भारत ने यह साफ कर दिया है कि सैटकॉम के स्पेक्ट्रम (सेटेलाइट से इंटरनेट) की नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि उसका आवंटन प्रशासनिक आधार पर किया जाएगा. सरकार ने यह फैसला ऐसे समय लिया जब इसको लेकर बाजार में होड़ मची हुई थी. भारत में इसके लिए स्टारलिंक के मालिक एलन मस्क रुचि दिखा रहे हैं. मस्क इस स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आबंटन के पक्ष में हैं. वहीं भारतीय बाजार की दिग्गज रिलायंस जियो और एयरलेट इसकी नीलामी की पक्षधर हैं.आइए जानते हैं कि सैटेलाइट से इंटरनेट देने की यह तकनीक है क्या और भारत में इसकी संभावनाएं कितनी हैं.
भारत में सैटकॉम के स्पैक्ट्रम का आवंटन
भारत सरकार के इस फैसले को कुछ कंपनियों की जीत के तौर पर देखा गया, खासकर स्टारलिंक के लिए. लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि कोई भी देश सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं कर सकता है. क्योंकि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है. इस वजह से इसके आवंटन का काम इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) के जरिए किया जाता है. यह संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है. इसकी स्थापना 1865 में टेलीग्राफ नेटवर्क का प्रबंधन करने के लिए की गई थी. दुनिया के 194 देश इसके सदस्य हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार दूरसंचार अधिनियम,2023 लेकर आई थी. इसे संसद ने दिसंबर 2023 में पारित किया था. इसी कानून में इस बात के प्रावधान किए गए हैं कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं होगी और इसे प्रशासनिक आधार पर आबंटित किया जाएगा.अब दूरसंचार विभाग ने टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) से कहा है कि वो सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को आबंटित करने की प्रक्रिया बनाए.
भारत में कहां-कहां हो सकता है इसका फायदा
आजकल हम लोग जिस फोन या मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. उसका संचालन टेरेस्टियल स्पेक्ट्रम के जरिए किया जाता है. इस स्पेक्ट्रम की नीलामी सरकार करती है. इस स्पेक्ट्रम पर सरकार का अधिकार होता है. इसमें आप्टिकल फाइबर या मोबाइल टॉवर के जरिए तरंगों का संचार होता है.वहीं इसके उलट सैटेलाइट स्पेक्ट्रम में एक छतरी के जरिए इंटरनेट की सर्विस दी जाएगी. इससे पहाड़ों, जंगलों और दूर-दराज के इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने में बहुत लाभदायक होगा, जहां अभी ऑप्टिकल फाइबर का जाल बिछाना या मोबाइल टावर लगाना मुश्किल काम है.
सैटकॉम के जरिए कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए उपग्रहों की एक चेन का इस्तेमाल होता है. इसमें डेटा भेजने के लिए ऑप्टिकल फाइवर या मोबाइल टॉवर की जरूरत नहीं होती है.सैटेलाइट स्पेक्ट्रम 1.5 और 51.5 गीगाहर्ट्ज के बीच काम करता है. इससे तेज स्पीड वाली ब्राडबैंड सेवाएं दी जा सकती हैं. इसकी प्रकृति ही इसे विशेष बनाती है. दूरदराज के बहुत से इलाकों, जंगलों और पहाड़ों पर अभी भी 5जी की सुविधा नहीं है.
भारत में सैटकॉम का कारोबार
एक अनुमान के मुताबिक 2023 में भारत में सैटकॉम कारोबार का मूल्यांकन करीब ढाई अरब डॉलर का किया गया था. इसके 2028 तक 25 अरब डॉलर से अधिक का हो जाने का अनुमान लगाया गया है. इस क्षेत्र में निवेश के मामले में भारत दुनिया में चौथे नंबर पर है.अगर इस क्षेत्र का भारत में अनुमानित विकास होता है तो इसके जरिए तेज ब्राडबैंड की सुविधा दूर-दराज के इलाकों में भी पहुंच सकती है, हालांकि अभी यह काफी महंगी है.
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