- पूर्व अलगाववादी नेता बिलाल गनी लोन ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को जम्मू-कश्मीर में अपनी प्रासंगिकता खो देने वाला और निष्क्रिय संगठन बताया है.
- उन्होंने पाकिस्तान की भूमिका की आलोचना करते हुए कहा कि वह कश्मीर में दरारें पैदा करने के बजाय सुधार में मदद करे.
- लोन ने युवा पीढ़ी से आग्रह किया कि वे भारत को राजनीतिक दलों के नजरिए से न देखें बल्कि देश के रूप में स्वीकार करें.
कश्मीर की राजनीति में हमेशा से ही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का दबदबा रहा है लेकिन अब एक पूर्व अलगावादी नेता बिलाल गनी लोन ने एक बड़ा बयान दिया है. लोन ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को उसकी अप्रासंगिकता के लिए जिम्मेदार ठहराया है. इसके साथ ही उन्होंने इस अलगाववादी समूह को 'निष्क्रिय' करार दे डाला है. उनका कहना था कि जम्मू-कश्मीर में 'अव्यवस्था' और 'दरारें' पैदा करने के लिए पाकिस्तान की भी आलोचना की है. लोन की इस टिप्पणी को पारंपरिक अलगाववादी बयानबाजी से एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक बताया जा रहा है. अपनी इस टिप्पणी में उन्होंने यह स्वीकार किया है कि हुर्रियत और पाकिस्तान दोनों ही इस क्षेत्र में प्रगति लाने के मौकों से 'चूक' गए हैं.
हुर्रियत स्वीकार करे हकीकत
लोन ने युवा पीढ़ी से इस हुर्रियत की असलियत को स्वीकार करने की अपील की है. साथ ही कहा है कि भारत 'एक बहुत बड़ी शक्ति' है जिससे लड़ा नहीं जा सकता. उन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे देश को राजनीतिक दलों के नजरिए से न देखें बल्कि देश के भीतर अपनी जगह बनाने के लिए 'भारत को भारत के तौर पर देखें'.उन्होंने कहा कि मौजूदा पीढ़ी को पिछले 35 सालों की सच्चाई बतानी होगी क्योंकि उनके पास इस नए राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने के अलावा 'कोई और विकल्प नहीं' है क्योंकि 'शोषण की राजनीति बंद होनी चाहिए'. न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में लोन ने जोर देकर कहा कि 1993 में गठित अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस घाटी में अपनी प्रासंगिकता खो चुका है.
हुर्रियत से खत्म हुआ भरोसा
उन्होंने कहा, 'आज की तारीख में हुर्रियत प्रासंगिक नहीं रहा. हुर्रियत फंक्शनल भी नहीं है.' उन्होंने आगे कहा, 'ईमानदारी से कहें तो... जब आप आज की तारीख में हुर्रियत की बात करते हैं, तो वह कश्मीर में कहीं मौजूद नहीं है.' लोन ने माना कि लोगों ने अतीत में हुर्रियत पर भरोसा जताया था लेकिन उन्होंने कहा कि वर्तमान वास्तविकता अलग है. उन्होंने कहा, 'हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है क्योंकि हम कार्रवाई नहीं कर सके. इसलिए उस समय हुर्रियत की मानसिकता अच्छी रही होगी, लेकिन जब हम आज हुर्रियत की कल्पना करते हैं, तो वह निष्क्रिय दिखती है और कहीं न कहीं हुर्रियत लड़खड़ा गई है, इसमें कोई संदेह नहीं है.'
पाकिस्तान को भी ठहराया जिम्मेदार
लोन ने पाकिस्तान की भूमिका की भी समान रूप से आलोचना की और कहा, 'हमने कई बयान सुने हैं, लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला है. पाकिस्तान को कश्मीर में दरार पैदा करने के बजाय, यहां हालात को बेहतर बनाने में कश्मीर की मदद करनी चाहिए.' उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि पाकिस्तान कभी भी जबरन या ताकत के दम पर कश्मीर 'हासिल' कर लेगा. उन्होंने इसे एक बेहद मूर्खतापूर्ण सुझाव बताया. अपनी बात को साफ तौर पर बताने के लिए लोन ने सीमा पर हाल ही में बढ़े तनाव का हवाला दिया. इसके दौरान 48 घंटे तक युद्ध जैसी स्थिति रही. उन्होंने कहा, 'सीमा पर एक इंच भी जमीन नहीं हिली.'
