरने के कारण मेरे हाथ ने भी काम करना बंद कर दिया था. लेकिन मेरा उत्साह कम नहीं हुआ. "

कोविड के दौर बच्चों के लिए बनाया इ-कंटेंट

शारदा ने कोविड के समय में कुछ ऐसा कर दिखाया कि हर कोई उनका मुरीद हो गया. बच्चों कि पढ़ाई प्रभावित न हो इसके लिए शारदा ने उनके लिए इ-कंटेंट बनाया. "कोविड 19 से अभी तक शारदा ने 2000 से ज़्यादा इ-कंटेंट बनाये हैं जिसमे उन्होंने आर्गुमेंटेड रियलिटी का प्रयोग किया हैं और साथ ही कार्टून वीडियोज अपने से बनाना सीखा हैं ताकि बच्चों कि रुचि हमेशा शिक्षा में बनी रहे.

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शारदा ने लिखी किताबें

बहुभाषा को बढ़ावा देने वाली इस शिक्षिका ने किताब भी लिखी है और गणित कि एक ऐसी किताब लिखी जिसमें इन्होने एक ऐसी खोज की, जहां क्यूआर कोड है. जिसको स्कैन करने से वीडियो के लिंक खुल जाते हैं. अब जब इन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरूस्कार मिला हैं तो ये और भी प्रोत्साहित हो गयी हैं. "मुझे लगता हैं चुनौतियां आपको रोक नहीं सकती हैं बस आप में एक प्रबल इच्छा शक्ति होनी चाहिए , राह अपने आप मिल जाती हैं."
 

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