लोन ने कहा कि कश्मीरियों को अब आगे बढ़ना होगा. उन्होंने कहा, 'हमें इस उलझन से बाहर निकलना होगा चाहे वह पाकिस्तान के साथ हो या उसके बिना, हमें इससे बाहर निकलना होगा.' उन्होंने अलगाववादी आंदोलन की विफलताओं पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए कहा, 'हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को कई मौके मिले हम कहीं न कहीं चूक गए. और हम अपने लोगों के लिए कुछ कर सकते थे, लेकिन हम नहीं कर पाए. यही सच्चाई है, आइए इसके बारे में ईमानदार रहें.'
लोन का कहना था कि अतीत की असफलताओं को साफ तौर प स्वीकारते हुए, लोन ने कहा कि मुख्यधारा की राजनीति की ओर उनका रुझान राजनीतिक स्वार्थ से नहीं, बल्कि एक 'वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया' को आगे बढ़ाने के व्यक्तिगत दृढ़ विश्वास से उपजा है.
लोगों का कर्ज चुकाना है
अपने सफर पर विचार करते हुए, लोन ने कहा, 'मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है कि मैं इस सीमा के दूसरी तरफ था, लेकिन बस एक ही अफसोस है कि हम कुछ नहीं कर पाए. बहुत कुछ किया जा सकता था लेकिन हम नहीं कर पाए.' उन्होंने अपने ह्रदय परिवर्तन को एक हिंदी कहावत के साथ जाहिर किया, 'देर आए दुरुस्त आए.' अलगाववादी राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में आने के अपने कदम पर, लोन ने कहा कि वह मुख्यमंत्री या विधायक जैसे किसी पद की दौड़ में नहीं हैं, बल्कि अपने लोगों का कर्ज चुकाने की इच्छा से प्रेरित हैं. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि मुझे कर्ज चुकाना होगा. इसलिए मेरे लिए यह कर्ज चुकाने का समय है.'
हिंसा ने कश्मीर को किया बर्बाद
उन्होंने कहा कि लोगों के लिए उनका नया राजनीतिक आख्यान सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से आगे बढ़कर नई पीढ़ी के भविष्य पर केंद्रित होगा. उनका कहना था कि हमें उनके भविष्य के बारे में बात करनी होगी, जिसमें उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और व्यवसाय स्थापित करने की संभावनाएं शामिल हैं. साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी नई राजनीतिक यात्रा की मुख्य प्रेरणा अगली पीढ़ी है, जो उनके अनुसार इस संघर्ष की सबसे बड़ी शिकार रही है. उन्होंने कहा, 'हिंसा ने हमें कुछ नही दिया. हिंसा ने यहां पर बर्बादी ही लाई है.' उन्होंने आगे कहा कि इसने 'पीढ़ियों को खत्म' कर दिया है.
अनुच्छेद 370 के बाद की स्थिति का सीधा आकलन करते हुए, लोन ने कहा कि यह प्रावधान राजनीतिक रूप से भले ही खोखला रहा हो, लेकिन यह कश्मीरियों के लिए एक 'मनोवैज्ञानिक जीत' है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर कश्मीरियों को 'दबाया' महसूस कराया और ऐसाकरके भाजपा ने 'कश्मीरियों को खो दिया' है. हालांकि, लोन ने तुरंत कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देने के लिए 'बहुत छोटे आदमी' हैं, लेकिन उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीरियों को 'गले लगाने' और इस क्षेत्र को 'वोट बैंक के चश्मे' से न देखने का आग्रह किया.